स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
गोरखपुर। “एक रात मैं सोई थी, मुझे कुछ लोगों ने छत से फेंक दिया, जिससे मैं प्रधानी का चुनाव न लड़ सकूं, छत से गिरने के बाद मेरा आधा हाथ काटना पड़ा और मैं छह महीने बिस्तर से नहीं उठ पाई। मैं प्रधान नहीं बन पाई लेकिन अब सैकड़ों महिलाओं की मदद करती हूं।” बिजुला देवी बताती हैं।
बिजुला देवी (50 वर्ष) अपने क्षेत्र की महिलाओं के साथ हो रही घरेलू हिंसा को रोकने व उनको न्याय दिलाने का काम कर रही हैं। गोरखपुर जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में भटहट ब्लॉक के तरकुलही गाँव की रहने वाली बिजुला देवी अपने आधे कटे हुए हाथ की तरफ इशारा करते हुए बताती हैं, “एक बार प्रधानी के चुनाव के लिए पर्चा दाखिला किया, मैं हरिजन जाति की हूं इसलिए गाँव के कुछ लोग नहीं चाहते थे कि मैं प्रधान बनूं।” महिलाओं के साथ अन्याय न हो ये सोच रखने वाली बिजुला देवी ग्राम प्रधान तो उस वर्ष नहीं बन सकीं, लेकिन महिला समाख्या से जुड़कर अपने क्षेत्र की महिलाओं की आवाज़ जरूर बन गईं।
ये भी पढ़ें- डकैत ददुआ से लोहा लेने वाली ‘शेरनी’ छोड़ना चाहती है चंबल, वजह ये है
बिजुला देवी एक केस का अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “आज से 15 साल पहले एक लड़की को कम दहेज देने की वजह से उसके ससुराल वालों ने जला दिया था। गरीब परिवार की लड़की थी इस लड़की को न्याय दिलवाने के लिए मुझे एक दिन थाने में गुजारना पड़ा पर मैंने तब तक हार नहीं मानी जब तक उसके ससुराल वालों को जेल नहीं भिजवा दिया। इस केस में न्याय दिलाने के बाद बिजुला का आत्मविश्वास बढ़ा और तबसे सैकड़ों लोगो को न्याय दिला चुकी हूं।
बिजुला देवी महिला समाख्या द्वारा संचालित नारी अदालत की सदस्य हैं। प्रदेश के 14 जिलों में 36 नारी अदालत चलती हैं। नारी अदालत चलने से अब ग्रामीण महिलाओं को अपने ऊपर हो रहे शोषण के लिए पुलिस थाने के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं, सिर्फ घरेलू हिंसा ही नहीं, बल्कि जमीन संबंधी मसले, मजदूर-शोषण, बाल-विवाह, दहेज जैसे तमाम मसलों को नारी अदालत में सुलझाया जाता है।
ये भी पढ़ें- फल संरक्षण के मामले में यूपी फिसड्डी
नारी अदालत महिलाओं के द्वारा बनाया गया एक ऐसा मंच हैं, जिसमें 6-14 महिलाएं निर्णायक की भूमिका में रहती हैं। इन्हें कानून और जेंडर संबंधी सभी विषयों पर प्रशिक्षित किया जाता है। निष्पक्ष रूप से समस्या का समाधान होने के साथ ही समय और पैसे दोनों की बचत होती है।गोरखपुर जिले की महिला समाख्या की जिला समन्यवक नीरू मिश्रा का कहना है, “पिछड़ा जिला होने की वजह से यहां अशिक्षा और बेरोजगारी बहुत है, यहां के पुरुष मेहनत मजदूरी करते हैं और शाम को नशा कर लेते हैं, महिलाओं को मारना-पीटना यहां सामान्य बात है।
बेमेल शादी, दहेज के लिए प्रताड़ित करना, शादी के बाद दूसरी शादी करना इस तरह के केस अक्सर नारी अदालत में आते हैं।” वो आगे बताती है, “महिलाएं घर के पारवारिक झगड़े थाने ले जाने की बजाय नारी अदालत ले आती हैं, बिजुला देवी की तरह नारी अदालत की महिलाएं बिना किसी पैसे के महिलाओं को न्याय दिलाती हैं।
ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।