श्रीविधि से दो से ढाई गुना बढ़ी धान की पैदावार

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
श्रीविधि से दो से ढाई गुना बढ़ी धान की पैदावारफैजाबाद में कम जोत वाले किसानों की नई उम्मीद बन सकती है श्रीविधि 

रबीश कुमार (कम्यूनिटी जर्नलिस्ट)

फैजाबाद। जिले में खरीफ की फसल में धान मुख्य है। मगर यहां भी कम बारिश के चलते पैदावार कम और घाटा बढ़ता जा रहा था। सोहावल रूदौली से लगभग 8 किमी. दूर महोली गाँव की ज्ञानादेबी (45 वर्ष) भी इससे परेशान थीं, लेकिन पिछले वर्ष उन्होंने श्रीविधि से धान लगाए। इससे उनके दस बिस्वा खेती में ही पहले जहां दो कुंटल धान होता था पिछले बार 5 कुंटल धान हुए।

छोटी जोत वालों के लिए लाभकारी

ज्ञानादेवी बताती हैं, “मेरे पास कम जमीन है, जिसमें गेहूं और धान की फसल ही ले पाती हूं, लेकिन इतनी पैदावार नहीं हो पाती है। इससे खाने भर का भी निकल पाए। इसलिए दूसरों के खेत में मजदूरी भी करती थी।” वे आगे बताती हैं, “एक दिन की बात है कि मैं गाँव के ही एक किसान के खेत पर धान की रोपाई करने गई तो वहां देखा कि यह धान की रोपाई का तरीका कुछ अलग था। छोटे धान के पौधे एक निश्चित दूरी पर रोपा जा रहा था। ये देखकर मैने राजेंद्र कुमार से बात की तो वह पारस फाउंडेशन का नाम बताया जहां पर राजकुमार तथा वैज्ञानिकों के द्वारा किसानों कृषि संबंधित नई नई तकनीकों के बारे में जानकारी दी जाती है।” जाना देवी ने बताया, “अगले दिन पारस फाउंडेशन की तरफ से किसानों की की वैठक में श्री विधि से धान की खेती करने के बारे में बताया गया। मैंने ध्यान से पूरी पद्धति को समझा और खेत में श्री विधि से धान की रोपाई की।”

श्री विधि से धान की नर्सरी तैयार करने का तरीका

बीजोपचार विधि

एक एकड़ जमीन के लिए दो किलोग्राम बीज लें। तैरते हुए बीजों को निकाल कर फेंक दें क्योंकि वो खराब हैं। स्वस्थ बीजों से नमक को हटाने के लिए साफ पानी से धोएं। कार्बेन्डाजाईम से बीज को उपचारित करें।

नर्सरी की तैयारी

जमीन से चार इंच ऊंची नर्सरी तैयार करें, जिसके चारों ओर नाली हो। नर्सरी में गोबर की खाद अथवा केंचुआ खाद डाल कर भुरभुरा बनाएं। नर्सरी की सिंचाई करें। सिंचाई के बाद उनमें बीज का छिड़काव करें।

खेती की तैयारी

खेती की तैयारी परंपरागत तरीके से की जाती है, केवल इतना ध्यान रखा जाता है कि ज़मीन समतल हो। पौध रोपण के 12 से 24 घंटे पूर्व खेत की तैयारी करके एक से तीन सेमी से ज्यादा पानी खेत में नहीं रखा जाता है। पौधा रोपण से पहले खेत में 10 गुणा 10 इंच की दूरी पर निशान लगाया जाता है। पौधे के बीच उचित लाइन बना ली जाती है। इससे निशान बनाने में आसानी होती है। निशान लगाने का काम पौधा रोपण से छह घंटे पूर्व किया जाता है।

पौधा उठाने का तरीका

इसके तहत 15 दिनों के पौधे को रोपा जाता है, जब पौधे में दो पत्तियां निकल आती हैं। नर्सरी से पौधों को निकालते समय इस बात की सावधानी रखी जाती है कि पौधों के तने व जड़ के साथ लगा बीज न टूटे व एक-एक पौधा आसानी से अलग करना चाहिए और पौधे को एक घंटे के अंदर लगाना चाहिए।

रोपाई करना

पौधा रोपण के समय हाथ के अंगूठे एवं वर्तनी अंगुली का प्रयोग किया जाता है। खेत में डाले गए निशान की प्रत्येक चौकड़ी पर एक पौधा रोपा जाता है। नर्सरी से निकाले पौधे की मिट्टी धोए बिना लगाएं और धान के बीज सहित पौधे को ज्यादा गहराई पर रोपण नहीं किया जाता है।

खरपतवार का नियंत्रण

इस विधि में खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ से चलाए जाने वाले वीडर का इस्तेमाल किया जाता है। वीडर चलने से खेत की मिट्टी हल्की हो जाती है और उसमें हवा का आवागमन ज्यादा हो जाता है। इसके अतिरिक्त खेतों में पानी न भरने देने की स्थिति में खरपतवार उगने को उपयुक्त वातावरण मिलता है।

सिंचाई एवं जल प्रबंधन

इस विधि में खेत में पौध रोपण के बाद इतनी ही सिंचाई की जाती है जिससे पौधों में नमी बनी रहे। परंपरागत विधि की तरह खेत में पानी भर कर रखने की आवश्यकता नहीं होती है।

रोग व कीट प्रबंधन

इस विधि में रोग और कीटों का प्रकोप कम होता है, क्योंकि एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी ज्यादा होती है। जैविक खाद का उपयोग भी इसमें सहायक है। कई प्राकृतिक तरीके और जैविक कीटनाशक भी कीट प्रबंधन के लिए उपयोग किए जाते हैं।

कम पानी और लागत

फसल तैयार होने पर ज्ञानादेबी ने पाया कि जिस खेत से मात्र दो कुन्तल धान पैदा होता था। उसी खेत में पांच कुन्तल धान पाकर उन्हें बहुत खुशी हुई। अब उन्हें सालभर का चावल मिल गया है। अब गाँव में अन्य महिलाएं भी काफी प्रभावित हैं। महिला किसान समिति के वैठक में यह तय किया गया कि जिन सदस्यों के पास कम मात्रा में खेती है उन महिलाओं का पारस फाउंडेशन के मजत से अलग समिति का गठन किया गया है। अब गाँव की सभी महिलाएं श्री विधि से खेती करती हैं। सभी महिलाओं ने खरीफ 2015 में श्री विधि से धान की खेती की और बेहतर उत्पादन प्राप्त किया। समिति में सभी महिलाएं एक दूसरे के खेत के कार्यों में सहयोग करती हैं जिससे उन्हें मजदूर की जरूरत नहीं रहती है। इस बार भी गाँव के कई किसानों ने श्री विधि से धान लगाया है तथा किसानों की अधिक उपज होने से प्रधान के सहयोग से पारस फाउंडेशन के द्वारा उनको सर्टिफिकेट भी दिया गया है। श्री विधि से किसानों को कई लाभ मिलते हैं। जैसे बीज की संख्या कम लगती है (एक एकड़ में दो किलो) और पानी भी कम लगता है। इस विधि में मजदूर भी कम ही लगते हैं। परंपरागत तरीके की अपेक्षा खाद एवं दवा कम लगता है, प्रति पौधे कल्ले की संख्या ज्यादा होती है, बालिगों में दानों की संख्या ज्यादा होती है, दानों का वजन ज्यादा होता है और दो गुना उपज होती है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.