लखनऊ। देश में साल 2014 में खुदकुशी के कुल 1 लाख 31 हज़ार 666 मामले दर्ज़ किए गए हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में साल 2014 में कुल 3,590 लोगों ने आत्महत्या की। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने राज्यसभा में किसानों की समस्याओं से जुड़े एक पूरक सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय के आंकडों के हवाले से कहा कि 2014 में देश में कुल एक लाख 31 हजार 666 लोगों ने आत्महत्या की थी। उन्होंने कहा कि इस संख्या में आत्महत्या करने वाले किसानों और श्रमिकों की संख्या भी शामिल है। राधामोहन सिंह ने बताया कि 2014 में 5,650 किसानों और छह हजार से अधिक श्रमिकों ने आत्महत्या की थी। साल 2014 में आई वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन यानि WHO की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में हर 40 सेकंड में एक इंसान खुदकुशी करता है। NCRB यानि नेशनल क्राइब ब्यूरो के आंकड़ों की तस्दीक करने से पता चलता है कि महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों का खुदकुशी का आंकड़ा दुगना है। साल 2014 में खुदकुशी करने वाले 80 फीसदी लोग पढ़े लिखे थे।
बीते 6 सालों के खुदकुशी के आंकड़े
साल खुदकुशी
2009 1,27,151
2010 1,34,599
2011 1,35,585
2012 1,35,445
2013 1,34,799
2014 1,31,666 (NCRB के आंकड़े)
‘पढ़े लिखे लोग करते हैं ज्यादा खुदकुशी’
केजीएमयू के सीनियर साइकोलॉजिस्ट और जिरियाटिक स्टडीज़ के हेड डॉ एस सी तिवारी कहते हैं, ”देश में पढ़े लिखे लोग ज्यादा आत्महत्याएं कर रहे हैं। इनके मुकाबले अशिक्षितों का आंकड़ा बेहद कम है। दुनिया में प्रति लाख आबादी के हर साल 11 से 13 फीसदी लोग खुदकुशी करते हैं। सालों से इन आंकड़ों में कोई तब्दीली नहीं आई है। कोई इंसान खासतौर पर तीन अवस्थाओं में आत्महत्या करता है। पहली अवस्था इगोइस्टिक, दूसरी अवस्था इनॉमिक, तीसरी अवस्था अल्ट्रूइस्टिक। इगोइस्टिक अवस्था वाला शख्स इसलिए खुदकुशी करता है क्योंकि उसे लगता है कि अब वो समाज, परिवार, और अपनों का हिस्सा नहीं रहा। इनॉमिक अवस्था में खुदकुशी करने वाला शख्स बुढ़ापे या बीमारी की वजह से परेशान होता है। वहीं अल्ट्रूइस्टिक अवस्था वाला शख्स दूसरे की भलाई के लिए खुदकुशी करता है जैसे अपनी मांगें मनवाने के के लिए सामूहिक आत्मदाह या खुदकुशी।”
हेडर- राज्यों में हुई आत्महत्याओं के आंकड़े
राज्य खुदकुशी के मामले
महाराष्ट्र 16307
कर्नाटक 10945
केरल 8446
मध्य प्रदेश 9039
उत्तर प्रदेश 3590
असम 3546
छत्तीसगढ़ 5683
गुजरात 7225
हरियाणा 3203
झारखंड 1300
राजस्थान 4459
पश्चिम बंगाल 14310
दिल्ली 2095 (NCRB के आंकड़े)
‘दबाव के चलते युवा कर रहे हैं खुदकुशी’
सीनियर साइकोथेरेपिस्ट डॉ नेहा आनंद का कहना है कि आज युवाओं में धैर्य की कमी है उनपर परफॉर्मेंस का प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ गया है जिसके चलते वो सुसाइड अटेम्प्ट कर रहे हैं। डॉ नेहा आनंद बताती हैं, ”आज का हमारा युवा प्रेशर हैंडल नहीं कर पा रहा है। उनकी अपेक्षाएं ज्यादा हैं जिन्हें वो मैच नहीं कर पा रहे हैं। प्रोफेश्नल स्टडीज़ करने वाले बच्चों पर ज्यादा दबाव है। पैसा, शोहरत और जल्द से जल्द अमीर बनने का ख्वाब भी युवाओं को परेशान कर रहा है। अदरअसल खुदकुशी करने वाले लोग दो तरीके से सोचते हैं एक वो जिनके मन में बार-बार आत्महत्या का ख्याल आता है और दूसरे वो सोचते ही खुदकुशी कर लेते हैं।”
‘समाज का बदलता स्वरूप भी खुदकुशी के लिए ज़िम्मेदार’
समाजशास्त्रियों का कहना है समाज का बदलता स्वरूप, गाँवों से शहरों की बढ़ता पलायन, पारिवारिक तनाव और अकेलापन भी खुदकुशी के तेज़ी से बढ़ते मामलों के लिए ज़िम्मेदार है। समाजशास्त्री संजय सिंह बताते हैं, ”हमारा समाज सिंपल सोसायटी से कॉम्पलेक्स सोसायटी की ओर बढ़ता जा रहा है। युवा कमाने और रोज़गार के चक्कर में घर से दूर जा रहे हैं। शहर में आने के बाद उनकी चाहते पूरी नहीं हो रही हैं। जो सहयोग और सपोर्ट उन्हें गाँव में अपने लोगों के बीच मिल रहा था वो उसे शहरी परिवेश में नहीं मिल पाता जिसके चलते उनका तनाव चरम पर पहुंच जाता है। पैसे की कमी भी खुदकुशी की एक बड़ी वजह है। मध्यम वर्गीय परिवार से जुड़े लोगों का भी यही हाल है वो तनाव में हैं अपनी ज़िम्मेदारियों को लेकर।”