गोरखपुर। मानसून की शुरूआत होने वाली है और ये समय आम की खेत के लिए उचित है। आम की बागवानी भी कम लागत में मुनाफे की फसल साबित हो रही है। अगर किसान आम की बागवानी लगाना चाहते हैं, तो पहली बारिश के बाद ही इसकी तैयारी शुरु कर देनी चाहिए।
जलवायु और भूमि
आम की खेती की कहीं भी की जा सकती है,जहां अच्छी वर्षा और सूखी गर्मी रहती हैं, पुष्पन अवधि के दौरान उच्च आर्द्रता, वर्षा या सर्दी न हों। उन क्षेत्रों से बचकर रहना बेहतर है जहां हवाएं और चक्रवात आते रहते हैं, जो पुष्प और फल के झड़ने के और शाखाओं के टूटने के कारक बन सकते हैं। आम की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु और भूमि की आवश्यकता होती है।
आम की खेती उष्ण एव समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती है। इसके लिए 23.8 से 26.6 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अति उत्तम होता है। आम की खेती प्रत्येक किस्म की भूमि में की जा सकती है। लेकिन अधिक बलुई, पथरीली, क्षारीय और जल भराव वाली भूमि में इसे उगाना लाभकारी नहीं है ।
प्रवर्धन
आम के बीज पौधे तैयार करने के लिए आम की गुठलियों को जून-जुलाई में बुवाई कर दी जाती है, आम की प्रवर्धन की विधियों में भेट कलम, विनियर, साफ्टवुड ग्राफ्टिंग, प्रांकुर कलम तथा बडिंग प्रमुख है। विनियर और साफ्टवुड ग्राफ्टिंग द्वारा अच्छे किस्म के पौधे कम समय में तैयार कर लिए जाते है।
गड्ढ़ों की तैयारी में सावधानियां
वर्षाकाल आम के पेड़ों को लगाने के लिए सारे देश में उपयुक्त माना गया है। जिन क्षेत्रो में वर्षा अधिक होती है वहां वर्षा के अन्त में आम का बाग लगाना चाहिए। लगभग 50 सेन्टीमीटर व्यास एक मीटर गहरे गढ्ढे मई माह में खोद कर उनमे लगभग 30 से 40 किलो ग्राम प्रति गड्ढा सड़ी गोबर की खाद मिट्टी में मिलाकर और 100 ग्राम क्लोरोपाइरिफास पाउडर बुरककर गड्ढो को भर देना चाहिए।
रोपण
आम के पौधों कि रोपाई वर्षाकाल शुरू पर करनी चाहिए, पौधों के रोपण का सही समय जुलाई-अगस्त है। वर्षाकाल में लगाए पौधों के मरने का खतरा कम रहता है। रोपण की दूरी में क्षेत्र के आधार पर भिन्नता 10 मीटर गुणा 10 मीटर से 12 मीटर गुणा 12 मीटर रहती है। सूखे क्षेत्रों, में जहां वर्धन कम है, यह दूरी 10 मीटर गुणा 10 मीटर रहती है जबकि उच्च वर्षा और उर्वरा मिट्टी के क्षेत्रों में, जहां अधिक कायिक वृद्धि होती है। यह 12 मीटर गुणा 12 मीटर रहती है। मूल मिट्टी को अच्छी तरह गले हुए 20-25 किग्रा गोबर की खाद 2.5 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट और एक कि ग्राम पोटाश अच्छी तरह से मिलाकर उससे गड्ढे भरे जाते हैं।
खाद एवं उर्वरक
मृदा की भौतिक और रासायनिक दशा में सुधार हेतु 25 से 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद प्रति पौधा देना उचित पाया गया है। जैविक खाद हेतु जुलाई-अगस्त में 250 ग्राम एजोसपाइरिलम को 40 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ मिलाकर थालो में डालने से उत्पादन में वृद्धि पाई गई है। आम की फसल में खाद और उर्वरक का प्रयोग कब करना चाहिए, बागों की दस साल की उम्र तक प्रतिवर्ष उम्र के गुणांक में प्रति पेड़ जुलाई में पेड़ के चारो तरफ बनाई गई नाली में देनी चाहिए।
सिंचाई का समय
आम की फसल के लिए बाग़ लगाने के प्रथम वर्ष सिंचाई 2-3 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए और जब पेड़ों में फल लगने लगे तो दो तीन सिंचाई करनी जरूरी है। पहली सिंचाई फल लगने के बाद दूसरी सिंचाई फलों का कांच की गोली के बराबर अवस्था में और तीसरी सिंचाई फलों की पूरी बढ़वार होने पर करनी चाहिए।
प्रजातियां
भारत में उगाई जाने वाली आम की किस्मों में दशहरी, लंगड़ा, चौसा, फज़ली, बम्बई ग्रीन, बम्बई, अलफ़ॉन्ज़ो, बैंगन पल्ली, हिम सागर, केशर, किशन भोग, मलगोवा, नीलम, सुर्वन रेखा, वनराज, जरदालू हैं। नई किस्मों में मल्लिका, आम्रपाली, रत्ना, अर्का अरुण, अर्मा पुनीत, अर्का अनमोल तथा दशहरी-51 प्रमुख प्रजातियां हैं। उत्तर भारत में मुख्यत गौरजीत, बाम्बेग्रीन दशहरी, लंगड़ा, चौसा एवं लखनऊ सफेदा प्रजातियां उगाई जाती हैं।
रोग और नियंत्रण
आम की फसल में कौन-कौन से रोग लगते हैं और उसका नियंत्रण हम किस प्रकार करें आम के रोगों का प्रबन्धन कई प्रकार से करते हैं। जैसे की पहला आम के बाग में पावडरी मिल्ड्यू यह एक बीमारी लगती है। इसी प्रकार से खर्रा या दहिया रोग भी लगता है इनसे बचाने के लिए घुलनशील गंधक दो ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में या डाईनोकैप एक मिली प्रति लीटर पानी घोलकर प्रथम छिड़काव बौर आने के तुरन्त बाद दूसरा छिड़काव 10 से 15 दिन बाद और तीसरा छिड़काव उसके 10 से 15 दिन बाद करना चाहिए।