अयोध्या कुमारी गौड़ की हिम्मत के सामने टिक पाना मुश्किल है। 80 साल की उम्र में उन्होंने जोधपुर में महर्षि पब्लिक स्कूल की पूरी जिम्मेदारी संभाली हुई है। इस स्कूल को उन्होंने 2001 में शुरू किया था।
वह हंसते हुए कहती हैं, “यह हिंदी मिडियम स्कूल है, लेकिन हम अंग्रेजी और उर्दू भी पढ़ाते हैं। मुझे अंग्रेजी की अहमियत का एहसास है।”
अयोध्या के टीचर बनने की कहानी बाकी लोगों से थोड़ा हटकर है। कोई व्यक्ति अपने जीवन के पहले 15 साल बिना पढ़े-लिखे बिताए और फिर अपनी जिद और हिम्मत से शिक्षक बन जाए। ऐसा कम ही देखने को मिलता है। अयोध्या कुमारी जयपुर के एक रूढ़िवादी परिवार से हैं, जहां लड़कियों को स्कूल भेजने के बारे में कभी नहीं सोचा जाता था। सो, उन्हें भी नहीं पढ़ाया गया। 15 साल की उम्र तक अयोध्या न तो पढ़ सकती थी और न ही लिख सकती थी। लेकिन एक दिन उनके पिता के एक दोस्त की पत्नी, जो उस समय एक स्कूल चलाती थीं, ने उनसे पढ़ाई शुरू करने के लिए कहा, तो उन्होंने इस ओर अपने कदम बढ़ा लिए।
अयोध्या कुमारी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “1957 में मैंने अपने से आधी उम्र के बच्चों के साथ पढ़ना शुरू किया। लेकिन यह कोई समस्या नहीं थी और वास्तव में मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा था। मैंने हिंदी के अक्षरों को पढ़ना सीखा। नंबर भी गिनना आ गया था। यहां तक कि विज्ञान की कुछ बुनियादी बातों में भी महारत हासिल कर ली थी। लेकिन अंग्रेजी को लेकर काफी मशक्कत करनी पड़ी ।” लेकिन वह सीखती रही। और, जैसा कि उन दिनों लड़कियों के साथ होता था, उन्हें 1962 में 18 साल की उम्र में शादी करनी पड़ी और वह जोधपुर चली आईं।
अयोध्या कुमारी गौड़ ने कहा, “मैं एक पत्नी बनी और फिर दो बच्चों की मां। भले ही मैंने पढ़ाई को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, लेकिन अंदर एक आग बनी रही। पूरे 15 साल बाद मैंने खुद से 10वीं की परीक्षा पास की। उस समय मेरी उम्र 31 साल की थी। ” वह आगे की कहानी बताती हैं, “ इसके बाद फिर से एक लंबा अंतराल गया। मैंने 1985 या उसके बाद कमला नेहरू विद्यालय से अपना इंटर और फिर अपने स्नातक की पढ़ाई पूरी की। आखिरकार 1990 में मैंने कोटा ओपन यूनिवर्सिटी से बीएड किया। यह वही समय था जब मेरी बेटी किसी दूसरी जगह से बीएड कर रही थी।’
अपनी उम्र के पचासवें पड़ाव के बीच में उन्होंने जोधपुर में महर्षि पब्लिक स्कूल शुरू किया। इसे उन्होंने अपने घर से ही शुरू किया था।
वह कहती हैं, “मैंने बच्चों की पढ़ाई के सामने आने वाली समस्याओं को देखा है। ऐसे बहुत से बच्चे हैं जो पढ़ना तो चाहते हैं मगर स्कूल की फीस दे पाना उनके बस में नहीं होता। पैसा हमेशा अच्छी शिक्षा के रास्ते में आता है। लेकिन मेरी प्रयास हमेशा से यही रहा है कि कम से कम मेरे स्कूल में ऐसा न हो।
इस 80 साल की शख्सियत ने शिक्षण को लेकर एक काफी अहम बात कही ” यह सब समझने के बारे में है। उम्र का इससे कोई लेना-देना नहीं है। मैं एक ऐसे व्यक्ति का उदाहरण हूं जिसने पंद्रह साल की उम्र में पढ़ना सीखा। मैं आज एक शिक्षक हूं। अगर एक शिक्षक और छात्र एक-दूसरे को समझते हैं तो प्रगति नहीं रुकती है।”
अयोध्या ने कहा कि स्पीड ब्रेकरों और बाधाओं से भरी मेरी यह यात्रा काफी लंबी रही, लेकिन यहां सीखने को भी काफी कुछ मिला। उनका ये सफर खुशियों और उतार-चढ़ाव से भरा रहा। वह कई बार परीक्षा में असफल हुई और उन्हें बार-बार परीक्षा देनी पड़ी। उन्हें अपनी पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी। सीखने की अपनी यात्रा में लंबे समय तक ब्रेक लेने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
आज, वह पढ़ाना जारी रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि वह छोटे बच्चों के साथ अधिक समय बिताना पसंद है ताकि उनके सीखने की प्रक्रिया की नींव को मजबूत और गहरी बना सकें। वह मुस्कराते हुए कहती हैं, “सीखने और सिखाने के इस सफर ने मुझे फिट बना दिया है। अगर मैं लंबे समय तक पढ़ाती रहूंगी तो सौ साल तक जिंदा रह सकती हूं।”