लीक से हटकर फिल्म बनाने के लिए प्रसिद्ध थे ऋतुपर्णो घोष

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बहुत कम ऐसे निर्देशक होते हैं जो फिल्मों को कला मानकर फिल्म बनाते हैं। ऐसे ही एक निर्देशक थे ऋतुपर्णो घोष जो बॉक्स ऑफिस या व्यवसाय को ध्यान में रखकर फिल्में नहीं बनाते थे बल्कि केवल इसलिए फिल्में बनाते थे क्योंकि वह उनके लिए कला का माध्यम था। यही वजह थी कि बहुत कम समय में उन्होंने अपनी पहचान बना ली। लीक से हटकर फिल्म बनाने के लिए वह प्रसिद्ध थे। 

साथ ही उनका जलवा ऐसा था कि बड़े से बड़े अभिनेता भी उनके साथ काम करने को तैयार हो जाते थे। मात्र 49 वर्ष की आयु में 30 मई 2013 को ऋतुपर्णो का इस दुनिया से चले जाना एक दु:खद था। उनके इतनी जल्दी जाने से सिने प्रेमी ऋतु की कुछ बेहतरीन फिल्मों से वंचित रह गए। 

फिल्मों के जरिए महिलाओं के मन को छुआ

हिरेर अंगति (1994) जैसी बाल फिल्म से ऋतुपर्णो ने भले ही अपना फिल्मी सफर शुरू किया लेकिन उन्होंने अपने करियर में ज्यादातर महिला प्रधान फिल्में बनाईं। इसमें उनकी दूसरी फिल्म उनीशे एप्रिल से लेकर बाड़ीवाली, दहन, चोखेर बाली और रेनकोट जैसी फिल्में शामिल थीं। ऋतुपर्णो का वर्णन बेहतरीन था और जिस खूबसूरती से महिला मुख्य पात्र के दिल को पर्दे पर हू-ब-हू उतारा गया, ऐसा वह ही कर सकते थे। फिल्म उनीशे एप्रिल में उन्होंने मां-बेटी के तनावपूर्ण रिश्तों को बारीकी से रेखांकित किया। यह फिल्म प्रख्यात फिल्म निर्देशक इंगमार बर्गमन की ‘ऑटम सोनाटा’ से प्रेरित थी।  

1999 में ऋतुपर्णो द्वारा निर्देशित फिल्म बारीवाली के लिए किरण खेर ने बेस्ट एक्ट्रेस का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया। बाड़ीवाली एक ऐसी महिला की कहानी है जिसका होने वाले पति की शादी के एक दिन पहले मौत हो जाती है और इसके बाद वह एकांकी जीवन बिताती है। इसके बाद उन्होंने उत्सव (2000), तितली (2002), शुभो महुर्त (2003) जैसी बांग्ला भाषा बनाईं। 

समलैंगिगता स्वीकारने पर मजाक बना

ऋतुपर्णो ने पहली हिंदी फिल्म ‘रेनकोट’ (2004) बनाई। रेनकोट ऐसे दो प्रेमियों की कहानी है जो वर्षों बाद बरसात की एक रात मिलते हैं। इस फिल्म को ऐश्वर्या राय के करियर की श्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है। उनकी दूसरी हिंदी फिल्म ‘सनग्लास’ थी, जो 2012 में रिलीज हुई।

साहस के साथ अपनी लैंगिकता को स्वीकार करने पर उन्हें एक अलग किस्म का प्रशंसक वर्ग मिला, लेकिन उनके करीबी लोगों ने उनसे कुछ दूरी भी बना ली। वह उस वक्त काफी अकेले हो गए जिसे उन्होंने दुखी मन से स्वीकार भी किया। कई बार उनका मजाक भी बना। इन सबको एक किनारे रख ऋतु ने अपने विचारों पर ध्यान दिया। उन्होंने समलैंगिकता के प्रति जागरुक करने के लिए कई फिल्मों में अभिनय भी किया। कौशिक गांगुली की बांग्ला फिल्म ‘छाया छवि’ में उन्होंने एक समलैंगिक फ़िल्म निर्माता की भूमिका निभाई। उनकी फ़िल्मों में समलैंगिक विषयों का काफ़ी संजीदा तरीके से चित्रण हुआ है।

सर्वश्रेष्ठ अंग्रेज़ी फ़िल्म के लिए ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ जीतने वाली फ़िल्म ‘मेमरीज़ इन मार्च’ भी समलैंगिक विषय पर बनाई गई थी, जिसमें ऋतुपर्णो के अभिनय को सराहा गया था। ऋतुपर्णो ने अपने करियर में कुल 19 फ़िल्में बनाईं, 12 ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ जीते। यह सच है वह समलैंगिक थे लेकिन उन्हें अपने निर्देशक, अभिनय और संवेदनशीलता के लिए जो तारीफ और चर्चा मिली उसके लिए आज भी कई निर्देशक लालायित रहते हैं। 

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