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लाइलाज रोगों की वजह से पान की खेती बनी घाटे का सौदा

India

जौनपुर। महंगी लागत के बाद लाइलाज रोगों के कारण पान की खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है। कृषि अनुसंधान व पान अनुसंधान के लाभों से पूरी तरह क्षेत्रीय किसान वंचित हैं।

जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर पश्चिम में बक्शा विकास खंड क्षेत्र के दर्जनों गांवों की 90 फीसदी पान की फसल रोगों के कारण बर्बाद हो चुकी है। फिर भी किसानों को फसल बीमा की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में पान किसानों की नई पीढ़ी रोजी-रोटी के लिए महानगरों की ओर पलायन को मजबूर है।

बक्शा विकास खंड के मयंदीपुर, सराय त्रिलोकी, बेदौली व महराजगंज में कोल्हुआ, इब्राहिमपुर, उदयभानपुर गांवों में चौरसिया बिरादरी के लोग पान की खेती करते हैं। इसे इनकी मेहनत कहें या फिर कला कि आज तक दूसरी बिरादरी का कोई व्यक्ति इस कला में माहिर नहीं हो सका है। 

धूप और छांव में होती है खेती 

आधी धूप-आधी छांव में भीटों (ऊंचे स्थानों पर झोपड़ी नुमा ढांचा) में पान की खेती होती है। सीधी धूप लगने से पान के पत्ते मुरझा जाते हैं, ऐसे में सरई, सरपत, पुआल, बांस, रस्सी, तार की सहायता से महीनों की मेहनत से पनवाड़ी तैयार होती है। यह आधी धूप व आधी छांव में हवा से सुरक्षित होती है। जिसमें हवा के झोके व धूप से सुरक्षित पान का विकास होता है। वरना पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं।

खेती में आती है भारी लागत 

इसमें लागत और कड़ी मेहनत की जरूरत होती है। पान की खेती में 500 वर्ग मीटर की खेती के लिए 50 हजार रुपये की जरूरत है। चूंकि इस क्षेत्र के अधिकांश किसानों की माली हालत अधिक मजबूत नहीं है। ऐसे में किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। बैंक भी पान की खेती पर कभी ऋण की सुविधा नहीं प्रदान करता है। कोल्हुआ गांव के हरीश चौरसिया ने बताया, ”कृषि के लिए बैंक लोन देता है। लेकिन पान की खेती के लिए लोन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। सरकार 1500 वर्ग मीटर पान की खेती के अनुदान के लिए 70 हजार अनुदान राष्ट्रीय पान कृषि योजना के तहत देती है। लेकिन इस क्षेत्र के किसानों के पास इतने बड़े क्षेत्रफल में पान की खेती संभव नहीं है। यहां के किसान अधिकतम 500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में पान की खेती करते हैं, लेकिन इस वर्ष क्षेत्र के किसी किसान को अनुदान नहीं मिला है।”

रोग से नष्ट हो चुकी 90 फीसदी फसल 

इस वर्ष पान के किसानों की 90 फीसदी फसल उकठा रोग से बर्बाद हो चुकी है। बेदौली के पान किसान शिवराम चौरसिया ने बताया, ”पान की फसल में गांधी, विलश्मुतवा, गुर्ची, उकठा आदि रोग लगता है। पान की फसल के इन रोगों की पहचान व नाम किसी वैज्ञानिक ने अनुसंधान द्वारा नहीं दिया है बल्कि पान किसानों ने अपने अनुभव के आधार पर ये नाम दिए हैं। अपने अनुभव के आधार पर किसान इन रोगों का इलाज भी करते हैं।”

नहीं मिली बीमा की सुविधा

पान की खेती प्राय: लाइलाज रोगों का शिकार हो जाती है। लेकिन आज तक किसी भी किसान को बीमा की सुविधा नहीं मिली। इस संबंध में उदयभानपुर निवासी सालिक राम चौरसिया ने बताया, “आज तक किसी भी बीमा कंपनी ने हमें बीमा के बारे में बताया नहीं। कभी कोई कंपनी पान के बीमा के लिए आगे नहीं आई। जिससे प्राय: हमें घाटे का सामना करना पड़ता है।”

देशी खाद के सहारे होती है पान की खेती

पान की खेती में आज तक मात्र नीम व सरसों की खली का ही प्रयोग देशी खाद के रूप में होता है। रासायनिक खाद का उपयोग करने पर फसल जल जाती है।

देशी पद्धति से पान की सिंचाई

पान की सिंचाई आज भी मिट्टी के घड़े के सहारे ही होती है। सूखे के मौसम में पानी मिट्टी के घड़े में भरकर लाना होता है। अब कुछ लोग टुल्लू का भी प्रयोग करते हैं परंतु सिंचाई घड़े से होती है। पानी भी पत्तों पर इस प्रकार गिराना होता है कि जड़ों में पानी न लगे, वरना पौधा खराब हो जाता है। ऐसे में गर्मी में दो बार व नम मौसम में एक बार पौधों की सिंचाई होती है। अप्रैल में सिंचाई प्रारंभ होती है जो नवंबर तक चलती है।

रिपोर्टर – करन पाल सिंह

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