बुंदेलखंड में तेज़ी से बढ़ी छुट‍्टा जानवरों की समस्या

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बुंदेलखंड में तेज़ी से बढ़ी छुट‍्टा जानवरों की समस्याgaonconnection

बांदा स्थित बांदा कृषि एवं प्राद्योगिकी विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. ब्रजेश कुमार गुप्ता पिछले एक साल से गाँव-गाँव जाकर लोगों को अन्ना प्रथा रोकने के लिए जागरूक कर रहे है। गाँव कनेक्शन के शेखर उपाध्याय से उनकी बातचीत के अंश।

अन्ना प्रथा शुरू होने की मुख्य वजह 

क्या है, इसकी शुरुआत कैसे हुई?

यह प्रथा सौ वर्षों से भी ज्यादा पुरानी प्रथा है, लेकिन इस प्रथा ने पिछले 10 वर्षों में अधिक तूल पकड़ा है। इसकी शुरुआत प्राकृतिक कारणों से हुई लेकिन आज इसने प्रथा की शक्ल ले ली है और पिछले तीन वर्ष के सूखे ने इसको और बढ़ावा दिया है। आज इसकी वजह से बहुत सी समस्या उपजी है।

इस प्रथा की वजह से कौन-कौन सी नई समस्याएं उपजीं?

नई समस्या है कि इस प्रथा को बढ़ावा मिल रहा और इसके वजह से बुंदेलखंड की खेती पर बहुत असर पड़ा है। पहले सूखे की वजह से लोगों ने इनको अन्ना मानकर छोडऩा शुरू किया लेकिन जब बुंदेलखंड में समय अनुकूल था तब भी ये प्रथा जारी रही। अप्रैल से जुलाई के बीच की गर्मी और जानवरों के लिए चारे की कमी की वजह से किसान इनको अन्ना मान छोड़ देता है और इसकी वजह से खरीफ  की फसल पर बहुत बुरा असर पड़ा जिन किसानों के पास खेती के संसाधन थे उन्होंने भी अन्ना जानवरों की डर की वजह से खेती नहीं की वरना ये जानवर उनके भी खेतों को चर जाते। खेती न करना इसका क ोई समाधान नहीं है क्योंकि यह इसको और बढ़ावा ही देता है। इससे किसान और बेफि क्र होकर अपने पशुओं को छोड़ देता है।

इस प्रथा के चलते इन पशुओं के नस्ल पर क्या असर पड़ा है?

इस प्रथा से पशुओं की नस्ल बहुत प्रभाव पड़ा है। आज बुंदेलखंड में गोवंश के अधिकांश जानवरों का वजन और कद.काठी औसत से भी कम है और इनके दुग्ध उत्पादन में बहुत गिरावट आयी है। जब गायों को छोड़ दिया जाता है तब उनमें से अधिकतर असामयिक गर्भ धारण कर लेती है और इनसे पैदा हुआ बच्चा कमजोर होता है।दूसरी वजह नस्ल कमजोरी की यह है जब किसान अपने पशुओं को अपने पास रखता है तब वह उसका मेल एक अच्छी नस्ल के सांड से करता है जो की इस प्रथा के कारण नहीं हो पा रहा है।  इन्ही कारणों की वजह से इन जानवरों की जनसंख्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है।

लगातार बढ़ रही अन्ना जानवरों की जनसंख्या को कैसे काबू किया जा सकता है?

जनसंख्या काबू करने का एक ही तरीका है जो खराब नस्ल के सांड हो उनको बाँझ बना दिया जाए। इससे हम इनकी जनसंख्या पर कुछ हद तक काबू पा सकते हैं और नस्ल को खराब होने से बचा सकते हैं। अच्छे नस्ल के सांड़ से आगे की नस्ल सुधरेंगी।

इस प्रथा को बंद करने के लिए क्या करना होगा?

इसको पूरी तरह काबू नहीं किया जा सकता है। इसके लिए किसानों को जागरूक भी करना होगा। जागरूकता लाने के लिए किसानए आम नागरिकए सरकार और शिक्षा संस्थाओं को साथ मिलकर काम करना होगा। जो जानवर छुट्टे घूम रहें है उनके लिए गाँवों के बीच गौशाला जैसा कुछ बनाकर उनको खुले में घूमने से रोकना होगा ताकि फसलों की बर्बादी न हो और इसमें गाँव की न्याय पंचायत और गाँवों के बीच की आपसी समझदारी बहुत मददगार साबित हो सकती है। साथ ही जानवरों के लिए चारागाह बनाने होंगे।

 

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