दहेज़ हत्या और कन्या भ्रूण हत्या की ख़बरें काफी पढ़ी होंगी, पर इस खबर को पढ़कर आपको राहत मिलेगी

देश के उत्तर-पूर्व में स्थित ये राज्य असम, अरुणाचल ,मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर सिक्किम, नागालैंड, मिजोरम में कन्या भ्रूण हत्या और दहेज़ हत्या से अलग भारत की एक और तस्वीर दिखाते है इन छोटे राज्यों से पूरा देश चाहे तो सीख ले सकता हैं।

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   10 Jun 2019 6:07 AM GMT

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दहेज़ हत्या और कन्या भ्रूण हत्या की ख़बरें काफी पढ़ी होंगी, पर इस खबर को पढ़कर आपको राहत मिलेगी

लखनऊ। अक्सर आप आए दिन टीवी चैनलों, अखबारों में देश के विभिन्न राज्यों से दहेज़ हत्या, कन्या भ्रूण हत्या के मामलें देखते और पढ़ते हैं। देश में महिलाएं इतनी असुरक्षित हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य के मामले में उनके साथ इतना भेदभाव है कि भारत सरकार को "बेटी बचाओ-बेटी पढाओं" अभियान चलाना पड़ रहा है। लेकिन देश के उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों में न केवल लड़की के जन्म पर बड़े उत्सव का आयोजन किया जाता है बल्कि लड़की को स्वयं पति चुनने का अधिकार भी होता है।

यहां विवाह में दहेज़ नहीं दिया जाता बल्कि शादी के दौरान लड़की के आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वर पक्ष द्वारा एक निश्चित राशि जमा की जाती है। हो सकता है इस बात पर आपको जल्दी भरोसा न हो लेकिन ये खूबसूरत तस्वीरें हमारे देश की ही हैं।

अरुणाचल प्रदेश के नाम्साई जिले की निवासी छात्रा यारी तेजिंग ने बताया, "हमें टीवी और फिल्मों में देखने से ये मालूम होता है की देश के अन्य राज्यों में लड़की की शादी के टाइम दहेज़ देना पड़ता है और लड़की के जन्म पर ज्यादातर माता -पिता खुश नहीं होते। लेकिन हमारे तरफ ऐसा नही होता है यहां पर लड़की के जन्म पर घरवाले ख़ुशी मनाते हैं और शादी के टाइम पर लड़की वाले को दहेज नहीं देना पड़ता उल्टा लड़के वाले को "मेथुन "गाय ये सब चीजे लड़की को देना पड़ता हैं।"


अरुणाचल प्रदेश के अपर सुबंशिरी जिले के निवासी जामुन दुई बताते हैं, "हमारे यहां लड़की के जन्म के समय जब "जन्मनाल" गिरती है तो हम लोग सामाजिक उत्सव मनाते हैं और सबको एक साथ बुलाकर खाना पीना होता है। साथ ही हमारे यहाँ पर लड़की की शादी उसके पसंद के लड़के से ही की जाती है और शादी के समय होने वाले उत्सव का खर्च वर पक्ष के लोग उठाते है। वर पक्ष के लोगों को लड़की के माता-पिता को "मेथुन" उपहार जैसे सोने चांदी की चीजे, नकद इत्यादि देनी पड़ती है इसका उपयोग लड़की के माता-पिता या भाई सामाजिक उत्सव जिसमें वर पक्ष के लोग शामिल होते है और लड़की की भलाई के लिए करते हैं।"

वो आगे बताते हैं, "प्राचीन परम्परा में लड़कियों की पढाई पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था। पिछले कुछ दशकों में इस परम्परा में यहां के लोगों ने बदलाव किया है, अब यहाँ लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

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अरुणाचल प्रदेश के लोवर सियांग जिले के निवासी 40 वर्षीय मोमेर बोमजेन कहते हैं, "हम लोग गालो जनजाति में आते है, हमारे यहां लड़की और लड़के में किसी तरह का कोई भेदभाव नही किया जाता। यहाँ पर लड़का हो या लड़की पांचवें दिन नाभि (जन्म नाल) गिरने के बाद मुर्गी को जलाकर पुजारी द्वारा पूजा की जाती है और उत्सव होता हैं। यहाँ गालो, निशि, आदि, बोरी बोकर, जैसी तमाम जनजातियां हैं ज्यादातर रिश्ते अपने ही जनजाति में होते है पर लड़की अगर चाहें तो दूसरी जनजाति में भी लड़का पसंद कर सकती है।"

