ग्राम प्रधान ने ग्रामीणों के लिए लगाया आरओ

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ग्राम प्रधान ने ग्रामीणों के लिए लगाया आरओस्मृति सिंह हैं जिले की सबसे कम उम्र की पीएचडी ग्राम प्रधान

विनय गुप्ता- कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

गढ़वार (बलिया)। जहां एक तरफ ग्रामीण युवा पढ़ाई के बाद बड़े शहर में अच्छी नौकरी करना चाहते हैं, वहीं पर एक युवा ऐसी भी हैं, जिन्होंने पीएचडी के बाद ग्राम प्रधान बनना पसंद किया।

बलिया जिले के गढ़वार ब्लॉक के रतसर गाँव की स्मृति सिंह (25 वर्ष) आज सबसे कम उम्र की प्रधान हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति में स्नातक करने के बाद उनके पिता उन्हें आईएएस बनाना चाहते थे। मुंबई में पीएचडी करने और आईएएस की तैयारी के लिए चली गयी।

स्मृति सिंह बताती हैं, "मेरे पापा स्वर्गीय अखंडा नन्द सिंह मुझे पढ़ा लखा कर आईएएस बनाना चाहते थे, जिसके लिए उन्हें गाँव से दूर मुंबई में पढ़ने भेजा। पढ़ाइ के बाद जब गाँव वापस आयी तो मेरे भईया ने मुझे ग्राम प्रधान चुनाव में खड़े होने के लिया कहा। ऐसे में तब मैंने कहा कि समाज सेवा ही ठीक है। पॉलिटिक्स में नही आना चाहती। अपने बड़े भाई के समझाने पर चुनाव में आ गयी।"

वो आगे कहती हैं, "बलिया एक पुरुष बाहुल्य क्षेत्र है। यहां शुरू से ही पुरुषों का राज रहा है। मेरे पहले भी दो महिलाएं ग्राम प्रधान रही हैं। लेकिन उनके आड़ में उनके पतियों ने राज़ किया।"

चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल करने के बाद ग्राम प्रधान बन गयी। ग्राम प्रधान बनने के बाद उनके सामने कई चुनौतियां भी थीं। वो कहती हैं, "गाँव में सबसे बुरी हालत शिक्षा की थी, गाँव की समस्याओं को लेकर अधिकारियों को कई पत्र भी लिखे, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं होती।" वो आगे बताती हैं, "कई बार प्राथमिक स्कूलों के दौरे के दौरान मिड डे मिल के भोजन में गड़बड़ी भी पाई गयी, जिसका विरोध करने पर उन्हें स्कूलों के मास्टरों से कहा सुनी भी हुई नतीजतन अब किसी भी स्कूलों में उनका जाना वहां के शिक्षकों को पसंद नहीं है। लेकिन अब समय पर और बढ़िया मिड डे मिल रहा है।"

गाँव में सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की थी, इससे निपटने के लिए उन्होंने गाँव में आरओ प्लांट लगाया है। इससे ग्रामीणों को साफ और स्वच्छ पानी मिल रहा है।

इस बारे में गाँव के शिवसंकर राजभर (45 वर्ष) बताते हैं, "आरओ लगने से पीने का साफ पानी मिल रहा है। पढ़ लिख कर लोग बाहर चले जाते हैं, लेकिन आज गाँव के लिए अच्छा काम कर रहे हैं।"

स्मृति ने एक और मुहिम चलायी है, वो बताती हैं, "कई जगह पर नेकी की दीवार एक मुहिम चला रहे हैं, ऐसा ईराक जैसे कई देशों में होता है, जिसमें आपके पास जो भी सामान उसके काम का नहीं रहा जाता है, उसे वहां पर छोड़ जाते हैं और जिसको उस सामान की जरूरत होती है वो वहां से ले लेता है। यहां पर भी हमने इसकी शुरुआत की है।"

राज चौहान (15 वर्ष) बताते हैं, "हमने पहली बार कोई पढ़ी लिखी जागरूक ग्राम प्रधान देखी है, जो कभी भी प्राथमिक विद्यालयों में कैसी पढाई हो रही है, देखने के लिए आती हैं। प्राथमिक स्कूलों में अब बच्चों को सही तरीके से मिड डे मिल का भोजन दिया जाता है।"

उनकी ग्राम पंचायत के कई मजरों में अबतक बिजली नहीं आयी थी। स्मृति ने नुपुर गाँव, धनौटी, नकहरा, दक्षिण मोहल्ला और बलिया पूरब में बिजली आ गयी है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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