इस गाँव के लोग इलाज करवाने के लिए गिरवी रखते हैं बर्तन

Neetu SinghNeetu Singh   5 Nov 2016 9:48 PM GMT

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इस गाँव के लोग इलाज करवाने के लिए गिरवी रखते हैं बर्तनदुधई गाँव में ग्रामीणों का हाल।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

दुधई (ललितपुर)। बच्चों की बीमारी में पीतल के बर्तन ही सहारा होते हैं, जिन्हें गिरवी रखकर हम अपने बच्चों की इलाज करवा पाते हैं। अगर हमारे पास ये पीतल के बर्तन न हो तो हम अपने बच्चों की इलाज नहीं करवा सकते। यह कहना है उर्मिला का। ललितपुर से 50 किलोमीटर दूर दुधई गाँव में 2500 आदिवासी परिवार रहते हैं। इनका जीवनयापन सामान्य से बिलकुल अलग है। इन्हें न तो वक्त से खाना मिलता है और न ही पानी। सोने के लिए रात में चारपाई के नाम पर जमीन की कुछ इंच भूमि मिलती है। ललितपुर जिले में 71,610 शहरिया आदिवासी परिवार रहते हैं, जिनकी सभी की स्थिति लगभग एक जैसी ही है।

बच्चा बीमार पड़ा तो नहीं करवा पाएंगे इलाज

दुधई गाँव में रहने वाली उर्मिला (30 वर्ष) उदास होकर बताती हैं कि इस वक्त हमें सबसे ज्यादा चिंता इस बात की रहती हैं कि कहीं हमारा कोई बच्चा बीमार न पड़ जाए। वो आगे बताती हैं कि इस समय डेंगू और चिकुनगुनिया वाले बुखार चले हैं। हमारे गाँव में कई लोगों को ये बुखार हो चुका है। मुझे हमेशा इस बात का डर सताया रहता है कि कहीं हमारा बच्चा बीमार न पड़ जाए और हम उसका इलाज न करवा पायें।

कोई दूसरा चारा भी नहीं है

ललितपुर जिले में ये चिंता सिर्फ शहरिया आदिवासी उर्मिला की ही नहीं हैं, बल्कि यहाँ की हजारों माताओं की हैं क्योंकि उनके पास अपने बच्चों की इलाज के लिए पैसे नहीं होते। पैसे न होने की वजह से कई बार इन बच्चों को समय से इलाज नहीं मिल पाता, जिससे बीमारी और ज्यादा बढ़ जाती है। इस गाँव की अनीता (20 वर्ष) का कहना है कि सुबह रुखा-सूखा खाना बनाकर लकड़ी बीनने जंगल निकल जाते हैं। पूरे दिन लकड़ी बीनने के बाद शाम को घर आते हैं। वो आगे बताती हैं कि अगले दिन उन लकड़ियों को 12 किलोमीटर दूर बेचने जाते हैं, तब कहीं जाकर हमे 50 रुपये मिलते हैं। कुछ पैसे पति को मिल जाते हैं और उससे घर की रोजी-रोटी चल जाती है। अगर कोई बीमार पड़ गया तो बर्तन गिरवी रखने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है।

पैसे के अभाव में गवां चुके हैं बच्चे अपनी जान

50 वर्षीय सोना का कहना है कि हम भगवान् से हमेशा यही दुआ करते हैं कि हमे भले ही पेट भर खाना न मिले पर हमारे बच्चे कभी बीमार न पड़े। अगर हम बड़े लोग बीमार होते हैं तो 2-3 दिन में अपने आप ही ठीक हो जाते हैं, पर बच्चों का रोना देखा नहीं जाता। 100 रुपए पर पांच रूपये बर्तन गिरवी रखने पर मिलता हैं। वो आगे बताती हैं कि गिरवी रखे सामान को उठाने में 2-3 महीने का वक़्त लग जाता है। कई बार तो पैसे न चुका पाने की वजह से हमारा समान भी जब्त हो जाता। सोना ये बताते हुए भावुक हो जाती हैं कि जब हमारा समान जब्त हो जाता है तो दोबारा अपने बच्चे की इलाज के लिये सौ बार सोचना पड़ता है। कई बार पैसे के आभाव में वक्त पर इलाज न होने कि वजह से हमारे बच्चों की जान भी चली गयी हैं। गरीबी की वजह से इन आदिवासी परिवारों का खानपान भी रुखा-सूखा रहता है। सही खानपान न होने की वजह से भी ये बच्चे साल में कई बार बीमार पड़ते हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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