स्पेस लैब वाले गाँव के पहले सरकारी स्कूल से बच्चों की अंतरिक्ष उड़ान
उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले की इस ग्राम पंचायत के सरकारी स्कूल में स्पेस लैब बनाई गई है। यहां के बच्चे ग्रहों और आकाशगंगा की बात करते हैं, हाल ही में राष्ट्रपति ने इस पंचायत को बाल हितैषी पंचायत पुरस्कार से भी सम्मानित किया है।
Divendra Singh 29 April 2023 11:00 AM GMT
चंद्रयान, मंगलयान, सेटेलाइट, कई तरह के एयरक्राफ्ट और रात में टेलीस्कोप के जरिए दूर आसमान से सितारे देखना। आपको भी यही लग रहा होगा कि यहां पर इसरो जैसी किसी बड़ी संस्था की किसी स्पेस लैब का जिक्र हो रहा है। अगर आपसे ये कहें कि ये किसी सरकारी स्कूल की लैब है तो शायद यकीन करना मुश्किल होगा।
प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 225 किमी दूर सिद्धार्थनगर की हसुड़ी औसानपुर ग्राम पंचायत के सरकारी विद्यालय में बनी है विक्रम साराभाई स्पेस लैब। 17 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस ग्राम पंचायत को बाल हितैषी पंचायत पुरस्कार से भी सम्मानित किया।
आज स्कूल में आसपास ही नहीं पूरे जिले के बच्चे स्पेस लैब देखने आते हैं। ग्राम पंचायत और स्कूल में कायाकल्प का श्रेय जाता है, यहां के ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी को। इस बदलाव की कहानी के बारे में दिलीप गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "हमारी ग्राम पंचायत में बच्चों की अलग से बाल पंचायत है। जिसमें अलग से सरपंच और दूसरे पद बच्चों को ही दिए गए हैं। स्पेस लैब की शुरुआत के पीछे भी दिलचस्प कहानी है।"
इस लैब में रॉकेट और सेटेलाइट के मॉडल, टेलीस्कोप, ड्रोन, एयरक्राफ्ट, थ्री डी प्रिंटर, रोबोट लगाये गये हैं। यहाँ बच्चे न सिर्फ विज्ञान और तकनीकी से परिचित हो रहे हैं बल्कि उनमें वैज्ञानिक बनने की इच्छाशक्ति भी आ रही है।
दिलीप आगे कहते हैं, "स्कूल में जब भी बच्चों से पूछा जाता कि वो बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं तो कोई कहता पुलिस बनेगा, कोई आईएएस या फिर कोई डॉक्टर, कभी कोई साइंस या टेक्नोलॉजी में जाने की बात नहीं करता। एक बार बच्चों को मिशन मंगल फिल्म दिखाई गई तो बच्चों ने खूब मन से फिल्म देखी, तब लगा कि अपने गाँव में भी ऐसा ही कुछ करना चाहिए।"
दिलीप त्रिपाठी ने इसरो की वेबसाइट पर जाकर पता किया तो जानकारी मिली की कई ऐसी प्राइवेट कंपनियां हैं जो इस क्षेत्र में काम करती हैं। वो बताते हैं, "हमने एक स्टार्टअप के बारे में पता किया जो इसी पर काम करती है। यही नहीं वो पास के जिले गोरखपुर के निकले। उनसे पूरी बात बताई। शुरू में उन्हें भी यही लगा कि बड़े-बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज और कॉन्वेंट स्कूल में ऐसा सेटअप नहीं लगाते, आप गाँव में कैसे लगवाएंगे?"
