नई दिल्ली (भाषा)। भारत ने चंद्रयान-2 की अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना में ‘एकला चलो’ का रुख अपनाते हुए रूस से किसी भी तरह की मदद नहीं लेने का फैसला किया है। चंद्रयान-2 परियोजना के लिए भारत हालांकि अमेरिका से थोड़ी मदद ले सकता है।
इसरो के अध्यक्ष ए एस किरण कुमार ने कहा कि चंद्रयान में देश में बने लैंडर और रोवर होंगे और इसे दिसंबर 2017 या 2018 की शुरुआत में भेजा जाएगा। इस यान में ऐसे उपकरण होंगे जो नमूने जमा करेंगे और धरती पर आंकड़े भेजेंगे। चंद्रयान इसरो की तरफ से अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले अभियानों की एक सीरीज़ है। इसरो अपने पहले चंद्रयान अभियान में चांद पर पानी की एक अहम खोज करने में कामयाब रहा था।
भारत ने रूस को इस परियोजना से हटा दिया। दिसंबर 2010 में भारत ने इसपर सहमति जताई थी कि रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकॉसमोस चंद्रयान के लूनर लैंडर के लिए जिम्मेदार होगा जबकि इसरो ऑरबिटर और रोवर के साथ ही साथ जीएसएलवी के माध्यम से उसे प्रक्षेपित भी करेगा। बाद में में ये फैसला किया गया कि लूनर लैंडर के विकास का काम भी इसरो करेगा और चंद्रयान-2 पूरी तरह एक भारतीय अभियान होगा।
इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ”रूसी लैंडर के साथ कुछ दिक्कतें थीं और उन्होंने कहा था कि उन्हें परीक्षण के लिए कुछ और समय चाहिए। इस बीच, हमने इसे देशज स्तर पर विकास करने का फैसला किया।” भारतीय मिशन होने के बावजूद बावजूद इसरो परियोजना के लिए नासा की सेवाएं लेगा।