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आश्रम की महिलाओं की ज़िंदगी में ख़ुशबू बिखेर रही अगरबत्ती

मथुरा जिले के वृन्दावन में स्थित बृज गंधा प्रसार समिति 120 निराश्रित महिलाओं का बसेरा है जिसमें ज़्यादातर विधवा महिलाएं अपनी छोटी, अलग सी दुनिया में रहती हैं और उनसे बात करके मालूम होता है मानो इतनी खुश वो इससे पहले कभी थी ही नहीं।
#women empowerment

मथुरा (वृन्दावन)। घंटे वाली सुई नौ पार कर चुकी है और अन्नपूर्णा के हाथ गुलाबों की पंखुड़ियों को अलग करने में व्यस्त हैं। “मन्दिरों से फूल आता है, फूल को बीनते हैं जैसे गुलाब अलग, गेंदा अलग, बेली अलग और उसके बाद उसकी सुखाई होती है, मशीन में पिसाई होती है, उसका पेस्ट बनता है तब हम बनाते हैं (अगरबत्ती),” अन्नपूर्णा बताती हैं।


पति के गुजरने के बाद अन्नपूर्णा मुख़र्जी ने जैसे-तैसे अपनी बेटी; श्रेष्ठा की शादी की और फ़िर भक्ति में लीन होकर गुजर-बसर करने वृन्दावन आ गयीं। फ़िर परिस्थितियां विषम हुईं और अन्नपूर्णा ने वृन्दावन के ही महिला आश्रय में जगह ले ली। आज अन्नपूर्णा और मोना दोनों ही बृज गंधा प्रसार समिति में न सिर्फ़ खुशी से रहते हैं बल्कि फ़ूलों से अगरबत्ती बनाने बांकी महिलाओं को भी प्रशिक्षित करते हैं।

मथुरा जिले के वृन्दावन में स्थित बृज गंधा प्रसार समिति 120 निराश्रित महिलाओं का बसेरा है जिसमें ज़्यादातर विधवा महिलाएं अपनी छोटी, अलग सी दुनिया में रहती हैं और उनसे बात करके मालूम होता है मानो इतनी खुश वो इससे पहले कभी थी ही नहीं। “हम तो मरते दम तक यहीं रहेंगे अब, परवहु के चरण में। दस दिन की ट्रेनिंग था, ट्रेनिंग होने के बाद हमको काम थोड़ा थोड़ा आ गया फ़िर बनाने लगे हम अगरबत्ती। मज़ा आता है ये काम करने में,” ओडिशा की रहनेवाली सीता जो पिछले तीन सालों से आश्रम में रह रही हैं, बताती है।


ब्रिज गंधा के अभिरक्षक अनिल बताते हैं, “ये सभी महिलाएं यहाँ वैसे ही रहती हैं जैसे किसी हॉस्टल में बच्चे रहते हैं। दिन में अगरबत्ती का काम, फिर शाम में चाय के साथ गपशप और फिर टीवी रिमोट के लिए लड़ाई, सब कुछ वैसा ही होता है।”

“ये हल्का काम है… जभी जो आता है कर देता है। अगरबत्ती भी कभी गिनती हो जाता है… गिनती करना पड़ता है। कभी प्लास्टिक में गिनती करके भरना पड़ता है, वो भी करते हैं,” अन्नपूर्णा ने बताया। हर सुबह महिलाएं 9 बजे से मंदिर से आये फूलों की पंखुड़ियां चुन उनके पाउडर बनाने से लेकर अगरबत्ती बनाने तक की प्रक्रिया पूरी करती हैं। अन्नपूर्णा आगे बताती हैं, “मैडम जी जब भी, जो भी काम देते हैं, वो हम करते हैं। हम मना नहीं करते कि हम ये नहीं करेंगे। काम में मज़ा है।”


श्रेष्ठा की शादी के कुछ महीनों बाद ही उसके पति ने दूसरी शादी कर ली थी। उसके बाद, दो साल से श्रेष्ठा भी माँ के पास वृन्दावन के इस आश्रय में आकर रह रही है। वो बताती है, “इसमें फूल, फूल के पाउडर लेते हैं जैसे गेंदे का फूल है, व्हाइट चिप्स है, जीगत है… सब एक साथ मिक्स करते हैं। अच्छे से मिक्स करना पड़ता है नहीं तो ये… एक इधर उधर हो जाएगा।”

“अलग अलग हो जाता है तो फिर बेकार हो जाता है इसलिए अच्छे से मिक्स करना पड़ता है। उसके बाद इसे पानी के साथ जैसे आटा गूंधते हैं वैसे गूंधना पड़ता है,” श्रेष्ठा ने आगे बताया।

आश्रय में ही रहने वाली मध्य प्रदेश से आई देवंती बताती है, “साढ़े नौ से हम आते हैं दस बजे जब हमारा काम शुरू होता है। यही कोई …दो-तीन घण्टा काम करते हैं हम। थोड़ा ज़्यादा तो करना पड़ता है, अगरबत्ती बनाने में टाइम लगता है और कभी कभी ज़्यादा बनाना है तो वो तो टाइम लगेगा ही। हम यहाँ अपनी बहनों के साथ बहुत खुश है, इतने खुश तो हम पहले अपने घर में भी नहीं थे।” 

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