तापमान बढ़ने पर गन्ने में करें कीट-रोग प्रबंधन

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तापमान बढ़ने पर गन्ने में करें कीट-रोग प्रबंधनgaonconnection

लखनऊ। प्रदेश में ज्यादातर क्षेत्रों में किसानों ने गन्ने की बुवाई पूरी कर ली है। उत्तर प्रदेश में ख़ास तौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिकांश खेती गन्ने की ही होती है। ऐसे में किसानों के लिए ये जानना बेहद ज़रूरी है कि गन्ने की फसल को कौन से रोग बर्बाद कर सकते हैं और उनके रोकथाम के लिए किसान क्या कर सकते हैं।

गन्ने की फसल को इस समय कीट और रोग से बचाना सबसे जरूरी होता है। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक ए के शाह बता रहे हैं कि कैसे गन्ने को कीट और रोग से सुरक्षित रखा जा सकता है।

अंकुर बेधक

उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में अंकुरण से चार माह तक इसका प्रकोप रहता है। इसके लारवा गन्ने को बेधकर छेद बनाते हैं, जिसमें से सिरके जैसी बदबू आती है।

रोकथाम: अंकुर बेधक के प्रकोप से ग्रस्त गन्नों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। एकीकृत नाशीजीवी प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए अथवा मेटाराइजियम एनिसोप्ली की 2.5 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।

अगोले की सड़न

ऊपर की नयी पत्तियां प्रारम्भ में हल्की पीली या सफेद पड़ जाती है जो बाद में सड़ कर नीचे गिर जाती हैं। यह रोग वर्षाकाल में अधिक लगता है तथा गन्ने की बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

रोकथाम: रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गांठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नहीं करना चाहिए। स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए, जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार (54 सेंटीग्रेट ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिशत आर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो। पौधशालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए, जिससे बारिश में पानी का जमाव न हो सके।

उकठा रोग

प्रभावित थान के गन्नों की पोरियों का रंग हल्का पीला हो जाता है। गन्ने का गूदा सूख जाता है तथा रंग भूरा हो जाता है। 

रोकथाम: रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गांठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नहीं करना चाहिए। स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए, जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार (54 सेन्ट्रीगेट तापमान पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिशत आर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो। ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।

कडुआ रोग

रोग ग्रस्त गन्ने की पत्तियां पतली, नुकीली तथा पोरियां लम्बी हो जाती है। प्रभावित गन्नों में छोटे या लम्बे काले कोड़े निकल आते हैं, जिन पर कवक के असंख्य बीजाणु स्थित होते हैं। इस रोग का प्रभाव पेडी गन्ने में अत्यधिक होता है।

रोकथाम: रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए। बोने के लिए बीज गन्ने का चयन स्वस्थ एवं रोग रहित खेतों से करना चाहिए ताकि अगली फसल को रोग मुक्त रखा जा सके। रोगी थान को जड़ सहित उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि स्वस्थ गन्नों में दुबारा संक्रमण न हो सके। प्रभावित खेत में कम से कम एक वर्ष तक गन्ना नहीं बोना चाहिए। रोग से प्रभावित खेत में कटाई बाद उसमें पत्तियों एवं ठूठे को पूरी तरह जलाकर नष्ट कर देना चाहिए तथा खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।

चोटी बेधक

इसका प्रकोप गन्ने की फसल में वृद्धि की सभी अवस्थाओं में होता है प्रभावित गन्ने में पत्तियों सूखकर डेड हार्ट बना देती है तथा गन्ने की मध्य सिरा में एक लाल धारी सी पड़ जाती है। विकसित गन्ने में झाड़ीनुमा सिरा बन जाती है।

रोकथाम: चोटी बेधक के प्रकोप से ग्रस्त गन्ने को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। मार्च से जुलाई तक 15 दिन के अन्तराल पर ट्राइकोडरमा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

तना बेधक

कीट का प्रकोप वर्षा काल के बाद जल भराव की स्थिति में अधिक पाया जाता है। यह कीट तनों में छेद करके इसके अन्दर घुस जाता है तथा पोरी के अन्दर का गूदा खा जाता है, जिसके कारण उपज में कमी आ जाती है।

रोकथाम: गन्ने की सूखी पत्तियों को काट कर अलग कर देना चाहिए। एकीकृत नाशीजीवी प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अन्तराल पर शाम को प्रयोग करना चाहिए। मोनोक्रोटोफास 36 एसएल दो लीटर प्रति हेक्टेयर 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

दीमक

बोये गये गन्ने के दोनो सिरों से घुस कर अन्दर का मुलायम भाग खाकर उसमें मिट्‌टी भर देता है। ग्रसित पौधों की बाहरी पत्तियां पहले सूखती हैं और बाद में पूरा गन्ना सूख जाता है। ऐसे पौधों से दुर्गन्ध नहीं आती तथा पौधा आसानी से खिंचने पर मिट्‌टी से उखड़ आता है।

रोकथाम: बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व मिलाने से खेत में दीमक के प्रकोप में कमी आती है। ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छिटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक का नियंत्रण हो जाता है। इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 एसएल 350 मिली अथवा क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 2.5 ली प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

पत्ती की लाल धारी

गन्ने की पत्तियों पर लाल रंग की धारियां निचली सतह पर पड़ जाती हैं, जिसके अत्यधिक प्रकोप में पूरी पत्ती लाल हो जाती है। पत्तियों का क्लोरोफिल समाप्त हो जाता है तथा बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

रोकथाम: रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गांठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए। स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।

पायरिला

कीट का सिरा लम्बा व चोंचनुमा होता है। ये वयस्क गन्ने की पत्ती से रस चूसकर क्षति पहुंचाते है।

रोकथाम: अण्ड समूहों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। डाइक्लोरोवास 76 प्रतिशत ईसी 375 मिली 800-1000 ली पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

 

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