किसानों की रीढ़ माने जाने वाले ‘हीरा-मोती’ बन रहे समस्या

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किसानों की रीढ़ माने जाने वाले ‘हीरा-मोती’ बन रहे समस्याबाराबंकी में अपने बैलाें को खेत ले जाता एक किसान।

कम्यूनिटी रिपोर्टर: अरुण मिश्रा

विशुनपुर (बाराबंकी)। मुंशी प्रेमचंद की श्रेष्ठ कृति 'दो बैलों की कथा' में जहां बैलों के महत्व और स्वामिभक्ति को रेखांकित किया गया है, वहीं आज के परिवेश में 'हीरा-मोती' किसानों के लिए महत्वहीन हो गए हैं। मशीनी युग ने बैलों की उपयोगिता ख़त्म कर दी है। ऐसे में किसान बछड़ों के बड़े होते ही उन्हें खुला छोड़ देते हैं। जिससे कभी किसानों की समृद्धि की रीढ़ माने जाने वाले बैल और अन्य गोवंशीय पशु आज किसानों की फसलों के साथ राहगीरों के लिए भी समस्या बनते जा रहे हैं। इससे पहले बैलों की मांग के कारण बछड़ों का बधियाकरण होता था, लेकिन समय के अनुसार मांग कम होती गई और अब ग्रामीण बछड़ों को ऐसे ही छोड़ देते हैं।

बैलों को देखने के लिए लग जाती थी भीड़

गाँवों में पहले खेती में बैलों का उपयोग बहुतायत में होता था। किसानों के दरवाजों पर एक से बढ़कर एक बैलों की जोड़ियां बंधी होती थीं। जब गाँव का कोई व्यक्ति नए बैलों की जोड़ी लाता था, तो उन बैलों को देखने के लिए गाँव वालों का तातां लग जाता था, लेकिन अब गाँवों में बैलों का उपयोग बहुत कम हो गया है।

बैलों से खेती करने में होती थी आसानी

सिसवारा निवासी संकटा प्रसाद (70 वर्ष) बताते हैं, "हमने पूरी जिंदगी बैलों से ही खेती की है। बैलों से खेती करने में आसानी होती थी। जब चाहा बैलों से जुताई कर ली, चाहे गीला खेत हो या खेतों में पानी ही क्यों न भरा हो। बैल सभी जगह कार्य कर सकते थे, लेकिन ट्रैक्टर का उपयोग सभी जगह नहीं हो पाता, जिससे खेती करने में कठिनाई आती है। वैसे बैलों का उपयोग किसानों को अवश्य करना चाहिए।

अब चर जाते हैं फसल

इन दिनों गाँवों से लेकर कस्बों तक में गौवंशीय छुट्टा जानवरों की भरमार है। बैल, सांड, बछड़ा और गायें किसानों की फसलों के लिए मुसीबत बनी हैं। हालात यह हैं कि इनके झुण्ड के झुण्ड किसानों की फसलों को चर जाते हैं। जिससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

छोटे किसानों के लिए आफत

इनसे बचाव के लिए ज्यादातर बड़े काश्तकारों ने तो अपने खेतों में कटीले तारों की बैरीकेडिंग करा रखी है, वहीँ छोटे किसान दिनभर इनसे खेतों को बचाने की जुगत किया करते हैं। कई किसान खेतों में मचान बना कर रात भर इन जानवरों से अपनी मेहनत की कमाई को बचाते हैं। गाँवों में इनकी बढ़ती संख्या से किसान त्रस्त हैं। दूसरी ओर दर्जनों की संख्या में झुण्ड बना कर घूमते यह छुट्टा जानवर राहगीरों के लिए भी खतरा साबित हो रहे हैं। अक्सर सड़कों पर इनके बीच होने वाली भिड़ंत लोगों के लिए मुसीबत बन जाती है। वहीँ कई बिगड़ैल जानवर लोगों को सींग भी मार देते हैं। जिससे लोग इन झुंडों से भयभीत रहते हैं।

फसलें बचाना हुआ मुश्किल

मोहनपुर निवासी किसान अंकित चतुर्वेदी कहते हैं, "छुट्टा जानवरों के चलते फसलें बचाना मुश्किल है। पिछली गेहूं की फसल जानवर पूरी तरह चर गए। इस बार इन्ही जानवरों के चलते कोई बटाईदार खेत बोने को राजी नहीं हुए।" कोटवाकला निवासी अजय कुमार बताते हैं, " अब छुट्टा जानवरों से खेती बचाना छोटे किसानों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। गाँवों में इनकी बढ़ती तादाद से किसान परेशान हैं। पहले बैलों का खेती में उपयोग होता था इसलिए बछड़ों को बधिया कराया जाता था। मगर अब आधुनिक मशीनों के कारण बैलों का उपयोग खत्म हो गया है और अब यह किसानों के लिए बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं। "

प्रशासन उठाये कारगर कदम

बच्छराजमऊ निवासी यसवंत सिंह व कमलेश यादव कहते हैं कि इन छुट्टा जानवरों के लिए आश्रय स्थल बनाये जाने की जरूरत है। वरना किसानों को फसल बचाने के लाले हो जायेंगे। पटना के किसान बबेश दीक्षित ने प्रशासन से इस बाबत कारगर कदम उठाये जाने की मांग की है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

      

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