इंदरगढ़ (कन्नौज)। ‘लाख बहोसी पक्षी विहार’ में विदेशी परिंदे देखने के लिए इस साल अभी तक एक भी विदेशी मेहमान नहीं आया है। कारण सैलानियों के लिए यहां कोई खास इंतजाम नहीं हैं। झील व आसपास भी अव्यवस्थाओं का बोलबाला है।
जिला मुख्यालय से करीब 33 किमी दूर स्थित गाँव लाख व बहोसी के नाम से दो झीलें हैं। इनमें हर साल हजारों की संख्या में देशी व विदेशी पक्षियों का कलरव होता है। इस साल पक्षियों की संख्या सैकड़ों में ही सीमित रह गई है। करीब 80 वर्ग किमी दायरे में फैली बहोसी गाँव की झील में पक्षियों की संख्या खासी कम है। करीब एक हजार पक्षी ही यहां होंगे। तीन जनवरी तक इस झील में पानी ही नहीं रहा। इस कारण पक्षियों की संख्या कम रही।
इस दौरान डीएम अनुज कुमार झा ने मौके पर पहुंचकर पक्षी विहार को देखा। उन्होंने नहर विभाग के अफसरों से बात करके पानी छोड़े जाने के निर्देश दिए, तब कहीं जाकर धीरे-धीरे पानी आना शुरू हुआ। हालांकि अभी पानी की मात्रा कम है। सूखी घास अब भी देखी जा सकती है। वहीं लाख गाँव की झील में पक्षियों की संख्या वर्तमान में बहोसी झील से अधिक तो है, लेकिन यहां गंदगी का आलम बहुत दिखता है। झील की सफाई लगता है कई सालों से नहीं हुई है।
पांच साल पहले पक्षी विहार को देखने के लिए जर्मनी से मेहमान आए थे। एक साल पहले इग्लैण्ड से भी लोग पक्षियों को देखने आए। इस बार अब तक कोई भी विदेशी व्यक्ति झील को देखने नहीं आया है। पांच जनवरी 2015 को जब गाँव कनेक्शन की टीम मौके पर पहुंची तो उस दिन केवल आठ व्यक्ति ही झील का आनंद लेने आए थे।
लगभग तीन दर्जन विदेशी पक्षी होने का दावा
वन विभाग में लाख बहोसी पक्षी विहार में फिलहाल साइबेरिया से आने वाले कई पक्षियों के झील में होने का दावा किया है। मध्य एशिया लद्दाख व तिब्बत से आने वाले पक्षी सबन, नार्दन यूरोप के साबलर, साइबेरिया के रेड क्रस्टड पोचर्ड, चायना के क्रूट के यहां आने की बात विभाग ने कही है। वाटर वल्र्ड की 20 प्रकार की चिडिय़ां यहां आती हैं। इसके अलावा गैडवाल, रूडी सेल्डक, टफटेड योचर्ड, फेरू शीनस पोचर्ड, परपलमूर हेन, स्पून वेल, क्रस्टेड ग्रेव आदि विदेशी सैलानी मौजूद हैं।
ये सैलानी नहीं आए इस बार
विभाग की मानें तो इस बार दक्षिण भारत से आने वाला सैलानी पेलकिन, लद्दाख तिब्बत से आने वाला कामन सेल्डक व नार्दन लैविंग आदि पक्षी नहीं आए हैं।
15 मार्च तक रहते हैं पक्षी
हर साल अक्तूबर से पक्षियों के बाहर से आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। 15 मार्च तक पक्षी यहां रुकते हैं। इसके बाद मौसम में तब्दीली आने की वजह से वह अपने घरों को चले जाते हैं। सर्दियां शुरू होने के साथ ही पक्षी भी आ जाते हैं।
शिकार भी है कारण
पक्षियों का शिकार यहां कई सालों से बदस्तूर जारी है। बीते वर्षों में यहां कई बार शिकारी पकड़े भी गए। लाख गाँव बिल्कुल झील से सटा हुआ है। यहां शिकार ज्यादा होता है। जानकार बताते हैं कि विभाग के कुछ लोग ही मिलकर शिकार कराते हैं। इससे पक्षियों की संख्या में गिरावट आई है।
स्टाफ कम होने का रोना
विभाग की माने तो दो झीलें यहां हैं। काफी दायरे में वह फैली हैं। उस हिसाब से स्टाफ कम है। फिलहाल रेंशर फारेस्ट ऑफिसर एपी श्रीवास्तव, फारेस्टर आरबी तोमर, वन जीव रक्षक जीएस पाल व एके जिज्ञासु, नाविक राजेश वर्मा, महिला कर्मचारी राजकुमारी व संविदा कर्मी करन सिंह तैनात हैं।
टिकट भी है निर्धारित
घूमने के लिए 30 रुपये की टिकट प्रति व्यक्ति के हिसाब से निर्धारित है। विदेशियों से टिकट अधिक लगती है। इसके अलावा बाइक का 20 रुपये लिया जाता है। चौपहिया वाहनों की दरें अधिक हैं।
गंदगी का साम्राज्य कायम
लाख झील के आसपास गंदगी काफी है। यहां बड़ी-बड़ी बेसरम बेल भी उगी है। गाँव वाले इसको ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं।
रिपोर्टर – विजय मिश्र/विवेक राजपूत