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राजधानी में बढ़ रहा पीलिया का प्रकोप

India

लखनऊ। राजधानी में बढ़ती गर्मी के साथ पीलिया का प्रकोप बढ़ने लगा है। शहर के प्रमुख अस्पतालों में हर रोज करीब 50 मरीज पीलिया से पीड़ित आ रहे हैं। किंग जार्ज मेडिकल कालेज, बलरामपुर और राम मनोहर लोहिया अस्पतालों की ओपीडी में हर रोज 25 से लेकर 50 तक के पीलिया रोग से मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं। यासीनगंज निवासी मो. फैज की दो साल की लड़की परी को पीलिया है। 

वह करीब एक महीने से प्राइवेट क्लीनिक में इलाज करा रही है। फैज ने बताया कि एक महीने में उनकी लड़की का स्वास्थ्य आधा रह गया है। वहीं ठाकुरगंज निवासी मो. शमीम के चार वर्षीय बेटे शाद को पीलिया हो गया है। डॉक्टरों की दवाओं के साथ वो तमाम जगह पीलिया को झड़वाने की कोशिश में जुटी हैं।

बलरामपुर अस्पताल के सब फिजिशियन डाक्टर एमके दास का कहना है, “इन दिनों शहर में पीलिया फैला हुआ है जिसका एकमात्र कारण दूषित जल का सेवन करना माना जा रहा है। गर्मी और बरसात के दिनों में इस रोग के वायरस ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। इस रोग का अगर वक्त रहते पता न चले तो इसमें रोगी की मौत हो जाती है।”

शहर के फैजुल्लागंज, बरौरा हुसैनबाड़ी, मुसाहिबगंज यासीनगंज, खदरा, अंधे की चौकी और दुबग्गा में पीलिया ज्यादा फैला हुआ है क्योंकि शहर के सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर इन मोहल्लों से मरीज इलाज कराने हर रोज आ रहे हैं। केजीएमयू के बाल विशेषज्ञ डॉक्टर एके चौरसिया का कहना है, “पीलिया से शहर में पिछले नौ महीनों में तीन मरीजों की मौत हो चुकी है। 

इन मरीजों का मरने का कारण यह है कि इनमें पीलिया रोग की पुष्टि प्रारंम्भ में नहीं हो पाई जिस वजह से इस रोग ने घातक रूप ले लिया और मरीज की मौत हो गई। मरने वालों में एक बाराबंकी में रहना वाला रिक्शा चालक आशाराम का छह वर्षीय बेटा राजू था।

यह वह आंकड़ा है जो सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है और न जाने कितने मरीज ऐसे हैं जो प्राइवेट क्लीनिकों में पीलिया का इलाज करा रहे हैं और कितनी पीलिया से मौतें हो रही हैं, इसका कोई भी पूरा डाटा स्वास्थ्य विभाग के पास मौजूद नहीं है क्योंकि सरकारी अस्पतालों में होने वाली मौतों की संख्या ही स्वास्थ्य विभाग के पास हैं।

लोहिया अस्पताल के बाल विभाग के डाक्टर एसके चन्द्र का कहना कि पीलिया से किसी भी रोगी की मौत नहीं होती है। रोगी की मौत इलाज के दौरान हो रही लापरवाही से होती है। इसमें परहेज बहुत जरूरी है और रोगी अगर ऐसा नहीं करता तो यह उसके लिए घातक हो जाता है।

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