कहीं गुम न हो जाएं लोकनृत्य की विधाएं

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लखनऊ। पुराने समय में गाँव के लोग अपनी भावनाओं को दर्शाने के लिए जो नृत्य करते थे वही लोक कला कहलाती हैं। लोक कलाएं भी कई तरह की थीं जैसे पहले जातियों के हिसाब से उनके अलग-अलग नृत्य होते थे। ऐसा ही एक नृत्य है धोबिया नृत्य, जो पूर्वांचल के कई जिलों में प्रचलित है। यह नृत्य धोबी समुदाय द्वारा किया जाता है। इसके माध्यम से धोबी और उसके गधे के बीच आजीविका संबंधों को दर्शाया जाता है। धोबी जाति द्वारा मृदंग, झांझ, डेढ़ताल, घुंघरू, घंटी बजाकर नाचा जाने वाला यह नृत्य जिस उत्सव में नहीं होता, उस उत्सव को अधूरा माना जाता है।

पांव में घुंघरू, कमर में फेंटा, हाथों में करताल के साथ कलाकारों के बीच काठ का सजा घोड़ा ठुमुक-ठुमुक नाचने लगता है तो गायक-नर्तक भी उसी के साथ झूम उठते हैं। टेरी, गीत, चुटकुले के रंग, साज के संग यह एक अनोखा नृत्य है। आजमगढ़, गाजीपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ जैसे पूर्वांचल के कई जिलों में धोबिया नृत्य किया जाता है। गाजीपुर ज़िले के रेउसा गाँव के रघुवर राम (55 वर्ष) पिछले पच्चीस वर्षों से भी अधिक समय से धोबिया लोक नृत्य कर रहे हैं और रघुवर राम ने ही अपने ग्रुप के लोगों का इस कला से परिचय कराया। रघुवर राम बताते हैं, ‘’हम पिछले बहुत साल से अलग-अलग ज़िलों में जाकर अपनी कला को दिखाते हैं, मेरे ग्रुप में मैं जोकर बनता हूं, मेरा काम है लोगों को हंसाना।” वो आगे कहते हैं, “हम लोगों ने पटना, नैनीताल के साथ ही यहां के कई ज़िलों में अपना कार्यक्रम दिखाया है।”

पिता से विरासत में मिली कला

प्रतापगढ़ जिले के ही बेलखरनाथ धाम ब्लॉक के फेनहा गाँव के रोजन अली 64 साल की उम्र में भी धोबिया नृत्य करते हैं। उन्हें ये कला उनके पिता जुमई से विरासत में मिली थी। रोजन अली पूरे पैर में नेवाढ़ के पट्टे को बांध लेते हैं और कमर में घुंघरू। इस नृत्य में सरस्वती मां की आराधना करते हैं। इसमें हाथ पैर कुछ भी नहीं हिलाया जाता, बस कमर को हिलाकर सिर्फ घुंघरू बजाया जाता है।

मिथक तोड़ कर रहे लोक कला का संचार

धोबिया नृत्य भले ही खास जाति के लोगों का नृत्य हो लेकिन प्रतापगढ़ के कुछ लोग इस मिथक को तोड़ रहे हैं। कमर में घुंघरू और शरीर पर रंग बिरंगे वस्त्र पहन कर जब बांसुरी बजा कर ढोलक की थाप पर नाचना शुरू करते हैं तो समां बंध जाता है और दर्शकों की भीड़ थम जाती है। प्रतापगढ़ जिले के पट्टी विकास खंड के महदहा गाँव के पिंटू उपाध्याय (30) और उनके साथी दान पाल सरोज (50) धोबिया नृत्य के लिए पूरे क्षेत्र में पहचाने जाने जाते हैं। पिंटू उपाध्याय ब्राह्मण घर के हैं, फिर भी उनके घर वालों ने कभी भी इसके लिए मना नहीं किया। दानपाल सरोज बताते हैं, “मैंने और पिंटू ने साथ ही में धोबिया नाच करना शुरू किया था, शुरुआत में घर वालों ने मना किया लेकिन वो अब साथ देते हैं। बेल्हा महोत्सव के साथ ही छोटे-मोटे कार्यक्रमों में भी जाता हूं। पिंटू कहते हैं, “हम लोग कमाई के लिए ये नहीं करते, हमारा मकसद इस कला को बचाए रखना है।” 

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