अरविन्द्र सिंह परमार (कम्यूनिटी जर्नलिस्ट)
महरौनी (ललितपुर)। बुंदेलखंड अपने आपमें बहुत से लोकनृत्य और लोकसंगीतों को संजोए हुए है। इन्हीं में से एक है मौनिया नृत्य। यह नृत्य बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में दीपावली के दूसरे दिन मौन परमा को पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसे मोनी परमा भी कहा जाता है। यह यहां की सबसे प्राचीन नृत्य शैली है। इसे सेहरा और दीपावली नृत्य भी कहते हैं।
इसमें किशोरों द्वारा घेरा बनाकर मोर के पंखों को लेकर बड़े ही मोहक अंदाज में नृत्य किया जाता है। बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचलों के लोगों के मौन होकर मौन परिमा के दिन इस नृत्य को करने से इस नृत्य का नाम मौनिया नृत्य रखा गया। साथ ही, मौन व्रत करने वालों को मौनी बाबा भी कहा जाता है। पिछले 12 साल से हर वर्ष दिवाली के अगले दिन धनवाहा गाँव के रहने वाले मौनिया नृतक लक्खा कुशवाहा बताते हैं, “बारह साल से मौनिया नृत्य में ढोलक बजा रहा हूँ। पूरे दिन उमंग व उल्लास रहता है। मंदिर पर माथा टेकने के बाद मौनिया टोली के प्रण के अनुसार 11 या 21 गाँवों में घूमकर मौनिया नृत्य करते हैं।”
वे बताते हैं कि प्राचीन मान्यता के अनुसार जब श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे बैठे हुए थे तब उनकी सारी गायें कहीं चली गईं। अपनी गायों को न पाकर भगवान श्रीकृष्ण दु:खी होकर मौन हो गए। इसके बाद भगवान कृष्ण के सभी ग्वाल दोस्त परेशान होने लगे। जब ग्वालों ने सभी गायों को तलाश लिया और उन्हें लेकर लाये, तब कहीं जाकर कृष्ण ने अपना मौन तोड़ा। इसी आधार पर इस परम्परा की शुरुआत हुई। इसीलिए मान्यता के अनुरूप श्रीकृष्ण के भक्त गाँव-गाँव से मौन व्रत रखकर दीपावली के एक दिन बाद मौन परमा के दिन इस नृत्य को करते हुए 12 गाँवों की परिक्रमा लगाते हैं और मंदिर-मंदिर जाकर भगवान श्रीकृष्णा के दर्शन करते हैं।
ललितपुर जनपद से उत्तर पूर्व दिशा में चालीस किमी दूर अमौरा ग्राम के रहने वाले सोभा राम (उम्र 36 वर्ष) नृत्यागना का श्रगांर धारण किये बताते हैं, “मौनिया नृत्य करने के पहले सभी श्रृंगार करते हैं। बाद में गाँव के मंदिर में जाकर व्रत धारण कर पूरे दिन किसी से बात नहीं करते। वे इसके बाद सिर्फ मौनिया नृत्य करते हैं। शाम होने के बाद यह व्रत खोला जाता है।” वे आगे बताते हैं, “जिस गाँव की मौनिया नृत्य की टोली एक बार व्रत रख ले तो वह बारह वर्ष तक अनवरत करना पड़ता है।”
गढ़ौली कलां के मनोहर लाल (35 वर्ष) बताते हैं, “मौनिया नृत्य को संकल्प के अनुसार 11 से 21 गाँवों में मौन व्रत रखकर घूम-घूमकर नृत्य करना पड़ता है। यह मौन व्रत शाम को मंदिर के दर्शन करने के बाद जयकारा लगाकर तोड़ा जाता है। वे आगे बताते हैं, “मौनिया नृत्य की गायन मंडली मौन धारण नहीं करती बाकी सभी मौन धारण करते हैं।”
मौनिया नृत्य की टोली में 11, 21 व 31 ग्रामीण या इससे अधिक लोग भी सम्मिलित होते हैं। नृत्य में मोर के पंख, एक रंग की भेषभूषा, हाथों में डंडा रखा जाता है। नृतकों की टोली में एक जोकर, नृत्यांगना (पुरुष बनते हैं), दलदल घोड़ी, कृष्ण की भेषभूषा पहने युवक आदि सम्मिलित होते हैं। इस नृत्य में बुंदेली यंत्र नगड़िया, ढोलक, मजीरा, झेला, हरमोनिया आदि लिए नजर आते हैं। गायक छंद गीत में स्वर छेड़ता है और वादक उसी धुन में वाद यंत्र का प्रयोग करता है।
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