लावारिस शवों को दिला रहे मानवीय हक

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फैजाबाद। अयोध्या के मो. शरीफ  उर्फ (चाचा) ने जाति-धर्म का रोड़ा छोड़कर समाज में एक अलग पहचान बनाई है। वो शहर के गली मोहल्ले में घूम-घूम कर लावारिस शवों को ढूढ़कर उनके धर्म के अनुसार अन्तिम संस्कार करवाते हैं।

फैज़ाबाद जि़ले के खिड़की अली बेग मोहल्ला में रहने वाले मो. शरीफ  का काम सुबह की नमाज़ के बाद शुरू हो जाता है। शरीफ रेलवे टै्रक, सड़क, अस्पताल व शहर की हर गली में लावारिस शवों को खोजने निकल जाते हैं। उनके इस काम को लेकर परिवार का कोई भी व्यक्ति खुश नहीं है, जिसके कारण उनको परिवार से अलग रहना पड़ रहा है।

मो. शरीफ बताते हैं, ”मेरे लिए हर धर्म एक जैसा है। जब तक मैं जि़ंदा हूं, तब तक मैं किसी भी लाश को सडऩे और जानवरों से नुचने नहीं दूंगा।”

दरअसल, 18 वर्ष पहले मो. शरीफ को बेटा जो दवा का काम करता था, वह अपने किसी काम से सुलतानपुर गया हुआ था पर वहां किसी ने उसे मार कर फेंक दिया। उसके शव को कई दिनों तक ढूंढा गया, पर किसी को कुछ भी नहीं मिला। अपने बेटे के शव को ढूंढने की लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें कुछ नहीं हासिल होने पर उन्होंने उस दिन से यह ठान लिया कि वो लावारिस शवों को ढूढ़कर उनका अंतिम संस्कार करवाकर उन्हें उनका मानवीय हक दिलाएंगे।

शवों के अंतिम संस्कार करने को लेेकर मो. शरीफ बताते हैं, ”जब से यह काम शुरू किया है तब से अभी तक 150 हिन्दू व 75 मुस्लिम लवारिश शवों का अतिंम संस्कार उसके धर्म के हिसाब से करवा चुकाहूं। हिन्दू धर्म के लोगों के शव के संस्कार में 3000 रुपए और मुसलिम धर्म के लोगों के शव के अतिंम सस्कार में 5000 का खर्च आता है।”

शव का क्रियाकर्म करने में होने वाले खर्च के लिए मो. शरीफ लोगों से चन्दा इकट्ïठा करते हैं और उनकी मदद शमसान घाट पर नियुक्त कर्मचारी सन्तोष कुमार भी करते हैं। शरीफ जितने भी शवों का अंतिम सस्कार करते हैं उनका सारा बायोडाटा और फोटो सहित सारी जानकारी रखते हैं।

खिड़की अली बेग मोहल्ले के रहने वाले जार्नादन 50 वर्ष बताते हैं, ”शरीफ  चाचा अनाथ मरीज़ों की सेवा अपनी सन्तान की तरह करते हैं और ज़हर खुरानी से शिकार लोगों कि सेवा अपनेपन से करके उन्हें घर तक भी पहुचाते हैं।”

लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने के अलावा शरीफ अस्पताल में भर्ती मरीज़ों और ज़हरखुरानों के शिकार लोगों कीभी सेवा करते हैं। अस्पताल में भर्ती मरीजों की देखभाल के लिए शरीफ दिन-रात अस्पताल के चक्कर लगाते रहते हैं। साथ ही वह गरीब और अनाथ मरीज़ों को खाने-पीने और  दूसरी जरूरत की चोज के लिए मदद भी करते हैं।

रिपोर्टर – रवीश कुमार वर्मा

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