इटौंजा (लखनऊ)। गोमती के तराई में बसे गांवों में बसे लोग गोमती का जलस्तर देखकर सहमे हुए हैं। दशकों से तराई का दर्द झेल रहे इटौंजा इलाके में फिर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। बाढ़ की आशंका को देखते हुए कई ग्रामीण परिवार और पशुओं के लिए सुरक्षित स्थान खोजने में लगे हुए हैं।
गोमती में बाढ़ आने पर सबसे पहले बक्शी का तालाब तहसील की तराई क्ष्रेत्र के सुलतानपुर, बहादुरपुर, लासा, हरदा, अकड्रिया खुर्द, हीरा, पुरवा, अकड्रिया कलां, दुघरा, जमखनवा बेल्ट नदी के बिलकुल किनारे बसे होने के कारण सबसे पहले प्रभावित होते हैं। बरसात के मौसम में तराई क्षेत्र के निवासियों की नजर हमेशा नदी पर बनी रहती है यही नही जलस्तर की नाप के लिए यहां के किसान गोमती के किनारे अपने-अपने तरीके से लकड़ी गाड़कर या कोई अन्य निशान लगाकर गोमती के बढ़ते जलस्तर का आकलन कर लेते हैं। इन गांवों में ज्यादार दूध और सब्जियों का काम होता है। बाढ़ के चलते ये दोनों काम प्रभावित होते हैं।
लखनऊ जिला मुख्यालयल से करीब 25 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में ग्राम पंचायत जमखनवा के प्रधान सौरभ गुप्ता बताते हैं, “ नदी बढ़ने के कारण दुघरा पुलिया के ऊपर पानी बह रहा है, जिससे दुघरा-जमखनवा जनसंपर्क मार्ग बाधित हो गया है। साथ ही भगवत दास बाबा वाले गोमती से जुड़े नाले में भी पानी भरने के साथ ही सैकड़ों बीघा फसल डूब रही है। नदी के पास बसे लासा गांव के निवाशी विजय यादव ने बताया, “पानी गांव के किनारे तक आ गया है तथा फसलें डूब रही है। बाढ़ के चलते अकडरिया की लल्ली समेत सैकड़ों किसानों की धान की फसल डूब रही है। अगर इसी रफ्तार में पानी बढ़ता रहा तो एक-दो दिन में घरों में पानी पहुंच जाएगा।”
तराई में बाढ़ का इतिहास
ग्राम अकड्रिया कलां के रामगोपाल (82 वर्ष) बताते हैं, 1960 और 1985 में आयी भीषण बाढ़ में तराई के गांवों में घर नहीं बचे थे। बाढ़ रातों-रात आई थी। 1963 में तो तत्कालीन मुख्यमंत्री सीबी गुप्त ने हमारे यहां युद्धस्तर पर राहत और बचाव कार्य कराए थे। 1985 में भी बहुत पानी था। उसके बाद फिर बड़ी बाढ़ 1998 में आयी, जिस्रमे तराई के सारे संपर्क मार्ग ख़त्म हो गए और ग्रामीणों को निकालने के लिए स्टीमर लगाये गए। बाद में 2005-2007 में भी इलाके में स्टीमर लगाने पड़े थे।
किसानों की कमर तोड़ देती है बाढ़
राजधानी से नजदीक होने के चलते इस इलाके में दूध और सब्जी का काम बड़े पैमाने पर होता है। जमीन उपजाऊ है इसलिए दूसरे फसलें भी अच्छी होती हैं लेकिन बाढ़ सब बर्बाद कर देती है। इलाके के बड़े गांव जमखनवा के पूर्व प्रधान ओम प्रकाश मिश्रा बताते हैं, “बाढ़ तो लगभग हर साल आती है। बीते 3-4 सालों की छोड़ दे तो हर साल बरसात में गोमती का बढ़ा जलस्तर तराई क्षेत्र की फसलों को डुबो देता है। हजारो बीघे तैयार धान की फसल गोमती की भेट चढ़ जाती है। इसी के चलते तराई के लगभग 70 फीसदी किसान बैंकों के कर्जे की चपेट में है। लेकिन प्रशाशन के मानकों पर उसे बाढ़ नहीं माना जाता।” वो आगे कहते हैं, “मोहनलाल गंज से पूर्व में सांसद रही सुशीला सरोज और अन्य जन प्रतिनिधियों ने गोमती के किनारे बांध बनवाने का वादा किया लेकिन योजना सिर्फ कागजों तक और वादे सिर्फ चुनाव तक सिमित रह गए।”
रिपोर्टर- अश्वनी दिवेद्वी