आप बीती: इमरजेंसी की वो रात याद कर कांप जाती है रूह, जबरन नसबंदी और नोचे जाते थे नाखून

संतराम बताते है 'इमरजेंसी के वक्त संजय गांधी पर नसबंदी का भूत सवार था। क्रूरता के मामले में उन्होंने तानाशाह हिटलर को भी फेल कर दिया था। देखिए वीडियो

Mohit ShuklaMohit Shukla   25 Jun 2019 6:55 AM GMT

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सीतापुर (उत्तर प्रदेश) । 25 जून 1975 की तारीख भारतीय इतिहास में काली तारीख के रूप में दर्ज है। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। इमरजेंसी की घोषणा होते ही देश के बड़े-बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। उस दौर के आंदोलनों के अगुआ जयप्रकाश से लेकर अटल बिहारी बाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी तक उस समय जेल में थे। आपातकाल का विरोध करने पर आम जनता को भी उस दौरान नहीं बख्शा गया गया था।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में रहने वाले संतराम त्रिवेदी ने भी उस दौर में जेल का अत्याचार झेला था। चंद्रा गांव निवासी संतराम त्रिवेेदी लोकतंत्र सेनानी के जिलाध्यक्ष भी थे। उन्होंने आपातकाल के उस अत्याचार को सहा है। गांव कनेक्शन से बात करते हुए वो कहते हैं,"25 जून 1975 की वो काली रात आज भी याद कर के दिल एक दम से सहम जाता है, तत्कालीन प्रधामनंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर राष्ट्रपति फ़ारूक़दीन अली अहमद ने संविधान की धारा 352 के आधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी। वह दर्दनाक रात आज भी झकझोर कर के रख देती है। ऐसी बेरहमी तो कभी ब्रिटिश हुकूमत में नहीं हुई थी, जितना इन्दिरा गांधी के शासन काल में झेलना पड़ा।"

उस दौर की कई तस्वीरें, अख़बार की कटिंग को दिखाते हुए वो संतराम त्रिवेदी बताते हैं कि जिन्होंने वो अत्याचार झेला उनमें आपातकाल का डर आज भी है। संतराम के मुताबिक उस वक्त उनकी उम्र महज 18 वर्ष थी। जब सरकार बच्चे बूढे और जवान सभी की जबरन नसबंदी करवा रही थी।

जब बाबा गुरुदेव ने भक्तों ने कहा जेलों को भजन ग्रह बना दो

संतराम बताते हैं, "सरकार की इस हिटलरशाही का विरोध करना किसी के भी बस की बात नहीं थी अगर कोई भी व्यक्ति सरकार के खिलाफ आवाज उठाता तो उसकी आवाज को दबा दिया जाता था। 25 जून की रात 12 बजे सरकार ने जब आपातकाल घोषित किया उस वक्त सभी दलों के नेता गिरफ्तार हो चुके थे। बाबा जय गुरुदेव को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। यह बात एक घंटे के अंदर पूरे देश में फैल गई। बाबा जी के सभी अनुयायियों ने आव्हान किया कि देश के सभी जेलों को भजन ग्रह बना दो।"


वो आगे बताते हैं, "हम लोगों ने रणनीति बनाई और 19 दिसम्बर को करीब तीन सौ साथियों के साथ सीतापुर कलेक्टर के यहां 'नसबंदी बन्द करो' के नारों के साथ जमकर नारेबाजी की। इस पर कलेक्टर ने हम लोगो को गिरफ़्तार कर लिया। जो भी साथी पुलिस के वाहनों में बैठकर जाने मना कर रहे थे, बेतों से हम लोगोंं ने नाखून कुचलवा दिए जाते"

'आपातकाल के बाद राजनीति में आए संजय गांधी ने क्रूरता में हिटलर को भी किया था फेल'

संतराम बताते है 'इमरजेंसी के वक्त संजय गांधी पर नसबंदी का भूत सवार था। क्रूरता के मामले में उन्होंने तानाशाह हिटलर को भी फेल कर दिया था। उसने एक आर्डर निकाला था कि सब को सूचित कर दीजिये अगर महीने भर के अंदर लक्ष्य पूरे नहीं हुए तो केवल वेतन ही नहीं रोका जाएगा, इसके साथ साथ कड़ा जुर्माना व निलंबन की भी कार्रवाई भी की जायेगी।"

संतराम के मुताबिक सबको पता था कि इसकी रोजाना मॉनीटरिंग होती थी, प्रमुख सचिव हर दिन समीक्षा करते और टेलीग्राफी और फैक्स के माध्यम से संजय गांधी को सूचित करते थे। इस तुग़लकी फरमान से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है की उस समय यूपी की नौकरशाही में कितना ख़ौफ़ भरा होगा। सरकार के उस बढ़ते दबाव के चलते अधिकारी लोग घरों से, खेत खलिहान से,और भी अन्य स्थानों से पकड़ कर जवान,बुजुर्गों,नाबालिगों तक की जबरन नसबंदी करा देते थे। गलत तरीके से नसबन्दी हो जाने के कारण पता नहीं कितने लोग मर भी गए। जनता के मौलिक अधिकारों को तो आपातकाल लगाकर के पहले ही छीन लिया जा चुका था।'

विरोधियों के हाथों में ठोकी जाती थीं कीले- पीड़ित

लोकतंत्र सेनानी द्वारिका प्रसाद बताते हैं कि जेल में वो निर्दयता बरती जाती थीं, जिसको याद करके आज भी आंखों में आंसू आ जाते हैं। लोगों के विरोध करने पर उनके नाखून निकाल लिए जाते थे। हाथों की हथेलियों में लोहे की कीलें ठोक दी जाती थी। संतराम बताते हैं कि आपातकाल का आज भी विरोध करते है। आज भी देश में लोग हर साल 26 जून को काला दिवस के रूप में मनाते है और इसका विरोध करते है।

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