डॉक्टर-इंजीनियर ही नहीं अब बच्चे अंतरिक्ष वैज्ञानिक भी बनना चाहते हैं।
दिलीप त्रिपाठी से बात करने बाद, कंपनी के लोग गाँव पहुंचे और बच्चों का आईक्यू लेवल देखने के बाद यहां पर लैब बनाने का फैसला किया। दिलीप आगे कहते हैं, "पंचायत निधि के पैसों से हमने लैब बनवाई और 14 नवंबर को बाल दिवस के दिन अपने स्पेस लैब की उद्घाटन किया गया। करीब एक महीने तक पूरे जिले से बच्चे आते रहे, गाँव में पीपली लाइव जैसा माहौल बन गया था। रिक्शा, ऑटो, बाइक, कार, जीप हर तरफ से बच्चे चले आ रहे थे।"
देश के गांवों के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले इन विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई। आपका सेवाभाव और समर्पण देशवासियों को प्रेरित करने वाला है। https://t.co/M9gBERQJic
— Narendra Modi (@narendramodi) April 18, 2023
बच्चों के साथ अभिभावकों ने भी जाना चांद का रहस्य
गाँव में बच्चों के साथ उनके अभिभावक भी लैब देखने पहुंचते हैं, उन्हें भी इस बात की जानकारी मिलती हैं कि चांद पर कोई नहीं है, बल्कि वहां पर तो गड्ढे हैं। दिलीप कहते हैं, "जब बच्चों ने अपने घर पर जाकर बताया कि चंद्रमा पर कोई रहता ही नहीं, वहां पर तो गड्ढे हैं, फिर क्या अब तो उनके घर वाले भी यहां देखने आते हैं।
प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक राम कृपा बताते हैं, "स्कूल में बनी स्पेस लैब में 1980 से 2013 के बीच इसरो के जितने भी रॉकेट और प्लेन बने सभी के मॉडल यहां पर रखे गए हैं। बच्चे जानते हैं कि कैसे रॉकेट उड़ता है। बच्चे ड्रोन भी उड़ाते हैं। यहां थ्रीडी प्रिंटर भी है।
गाँव में हफ्ते में एक दिन उड़ते हैं जहाज
इस अनोखे स्कूल में हफ्ते मे एक दिन फ्लाई डे रहता है। स्कूल में दस तरह के जहाज हैं, जिन्हें बच्चे खुद से उड़ाते हैं, जोकि दो किमी तक उड़ता है। उस दिन पूरे गाँव में लोग इसे देखने के लिए पहुंचते हैं।
जब गाँव के बच्चे पहुंचे इसरो स्पेस लैब
इसरो की तरफ से हसुड़ी औसानपुर के सात बच्चों को अहमदाबाद इसरो लैब भी बुलाया गया था। उनके साथ स्कूल के प्रधानाध्यापक राम कृपा और ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी भी वहां गए थे। दिलीप बताते हैं, "इसरो लैब में हमने देखा कि सेटेलाइट कैसे बनता है। कैमरे कैसे काम करते हैं। सेटेलाइट के चारों तरफ सोने की परत कैसे लगाई जाती है। सात बच्चों में पांच लड़कियां इसरो गई थी। यही नहीं हमारे स्कूल में बच्चियों की संख्या करीब 53 प्रतिशत है। इसरो लैबजाने के बाद बच्चों की सोच बदल गई। आज उन्हें लगता है डॉक्टर, इंजीनियर के अलावा वो साइंटिस्ट भी बन सकते हैं।"
बाल पंचायत की 16 साल की सरपंच श्रेया त्रिपाठी भी अहमदाबाद जाने वाले बच्चों में से एक हैं। श्रेया गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "हमने कभी नहीं सोचा था कि कभी अहमदाबाद इसरो लैब तक पहुंचेंगे। वहां पर हमने देखा कि कितनी सारी महिलाएं भी साइंटिस्ट हैं। हमने वहां के साइंटिस्ट से बहुत सारे सवाल भी पूछे कि कैसे रॉकेट बनाते हैं?, कैसे मंगलयान और चंद्रयान स्पेस तक जाते हैं?"
भोपाल में हुए इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल में भी हसुड़ी औसानपुर के बच्चों ने बेहतर प्रस्तुति दी थी, जिसे ग्रामीण शिक्षा के बेहतर मॉडल का पुरस्कार भी मिला।
लैब के साथ ही इस स्कूल में कई आधुनिक सुविधाएं
स्कूल में स्मार्ट क्लास में बच्चों की पढ़ाई होती है, स्कूल में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, साथ ही बच्चों की हाजिरी बायोमेट्रिक मशीन से लगती हैं। क्लास में एसी भी लगाई गई है। दिलीप त्रिपाठी कहते हैँ, "मैंने भी इसी स्कूल में पढ़ाई की इसलिए मुझे पता है कि इसमें क्यों बदलाव लाने की जरूरत है। यही नहीं स्कूल में गाँव की आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं सहित कई लोगों के बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ते हैं।"
हसुड़ी औसानपुर ग्राम पंचायत, जोकि पूरी तरह से डिजिटल गाँव है। गाँव में जगह-जगह पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, गाँव में कहीं भी आपको कूड़े का ढेर नहीं दिखेगा, क्योंकि हर दिन सुबह शाम घर घर जाकर कूड़ा इकट्ठा किया जाता है। गाँव में आधुनिक सुविधायुक्त पंचायत भवन भी है। इसलिए हसुड़ी औसानपुर ग्राम पंचायत को तीन बार नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
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