पशुओं को गलाघोंटू से बचाने के लिए टीकाकरण जरूरी

Lokesh Mandal shuklaLokesh Mandal shukla   13 Jun 2017 2:55 PM GMT

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पशुओं को गलाघोंटू से बचाने के लिए टीकाकरण जरूरीबारिश के मौसम में प्रायः जानवरों में कई तरह की बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है।

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

रायबरेली । बारिश के मौसम में प्रायः जानवरों में कई तरह की बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है, लेकिन सबसे ज्यादा गलाघोंटू होने का डर होता है। इस बीमारी से पशुओं को सुरक्षित करना पशुपालकों के लिये बहुत जरूरी है। बरसात के मौसम में पशुपालकों को पशुओं को गलाघोंटू से बचाव के लिए सजग रहना चाहिए ताकि दूसरे पशु बीमारी से संक्रमित न होने पाएं।

मुख्यालय जिला रायबरेली से 33 किलोमीटर दूर बछरावां ब्लॉक के पशु चिकित्सालय में तैनात पशु चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर अनिल पाल बताते हैं, “बारिश के मौसम में होने वाले रोगों में से सबसे खतरनाक रोग गलघोंटू है। यह एक जानलेवा संक्रामक रोग है, जो प्रायः गायों और भैंसों में बरसात के सीजन में फैलता है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में तथा पानी जमाव वाली जगहों में इस बीमारी के कीटाणु ज्यादा समय तक रहते हैं।”

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लक्षण

  • अचानक तेज बुखार का आना।
  • आंखें लाल हो जाती हैं और जानवर कांपने लगता है।
  • पशु का खाना पीना बंद हो जाता है।
  • अचानक दूध घट जाता है
  • जबड़ों और गले के नीचे सूजन आ जाना।
  • सांस लेने में कठिनाई होती है।
  • जीभ सूज जाती है और बाहर निकल आती है।

सावधानियां

  • अगर किसी पशु को ये बीमारी हो गयी हो तो उसको अन्य जानवरों से अलग बांधे।
  • पशु आहार, चारा, पानी आदि को रोगी पशु से दूर रखें।
  • रोगी पशु को बाल्टी में पानी पिलाने के बाद बाल्टी अच्छी तरीके से धो लें।

पशु चिकित्सालय बछरावां में तैनात सहायक पशु चिकित्सक डा. सतेन्द्र सिंह बताते हैं,“ बरसात आने से पहले ही सारे पशुओं को गलाघोंटू का टीका अवश्य लगवा लें। टीका लगवाने के साथ-साथ इस बात का ध्यान दें कि बरसात भर पशुओं को मैदान में चराने के लिए न ले जाएं, क्योंकि बारिश के समय बहुत से कीड़े मकोड़े पनपते हैं जो हरी घास के संपर्क में आकर पशुओं का भोजन बन जाते हैं और वो पेट मे जाकर पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं।”

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बछरावां ब्लॉक के इचौली गाँव में डेरी चलाने वाले पशुपालक भानुप्रताप सिंह (52वर्ष) का कहना है, “ ये ऐसा रोग है कि एक बार हो जाए तो फिर चाहे जितनी दवाई कराओ इतनी आसानी से सही नहीं होता है । बरसात से पहले टिका लगवाना बहुत जरूरी होता है।”

वहीं इचौली गाँव के ही नौमिलाल (50वर्ष) का कहना है, “ पिछले बरसात में एक भैस लाए थे। एक महीने बाद उसे गलाघोंटू हो गया था। काफी इलाज के बाद भैस सही हुई। अब मैं बरसात के मौसम में अपने पशुओं को बाहर नहीं ले जाता हूं।”

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