सोयाबीन बिगाड़ सकता है आपकी थाली का ज़ायका

अमित सिंहअमित सिंह   4 July 2016 5:30 AM GMT

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लखनऊ। देश का सोयाबीन उत्पादन वर्ष 2015-16 में 11 साल के निचले स्तर पर रहने की आशंका है। सोयाबीन उत्पादन घटने का सीधा असर खाद्य तेल की कीमतों पर पड़ेगा। इसका असर उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत देश के करीब सभी राज्यों पर पड़ेगा। लगातार दो साल पड़े सूखे से सोयाबीन का उत्पादन घटा है।

55 फीसदी तेल का आयात            

तिलहन पैदावार में कमी की वजह से भारत को अपनी मांग पूरी करने के लिए बड़ा हिस्सा आयात करना होता है। देश की वनस्पति तेल की मांग 235 लाख टन है जिसका 55 फीसदी हिस्सा आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोएिसशन (सोपा) के आंकड़ों के मुताबिक देश में सोयाबीन का उत्पादन फसल वर्ष 2015-16 में 75.4 लाख टन रहेगा जो साल 2014-15 के उत्पादन 103.7 लाख टन से तकरीबन 27 फीसदी कम है। 

सोयाबीन उत्पादक इलाकों के किसान अच्छे मानसून का इंतजार कर रहे हैं ताकि सोयाबीन की बुवाई वक्त रहते हो सके। महाराष्ट्र कृषि विश्वविद्यालय के एग्री एक्सपर्ट डॉ ढोंढे मधुकर बताते हैं, “सोयाबीन का उत्पादन पिछले साल सूखे की वजह से घटा। इस साल भी मॉनसून दो सप्ताह पहले ही लेट हो चुका है। जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधाएं हैं वो सोयाबीन की बुवाई शुरू कर चुके हैं जबकि बारिश पर निर्भर किसानों को मॉनसून का इंतजार है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान के ज़्यादातर किसान सोयाबीन की बुवाई के लिए बारिश पर ही निर्भर रहते हैं। 

राजस्थान के गंगानगर ज़िले के किसान दलजिंदर सिंह (34 वर्ष) बताते हैं, “बारिश के वजह से हमारे इलाके में पहले ही सोयाबीन की बुवाई पिछड़ गई है। अगर अब बारिश हो भी गई तो पैदावार अच्छी होने की उम्मीद नहीं है। ’’ बारिश की कमी के चलते महाराष्ट्र में भी सोयाबीन की बुवाई प्रभावित हुई है। महाराष्ट्र के अकोला ज़िले के किसान गुरुदत्त (38 वर्ष) बताते हैं, “पिछली बार बारिश की कमी की वजह सोयाबीन की सारी फसल बर्बाद हो गई थी। लागत तो छोड़ दीजिए बीज का खर्चा तक नहीं निकल पाया।’’

तीन राज्यों में 80 प्रतिशत उत्पादन 

सोयाबीन उत्पादन के मुख्य राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में बारिश में देरी हो रही है। इन तीन राज्यों का सोयाबीन उत्पादन में 80 फीसदी योगदान रहता है। सोयाबीन पूरी तरह खरीफ फसल है और 90 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी बुवाई जून में मॉनसून आने के साथ ही होती है और इसकी कटाई सितंबर के दूसरे पखवाड़े में होती है। लेकिन इस साल सोयाबीन की बुवाई में दो हफ्ते की देरी है।

आर्थिक मामलों के जानकार और एग्री सेक्टर को करीब से जानने वाले केके गुप्ता बताते हैं, “हम पहले ही अपनी ज़रूरत के हिसाब से खाद्य तेल पैदा नहीं कर पा रहे हैं। अगर उत्पादन नहीं होगा तो हालात और भी खराब हो जाएंगे। सरकार को खाद्य तेल की आयात मात्रा में इज़ाफ़ा करना पड़ेगा जिसका असर सरकारी खज़ाने पर पड़ेगा और फिर सरकार वो बोझ आम नागरिकों पर डालेगी सर्विस टैक्स और सरचार्ज लगाकर।’’

कृषि मंत्रालय के मुताबिक देश में सोयाबीन का उत्पादन 87 लाख टन रहा। देश में इस साल भी सोयाबीन की सप्लाई में दिक्कत की आशंका है क्योंकि किसानों को बेहतर बीज नहीं मिल पाए हैं। इसका असर मौजूदा वर्ष के बजाय अगले साल अधिक दिखाई देगा। 

 

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