लखनऊ। वैसे तो पूरा विश्व एक मई को मजदूर दिवस मना रहा है लेकिन लालबाग के एक होटल में आठ साल का छोटू (काल्पनिक नाम) बर्तन धुलेगा। उसको ये तक भी नहीं पता है कि एक मई को मजदूर दिवस भी मनाया जाता है और इस दिन मजदूरों की छुट्टी होती है।
आए दिन होटलों पर आपको छोटे-छोटे बच्चे चाय लाते, बर्तन धुलते और मालिकों की बातें सुनते दिख जाएंगे। ये ऐसे बच्चे हैं जो अपने परिवार का खर्च उठाने के लिए मजदूरी करते हैं ताकि परिवार को कम से कम दो समय का खाना मिल सके। चौक स्थित फल का ठेला लगाने वाला 16 साल के उदय (काल्पनिक नाम) बीते दो साल से ये ही करता है। जब उससे बात की गई तो उसने बताया कि घर में मां है जो दूसरे के घरों में बर्तन मांजती है, दो बहनें हैं, अब सबका पेट पालने के लिए ठेला न लगाऊं तो क्या करूं।
श्रम विभाग आए दिन छापेमारी करके होटलों, ढाबों और रेस्टोरेंट से बाल मजदूरों को रिहा कराता है और उसके बाद इन बच्चों को श्रम विभाग से संबद्ध स्कूलों में प्रवेश भी दिलाया जाता है ताकि ये पढ़ सकें लेकिन पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए ये बच्चे फिर से किसी न किसी होटल आदि में काम करने लगते हैं। हजरतगंज के जीपीओ स्थित गाँधी प्रतिमा पर खस्ता की दुकान पर साफ-सफाई करने वाला 10 साल के राजू से जब पूछा कि मजदूर दिवस के दिन भी तुम काम क्यों कर रहे हो तो उसने बताया कि ये क्या होता है, हमको नहीं पता। स्कूल जानने के बारे में जब उससे पूछा गया तो उसने बताया कि मेरे मम्मी पापा नहीं भेजते, वो कहते हैं फेरी करो, तभी तुमको खाना मिलेगा, नहीं तो नहीं।
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस जिसको मई दिवस के नाम से जाना जाता है, इसकी शुरुआत 1886 में शिकागो में उस समय शुरू हुई थी, जब मजदूर मांग कर रहे थे कि काम की अवधि आठ घंटे हो और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी हो। इस हड़ताल के दौरान एक अज्ञात व्यक्ति ने बम फोड़ दिया और बाद में पुलिस फायरिंग में कुछ मजदूरों की मौत हो गई, साथ ही कुछ पुलिस अफसर भी मारे गए।
इसके बाद 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय महासभा की द्वितीय बैठक में जब फ्रेंच क्रांति को याद करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया कि इसको अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाए, उसी वक्त से दुनिया के 80 देशों में मई दिवस को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाने लगा।
रिपोर्टर – दीक्षा बनौधा