लखनऊ। सीसीटीवी को लेकर राजधानी पुलिस गम्भीर दिखती है। पुलिस के आला अधिकारी सभी लोगों से कैमरा लगवाने की बात कह रहें है लेकिन हकीकत यही है कि सीसीटीवी कैमरे में अपराधी नहीं बल्कि आम आदमी नजर में रह रहा है। तीसरी आंख के मौजूद होने के बाद भी यदि अपराधी निकल जाता है तो स्वाभाविक है कि कैमरे को भी पुलिसिया अंदाज में कार्य करने का ढंग आ गया है। विगत दिनों में कई घटनाओं में पुलिस फुटेज का सहारा लिया लेकिन हकीकत यही है कि फुटेज उपलब्ध होने के बाद भी अपराधियों को पकड़ने में और शिनाख्त करने में काफी समय लग गया। कारण हैं कि फुटेज में साफ तौर पर तस्वीर नहीं दिखाई पड़ी जिसके कारण पुलिस अंधेरे में और सूत्रों के माध्यम से अपराधियों को पकड़ती रही। वहीं कई स्थानों पर सिर्फ आप कैमरे की नजर में लिखा हुआ बोर्ड लगाकर पुलिस गुमराह भी कर रही है।
पीछा छुड़ाने के लिए लगवा देते हें कैमरा
सूत्र बताते हैं कि पुलिस महकमे के पास जो पैसा पीएचक्यू से आता है उसमें निचले स्तर पर कमीशनबाजी बड़े पैमाने पर होती है। इतना ही नहीं थानाध्यक्ष व्यापारियों से सहयोग कर कैमरे लगवाने की बात करते है। ऐसे में व्यापारी भी पुलिस के इस जंजाल से बचने के लिए सस्ते दामों का कैमरा लगवाकर किनारा कर लेते है। हालांकि इन कैमरों की क्वालिटी इतनी खराब है कि कभी-कभी अपराधी अपराध करके भाग जाता है लेकिन उसकी पहचान नहीं हो पाती है।
फुटेज के आधार पर मिली कई सफलताएं: एसएसपी
एसएसपी राजेश कुमार पांडेय ने बताया कि फुटेज के आधार पर कई सफलताएं मिली है। कुछ मामलों में दिक्त होती है लेकिन साफ्टवेयर से सहारा लिया जाता है। कुछ मामलों में दिक्कतें आती है। आम दुकानदारों द्वारा लगाये गये कैमरों की क्वालिटी भी कोई खास नहीं होती है।
रिपोर्टर – गणेश जी वर्मा