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5 साल से 80 साल की उम्र वाले इनसे सीखने आते हैं ये ख़ास संगीत

कहते हैं कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिलता और सीखने की कोई उम्र नहीं होती, तभी तो वरुण मिश्रा की संगीत कक्षा में पाँच साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुज़ुर्ग तक सीखने आते हैं।
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दूर से सुनाई देती शास्त्रीय संगीत की गूँज, कमरे की एक दीवार पर पंडित भीम सेन जोशी, पंडित राजन साजन मिश्र, हरिप्रसाद चौरसिया, बिस्मिल्लाह खान, पंडित गणेश प्रसाद मिश्र जैसे गीत-संगीत के महारथियों की तस्वीरें।

ये है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज में स्थित ‘ओमकार’ पंडित गणेश प्रसाद मिश्र म्यूजिक एकेडमी, जहाँ के बनारस संगीत घराने के गुरु वरुण मिश्रा अपने शिष्यों को शास्त्रीय संगीत सिखाते हैं। यहाँ उम्र की कोई सीमा नहीं है तभी तो पाँच साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुज़ुर्ग तक इनसे संगीत की शिक्षा ले रहे हैं।

अपनी संगीत यात्रा पर वरुण मिश्रा गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “संगीत बाँटने की चीज है, क्या होता है कि अपने सालों संगीत सीखा और उसके बाद किसी से शेयर ही नहीं किया तो वो चला जाएगा; आज मैं हूँ कल नहीं रहूँगा तब भी मेरा संगीत कोई गाएगा, ऐसे में मेरा संगीत अमर हो जाएगा।”

वरुण मिश्रा को संगीत की शिक्षा अपने दादा और पिता से मिली, जैसे उनके यहाँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संगीत का प्रसार हुआ है, उसी तरह वरुण भी दूसरों को सिखाते हैं। अपने शिष्यों से घिरे वरुण ठहरकर कहते हैं, “मैंने संगीत बचपन से ही सीखा है मेरा एक घराना है, बनारस घराना, वहाँ से बड़े-बड़े दिग्गज निकले हैं।”

“मेरे पहले गुरु मेरे दादा जी, पंडित नीलेश प्रसाद मिश्र जी, जो भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय जो पहले कॉलेज था वहाँ के प्रिंसिपल थे, मेरे पिता जी पंडित विद्याधर मिश्र जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सीनियर प्रोफेसर थे। ” वरुण ने आगे कहा।

अपने घर की दीवार पर संगीत के दिग्गजों की तस्वीरों के बारे में वरुण गर्व से कहते हैं, “दादा जी और पिता जी से तो मैंने संगीत की तालीम ली, लेकिन मैंने अपने घर में ऐसे लोगों की तस्वीरें लगा रखी हैं, जिनसे मैंने बहुत सीखा है।”

“सबसे पहले मेरे नाना जी पंडित राजन साजन मिश्रा जी, वो मेरे आइडियल थे, उनसे भी बहुत सीखने को मिला है, पंडित भीमसेन जोशी जी, पंडित राशिद खान जी, जिन लोगों को मैंने बचपन से सुना है, उन लोगों से मैं सीखता रहा हूँ और कोशिश की है कि अपने अंदर उसे लूँ और मेरे अंदर से भी कुछ निकले; ऐसे लोगों का आशीर्वाद लेकर हमने भी शुरुआत की, मेहनत कर रहे हैं, आज भी सीख रहे हैं। ” वरुण ने आगे बताया।

अपनी संगीत यात्रा को आगे और बढ़ाने के लिए वरुण ने अपने दादा जी के नाम संगीत संस्थान की शुरुआत की है, जहाँ पर ऑफलाइन के साथ दुनिया भर के शिष्य ऑनलाइन माध्यम से संगीत सीखते हैं।

वरुण कहते हैं, “जो भी हमने संगीत सीखा है, कोशिश है कि उसे देश-विदेश तक पहुँचाएँ और अपने घराने का, अपने गुरुओं का और ख़ास करके शास्त्रीय संगीत को जन-जन पहुँचाएँ, क्योंकि ये हमारी धरोहर है, हमारी संस्कृति है; इसलिए मैंने अपने दादा के नाम पर ‘ओमकार’ पंडित गणेश प्रसाद मिश्र म्यूजिक एकेडमी की शुरुआत की है, इसे मैं ऑनलाइन और ऑफलाइन चला रहा हूँ, लखनऊ में ऑफलाइन क्लास की दो शाखाएँ चलती हैं। ” वरुण ने आगे कहा।

वरुण की ऑनलाइन क्लास में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के अलावा लंदन, दुबई से भी स्टूडेंट्स शामिल होते हैं। वरुण कहते हैं, “मैंने कोई उम्र नहीं निर्धारित की है, पाँच साल से लेकर 80 साल के लोग मुझसे सीखते हैं; ये गुरुओं का आशीर्वाद है कि एकेडमी शुरु की और स्टूडेंट्स मिलते गए।”

अपने सिखाए शिष्यों को जब वरुण आगे बढ़ते हुए देखते हैं तो उन्हें अलग ही खुशी मिलती है। वरुण बताते हैं, “मुझे सबसे ज़्यादा खुशी होती है, जब मैंने किसी को कोई चीज सिखाया और उसे वो पूरी तरह से बैलेंस्ड तरीके से गा पा रहा है; दूसरे लोग से उसकी तारीफ़ मिल रही है, उसे काम मिलने लगे तो मुझे लगता है कि मेरी तपस्या सफल रही।”

वरुण का मानना है कि संगीत गुरु मुखी विद्या है, इसे बिना गुरु के सीखा नहीं जा सकता है। कहीं न कहीं, किसी न किसी से तो आप सीखेंगे ही, यूट्यूब जैसे माध्यम से भी लोग सीखते हैं। वे कहते हैं, “मुझे लगता है कि जब तक आप गुरु के सामने बैठकर नहीं सीखेंगे, आपको वो तालीम नहीं मिलेगी।”

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