लखनऊ। गर्मियों में अगेती किस्म की बेल वाली सब्जियों को मचान विधि से लगाकर किसान अच्छी उपज पा सकते हैं। इनकी नर्सरी तैयार करके इनकी खेती की जा सकती है। पहले इन सब्जियों की पौध तैयार की जाती है और फिर मुख्य खेत में जड़ों को बिना नुकसान पहुंचाये रोपण किया जाता है। इन सब्जियों की पौध तैयार करने से पौधे जल्दी तैयार होते हैं।
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मचान में लौकी, खीरा, करेला जैसी बेल वाली फसलों की खेती की जा सकती है। मचान विधि से खेती करने से कई लाभ हैं। मचान में खेत में बांस या तार का जाल बनाकर सब्जियों की बेल को जमीन से ऊपर पहुंचाया जाता है। मचान का प्रयोग सब्जी उत्पादक बेल वाली सब्जियों को उगाने में करते हैं। मचान के माध्यम से किसान 90 प्रतिशत फसल को खराब होने से बचाया जा सकता है।
मचान की खेती के रूप में सब्जी उत्पादक करेला, लौकी, खीरा, सेम जैसी फसलों की खेती की जा सकती है। बरसात के मौसम में मचान की खेती फल को खराब होने से बचाती है। फसल में यदि कोई रोग लगता है तो तो मचान के माध्यम से दवा छिड़कने में भी आसानी होती है।
उद्यान विभाग के शाक सब्जी विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. एमपी यादव बताते हैं, ”मचान विधि से खेती करने से किसानों को बहुत से फायदे होते हैं, किसान अपने जि़ले के उद्यान अधिकारी से जायद मौसम की लौकी, खीरा, करेला, तरबूज जैसी बेल वाली सब्जियों की उन्नतशील बीजों को खरीद सकते हैं।
बाराबंकी जि़ले के मसौली ब्लॉक के मेढ्यिा गाँव के किसान रिंकू वर्मा पिछले कई साल से मचान विधि से ही सब्जियों की खेती करते आ रहे हैं। रिंकू वर्मा कहते हैं, ”पहले मैं जमीन पर ही सब्जी की फसलें बोता था, लेकिन जब से मचान विधि से खेती कर रहा हूं, इससे ज्यादा लाभ हो रहा है।”
खेत की तैयारी
खेत की अन्तिम जुताई के समय 200-500 कुन्तल सड़ी-गली गोबर की खाद मिला देना चाहिए। सामान्यत: अच्छी उपज लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 240 किग्रा यूरिया, 500 किग्रा सिगंल सुपर फास्फेट एवं 125 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटास की आवश्यकता पड़ती है। इसमे सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटास की पूरी मात्रा और युरिया की आधी मात्रा नाली बनाते समय कतार में डालते है।
यूरिया की चौथाई मात्रा रोपाई के 20-25 दिन बाद देकर मिट्टी चढ़ा देते है तथा चौथाई मात्रा 40 दिन बाद टापड्रेसिंग से देना चाहिए। लेकिन जब पौधों को गढढ़े में रोपते है तो प्रत्येक गढढ़े में 30.40 ग्राम यूरियाए 80.100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 40.50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास देकर रोपाई करते है।
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पौधों की खेत में रोपाई
पौधों को मिट्टी सहित निकाल कर में शाम के समय रोपाई कर देते है। रोपाई के तुरन्त बाद पौधों की हल्की सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए। रोपण से 4-6 दिन पहले सिंचाई रोक कर पौधों का कठोरीकरण करना चाहिए। रोपाई के 10-15 दिन बाद हाथ से निराई करके खरपतवार साफ कर देना चाहिए और समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए। पहली गुड़ाई के बाद जड़ो के आस पास हल्की मिट्टी चढ़ानी चाहिए।
मचान बनाने की विधि
इन सब्जियों में सहारा देना अति आवश्यक होता है सहारा देने के लिए लोहे की एंगल या बांस के खम्भे से मचान बनाते है। खम्भों के ऊपरी सिरे पर तार बांध कर पौधों को मचान पर चढ़ाया जाता है। सहारा देने के लिए दो खम्भो या एंगल के बीच की दूरी दो मीटर रखते हैं लेकिन ऊंचाई फसल के अनुसार अलग-अलग होती है सामान्यता करेला और खीरा के लिए चार फीट लेकिन लौकी आदि के लिए पांच फीट रखते है ।
कीड़ों व रोगों से बचाव कीड़ों व रोगों से बचाव
इन सब्जियों में कई प्रकार के कीड़े व रोग नुकसान पहुचाते है। इनमें मुख्यत:लाल कीड़ा, फलमक्खी, डाउनी मिल्डयू मुख्य है।लाल कीड़ा, जो फसल को शुरु की अवस्था में नुकसान पहुचाता है, को नष्ट करने के लिए इन फसलो में सुबह के समय मैलाथियान नामक दवा का दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बना कर पौधों एवं पौधों के आस पास की मिट्टी पर छिड़काव करना चाहिए।
चैम्पा तथा फलमक्खी से बचाव के लिए एण्डोसल्फान दो मिली लीटर दवा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बना कर पौधों पर छिड़काव करें। चूर्णिल आसिता रोग को नियंत्रित करने के लिए कैराथेन या सल्फर नामक दवा 1.2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए। रोमिल आसिता के नियंत्रण हेतु डायथेन एम-45, 1-5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए। दुसरा छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर करना चाहिए।
उपज
इस विधि द्वारा मैदानी भागो में इन सब्जियो की खेती लगभग एक महीने से लेकर डेढ़ महीने तक अगेती की जा सकती है तथा उपज एवं आमदनी भी अधिक प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार खेती करने से टिण्डा की 100-150 कुंतल लौकी की 450-500 कुंतल तरबूज की 300-400 कुंतल, खीरा, करेला और तोरई की 250-300 कुंतल उपज प्रति हेक्टेयर की जा सकती है।