सज़ा-ए-मौत का हकदार इन्हें भी होना चाहिए
डॉ. शिव बालक मिश्र 2 April 2016 5:30 AM GMT
गुरुवार को पश्चिम बंगाल में निर्माणाधीन पुल गिरा जिससे 24 की मौत हो चुकी है, दर्जनों अस्पताल में मौत से जूझ रहे हैं। कोई भूकंप नहीं, बमबारी नहीं, सुनामी या अन्य दैवी आपदा नहीं फिर भी पुल बनाने वाली कम्पनी कहती है, ‘‘भगवान की मर्जी।’’ यह भगवान की मर्जी नहीं, हत्याएं हैं जिसके लिए इंसान का लालच जिम्मेदार है। अनेक बार दवा बनाने वाली कम्पनियां नकली दवाएं बाजार में उतार देती हैं जिन पर पश्चिमी देशों में प्रतिबंध होता है। यूनियन कार्बाइड जैसी कम्पनियां जहरीली गैसें घनी आबादी वाले इलाकों में बनाती हैं और सरकारी अधिकारी इसकी इजाजत देते हैं। बाद में गुनहगार इधर-उधर हो जाते हैं, मुकदमे चलते रहते हैं।
अनेक बार हड़तालें होती हैं और उसमें फंसकर अनेक मरीज़ अस्पताल नहीं पहुंच पाते और दम तोड़ देते हैं। हड़तालियों की तोड़फोड़ से रेलगाडि़यां नहीं चलती और निजी कारें भी टूटती हैं जिससे अनेक मौतें होती हैं। अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और आगजनी के मुकदमे भी लिखाए जाते हैं। जिम्मेदार अज्ञात नहीं होते, जिम्मेदार तो हड़ताल का आवाहन करने वाले नेतागण होते हैं। सरकारी मशीनरी जिसे लोगों के जान-माल की हिफ़ाज़त करनी चाहिए, तमाशबीन बनी रहती है और हरकत में तब आती है जब नुकसान हो चुका होता है।
इतिहास गवाह है कि हिटलर, मसोलिनी, ईदी अमीन और सद्दाम हुसैन को गुनहगार माना गया और सजा मिली लेकिन भारत का बंटवारा जिन लोगों ने किया उन लोगों को गुनहगार नहीं माना गया जबकि उनकी वजह से लाखों लोगों की जानें गई, करोड़ों बेघर और बेपनाह बने। नेता अपने-अपने देशों में हीरो बन गए और मरने वाले मर गए। आखिर उन पर मुकदमा कौन चलाएगा?
हमारी माननीय अदालतों ने बिरली से बिरली (रेयरेस्ट ऑफ द रेयर) हत्या के मामले में मृत्युदंड का प्रावधान किया है लेकिन निर्माणाधीन पुल का इस तरह गिर जाना क्या बिरली से बिरली घटना नहीं है। इरादतन या तो घटिया सामान इस्तेमाल किया गया होगा या डिजाइन में दोष होगा या फिर कारीगर सस्ते रखे गए होंगे। इन अनेक हत्याओं का क्या दंड होगा और किसे मिलेगा दंड?
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