अरुणाचल प्रदेश में लड़की को शादी के लिए मनाने का तरीका बहुत रोचक है, मोमेर बताते है कि अगर किसी लड़के को कोई लड़की पसंद आ गयी तो शादी के लिए वो लड़की के घर के बरामदे में "तपुमगसोर" (एक रंगीन चादर) बिछा देता है अगर लड़की ने वो चादर उठा लिया तो उसे लड़की की तरफ से हां माना जाता है उसके बाद वर पक्ष के लोग शाम को लड़की के घर "ओपो" (अरुणाचल की स्थानीय शराब ) और मांस लेकर जाते है जहाँ लड़की पक्ष के लोग "मेथुन "(जंगली भैस या अन्य पशु) की मांग रखते है, जितने मेथुन पर बात तय होती है उतने मेथुन का पैसा या आभूषण वर पक्ष के लोग लड़की पक्ष के लोगों को देने की हामी भरते है और तब रिश्ता तय होता है।


असम प्रदेश के विश्वनाथ जिले के निवासी कुकिल बरुह जो कि सोशल वर्कर हैं बताते हैं कि नार्थ ईस्ट में असम, अरुणाचल, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, सिक्किम, मणिपुर में अक्सर विजिट पर रहता हूँ। इधर दहेज़ हत्या या कन्या भ्रूण हत्या के मामलें आपको नहीं मिलेंगे और न ही उत्तर-पूर्व के इन राज्यों में लड़का और लड़की के बीच किसी तरह का कोई भेदभाव किया जाता है।

कुकिल बताते हैं, "आसाम का सबसे बड़ा त्यौहार "बिहू " का होता है, जो की वैशाख के पहले दिन (अप्रैल ) महीने में होता है। इसे "रोंगाली बिहू" कहा जाता हैं, इसमें पहले दिन गाय को नहला-धुलाकर उसकी पूजा की जाती है फिर त्यौहार शुरू होता है। फेस्टिवल में सबकों शामिल होना रहता है। त्यौहार के दौरान लड़की पूरी रात "बिहुवान" (पटका,अंगवस्त्र ) बनाती है जिसे "सिम्बल ऑफ़ लव "और "सिम्बल ऑफ़ रेस्पेक्ट "माना जाता है। लड़की अपने पसंद के लडकें को पहना देती है अगर दोनों राजी होते है तो शादी करा दी जाती हैं।

कुकिल आगे बताते है कि "आपको यह जानकर हैरानी होगी की यहाँ के लोग आसामीज जिनमे "बोरोज"," कार्बीज" हैं और बहुत सी जनजातियाँ हैं, उनका ये मानना है कि लड़की लक्ष्मी या देवी का रूप है। विवाह के लिए लड़की या लड़का दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं। दहेज़ का कोई मुद्दा इधर नहीं है एक जोड़ी कपड़े में लड़की विदा होती है।


शादी के बाद के यहां लड़की नहीं लड़का विदा होता है ..,

मेघालय जिले के वेस्ट गारों के निवासी छलांग कमार्क बताते हैं, "गारों संकृति में दहेज़ कही भी स्वीकार नही किया जाता यही नही पूरे नार्थ ईस्ट में कही दहेज़ का कांसेप्ट नही है। हमारे यहाँ शादी के लिए फसल कटाई के समय "वन्गला महोत्सव "का आयोजन किया जाता हैं जिसमे लड़कियों को अपने पसंद का लड़का चुनने का अधिकार माता-पिता द्वारा लड़की को दिया जाता हैं ।और सबसे बड़ी बात ये है कि हमारी संकृति में लड़की विदा होकर लड़के के घर नहीं जाती बल्कि लड़के को विदा कराकर लड़की अपने घर लेकर आती हैं।

छलांग आगे बताते हैं कि विश्व के बहुत से देशों से छात्र -छात्राएं हमारी संस्कृति पर रिसर्च के लिए इधर आते है और दो-तीन साल रहकर इधर रिसर्च करते है और थीसिस लिखते है हमें अपनी संकृति पर गर्व हैं।

मेघालय प्रदेश के वेस्ट गारो हिल्स के तुरा जिलें के निवासी प्रीडीथ टी संगमा बताते है" कि इधर लड़की के जन्म के टाइम उत्सव मनाया जाता है व् पारम्परिक उत्सवो में महिलाओ की भागीदारी रहती हैं। मेघालय में लड़का -लड़की में कोई भेद नही हैं दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं।

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