घरेलू हिंसा महिलाओं की आत्महत्या का कारण

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घरेलू हिंसा  महिलाओं की आत्महत्या का कारणgaonconnection

लखनऊ। गोंडा जिला के ब्लॉक करनैलगंज में संगीता (28 वर्ष) ने पिछले दिनों अपने मायके में आग लगाकर खुदकुशी कर ली। संगीता कुछ महीनों से मायके में रह रही थी। संगीता के घरवालों का आरोप है ससुरालवालों से तंग आकर उसने जान दी है।

संगीता के परिजनों ने करनैलगंज थाने में दर्ज कराई रिपोर्ट में ससुरालवालों पर दहेज के लिए मारपीट करने का आरोप लगाया है। तीन बहन, दो भाईयों में तीसरे नंबर की संगीता की शादी चार साल पहले हुई थी। आंखों में आंसू लिए संगीता की मां कुसुमा मौर्य (55 वर्ष) बताती हैं,‘‘हमसे जितना हो सकता था बेटी को दिया। लेकिन कुछ महीनों बाद से वो लोग उसे मारने पीटने लगे और मोटरसाइकिल की मांग करने लगे। एक दिन मैं घर के पीछे कपड़े  धो रही थी। संगीता ने घर की कुंडी लगाकर खुद को आग लगा ली।’’ 

संगीता ने आत्मदाह से पहले लोगों से बोलना कम कर दिया था, एक पड़ोसी ने नाम छापने की शर्त पर बताया, बेचारी ससुराल में तो मारी-पीटी जाती थी, यहां भी अक्सर उसका भाभी से झगड़ा होता रहता था क्या करती।

डॉक्टर और मनोचिकित्सकों के मुताबिक लगातार मारपीट, गालीगलौच और घर में तवज्जो न मिलने से ये महिलाएं कुंठा अवसाद का शिकार हो जाती हैं और फिर आत्महत्या जैसे कदम उठाती हैं।

मेडिकल कॉलेज में जिंदगी और मौत से जूझ रही रजनी (35 वर्ष) की मां बताती हैं, “पांच दिन पहले मेरी बेटी ने खुद को जलाने की कोशिश की थी। उसका आधा शरीर जल चुका है। उसने अपने पति से तंग आकर ऐसा किया है। वो रोज उसे मारता पीटता था, न एक पैसा देता था, मेरी बेटी और उसके बच्चे भूखों मर रहे थे। इन सबसे तंग आकर उसने ऐसा किया है।”

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो 2014 के अनुसार, भारत में घरेलू महिलाओं की आत्महत्या, कुल मामलों की 18 फीसदी यानि लगभग 20 हजार से ऊपर सामने आई। पिछले चार वर्षों में 43 फीसदी  आत्महत्या करने वाली शादीशुदा महिलाएं थीं जिनकी उम्र 15 से 29 वर्ष थी। इनका कारण घरेलू हिंसा, अवसाद और वैवाहिक मतभेद होना था।

कहीं न कहीं इन आत्महत्याओं का कारण घरेलू हिंसा और दहेज है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी ज्यादातर महिला उत्पीड़न के केस होते हैं। काकोरी थाने की महिला पुलिसकर्मी जेहरूनिसां बताती हैं,‘‘ज्यादातर मामले गाँवों से दहेज और घरेलू हिंसा के होते हैं। आत्महत्या के मामले ज्यादातर परिवार के लोग दबा देते हैं क्योंकि पूछताछ से घबराते हैं, आस-पास के लोगों से जब कोई केस पता चलता है तो पुलिस वहां पहुंचकर जांच करती हैं, तो ज्यादातर मामले ऐसे ही निकलते हैं।’’

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय 2014 के अनुसार पिछले 10 वर्षों में देश में वैवाहिक हिंसा के 3,37,922 मामले दर्ज हुए जिनमें उत्तर प्रदेश पहले नम्बर पर था, जहां कुल 38,467 मामले सामने आए।

घरेलू महिलाओं के आत्महत्या का कारण बताते हुए लखनऊ की मनोवैज्ञानिक डॉ. नेहा आनंद कहती हैं,‘‘महिलाओं के आत्महत्या के पीछे ज्यादातर उनके व्यक्तिगत कारण होते हैं। महिलाएं ज्यादा भावात्मक होती है, कई बार जब उनकी निजी जिंदगी में कोई दिक्कत होती है,जैसे पति मारता पीटता हो उसके पीछे चाहे दहेज कारण हो, शराबी हो या अन्य कोई हो तो महिला इसे घर की इज्जत न जाए ये समझकर सहती है।’’

डॉ आनन्द आगे बताती हैं,‘‘अपने साथ हुए अत्याचार की बातें महिलाएं किसी से भी नहीं बताती और चुपचाप अपने अंदर रखती हैं। धीरे-धीरे यह अवसाद का कारण बन जाता है और जब अवसाद अपनी अंतिम सीमा पर पहुंचता है तो आत्महत्या का रास्ता सामने दिखता है।’’

संगीता और रजनी जैसी कई महिलाएं हर दिन आत्महत्या इसलिए करती हैं क्योंकि उनके पास और कोई रास्ता नहीं बचता। इस समस्या से बचने के लिए सही समय पर कांउसलिंग और नियमों का सख्त होना जरूरी है।

कविता (34 वर्ष) आजकल मनोचिकित्सक से अपना इलाज करवा रही हैं क्योंकि पिछले कुछ महीनों से वो अवसाद में हैं। वो बताती हैं,‘‘मेरा बार बार मन करता है कि खुदकुशी कर लूं। यहां तक कि एक बार मैंने कोशिश भी की। उसके बाद मेरे घरवालों ने मेरा इलाज शुरू करवा दिया।’’

कविता के डिप्रेशन के पीछे उनका वैवाहिक जीवन सफल न होना भी है। पिछले आठ महीने पहले उनका तलाक हुआ है। वो आगे बताती हैं,‘‘मेरा प्रेम विवाह था और मेरे पति ने ससुराल वालों के दबाव मुझे तलाक दे दिया क्योंकि मैं मां नहीं बन पा रही थी। मुझे लगने लगा था कि जिंदगी में अब कुछ नहीं बचा है।’’

अगर कोई लगातार गुमसुम रहता है या अपनी व्यक्तिगत जिंदगी में परेशान होने के कारण बार-बार आत्महत्या करने के बारे में सोचता हो तो उसे मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। 

घरेलू महिलाओं को ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए इसके बारे में मेडिकल कॉलेज के मनोवैज्ञानिक डॉ विवेक अग्रवाल बताते हैं, ‘‘महिलाओं को अपने सबसे करीबी जिनपर उन्हें भरोसा है उनसे अपनी बातें या परेशानियां साझा करनी चाहिए। इसके अलावा कुछ गतिविधियों में भाग लें जिसमें उनका रूझान हो। कम से कम आठ घंटे की नींद जरूर लें।’’

 

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