'यहां जिन्दा की फिक्र नहीं, मरने के बाद कौन पूछता है'

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यहां जिन्दा की फिक्र नहीं, मरने के बाद कौन पूछता है

गोरखपुर। अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख देने वाले चौरी-चौरा कांड के शहीदों की याद में बनाया गया स्मारक बदहाली का शिकार है। स्मारक की देखरेख करने वाले जिला पंचायत विभाग के एक कर्मचारी ने कहा, यहां जिंदा लोगों की फिक्र नहीं मुर्दों को कौन पूछता है।

चौरा-चोरी गांव में यह स्मारक उन 19 वीरों की याद में बनवाया गया था, जिन्हें थाना फूंकने के इल्जाम में 2 जुलाई 1923 को फांसी की सजा दी गई थी।

स्मारक में जगह-जगह दीवार टूट गई। पार्क के पेड़-पौधे मुरझा गए हैं। बिजली का बिल जमा नहीं होने से बिजली विभाग ने कनेक्शन काट दिया है। कई एकड़ में फैले स्मारक की देखभाल की जिम्मेदारी एक इंचार्ज और एक माली पर है।

स्मारक के इंचार्ज घुरहू यादव बताते हैं,  हम यह 1992 से है हमारी जिम्मेदारी केवल इतनी है कि हम इसकी देखभाल करें। स्मारक की देखरेख की जिम्मेदारी जिला पंचायत की है, लेकिन कोई देखने नही आता। साल में दो-चार बार अधिकारी आते हैं, उनसे शिकायत की लेकिन वो भी फूल-माला चढ़ाकर चलते बने।

पुस्तकालय दिखाते हुए घुरहू यादव आगे कहते हैं, देखिए ये लाखों रुपये की कीमती किताबें हैं अंदर लेकिन आज तक ताला नहीं खुला। दीमक सारी किताबें खा गईं। स्थानीय लोग चाहते हैं उनके इलाके के गौरव का कुछ हो लेकिन नेता और अधिकारी तवज्जो नहीं दे रहे।

स्मारक इंचार्ज के हां में हां मिलाते हुए माली रामप्रसाद ने बताया,  जब पार्क हरा-भरा था सैकड़ों लोग रोज सुबह घूमने आते थे, लोग तो अभी भी आते हैं लेकिन मायूस होकर लौट जाते हैं।

इस बारे में बात करने पर जिला पंचायत सदस्य ने स्मारक की बदहाली की बात मानते हुए कहा, चौरी-चौरा पूरे जिले के लिए सम्मान की बात है। छोटे-मोटे काम हम पहले भी करवाते रहे हैं। अब चुनाव के बाद ही कुछ होगा।

हालांकि जिला पंचायत विभाग के एक कर्मचारी ने नाम न लिखने की शर्त पर जो बताया वो काफी कई सवाल खड़े करता है,  यहां जिन्दा लोगों की कोई फ़िक्र नहीं है तो मरने के बाद कौन पूछता है।

स्मारक की दुर्दशा से गांव के लोग भी काफी दुखी हैं। चौरीचौरा निवासी राम दुलारे कहते हैं शहीदों की कुर्बानी के एवज में सरकार ने स्मारक बनाकर उन्हें सम्मान तो दे दिया लेकिन अब तो दुर्गती हो रही है वो वीरों का अपमान है।

 

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