लेडी टार्जन कर रही है जंगलों की हिफ़ाज़त

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घाटशिला (झारखण्ड)। आर्थिक राजधानी जमशेदपुर से 47 किमी दूर घाटशिला में रहती है जंगल की बेटी जमुना टुडू, जो जंगलों को बचाती है, अवैध कटाई करने वालों से भिड़ जाती है। न जाने कितनी बार लहू-लुहान होकर गाँव लौटी है। 

घाटशिला की चाकुलिया में रहने वाली जमुना टुडू को यहां के लोग ‘लेडी टार्जन’ भी बोलने लगे हैं, क्योंकि इस अकेली महिला ने अपने बलबूते जंगल बचाने का एक पूरा अभियान खड़ा कर दिया है। अपने प्रयासों के लिए जमुना को वर्ष 2016 में राष्ट्रपति ने भी सम्मानित किया। उन्हें पहले भी ‘फिलिप्स ब्रेवरी अवॉर्ड’ व ‘स्त्री शक्ति अवॉर्ड’ प्राप्त हो चुके हैं।

जमुना के प्रयासों से पेड़ों को बचाने की मुहिम प्रथा बन गई। आज जमुना के गाँव में बेटी पैदा होने पर या बेटी के ब्याह के वक्त परिवार पौधा रोपण करते हैं। रक्षाबंधन पर सारा गाँव वृक्षों को राखी बांधता है।

जमुना के इस मुहिम की शुरुआत वर्ष 2000 के आस-पास हुई, जब जमुना की शादी चाकुलिया मतुरखम गाँव में हुई। जमुना ने देखा कि आस-पास का इलाका वन सम्पदा से भरपूर था, लेकिन लगातार अवैध कटाई के चलते क्षेत्र की हरियाली गायब होती जा रही थी। जमुना ने लोगों से कहा कि सबको मिलकर जंगलों को कटने से रोकना होगा लेकिन गाँव के किसी भी पुरुष ने उनका साथ देने से इंकार कर दिया, बस कुछ औरतें आगे आईं। 

इसके बार शुरू हुई जमुना की चार अन्य महिलाओं की छोटी सी टीम की जंगल पेट्रोलिंग। जमुना व उनकी समूह की महिलाएं जंगल-जंगल घूमतीं और अवैध कटान करने वालों का विरोध करतीं। 

इन महिलाओं के काम से अन्य महिलाएं इतना प्रभावित हुईं कि जल्द ही जमुना की टीम में सदस्यों की संख्या बढ़कर 60 तक जा पहुंची। इन सबने ने मिलकर ‘महिला वन रक्षक समिति’ का गठन किया। 

ये ‘महिला वन रक्षक समिति’ वनों को कटने से बचाने के साथ नए पौधे लगाकर वनों को सघन बनने में भी योगदान देने लगी।

धीरे-धीरे क्षेत्र में इस समिति को खूब सराहा गया और सरकारी अमले का भी समर्थन मिलना शुरू हो गया। वर्ष 2008 में रेंजर अमरेंद्र कुमार सिंह ने देखा कि महिलाओं ने लगभग 50 हेक्टेयर की भूमि में वनों को नवजीवन दे दिया है। जल्दी ही उन्होंने वन विभाग की मदद से जमुना के गाँव में पीने के पानी की व्यवस्था करवा दी। 

रिपोर्टर- अम्बाती रोहित

    

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