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मैम की एक्टिंग से सीख रहे हैं बच्चे, पढ़ने का तरीका

उत्तर प्रदेश के एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाली श्वेता सिंह जानती थीं कि रंगमंच का जीवन पर कितना गहरा असर पड़ता है और इसके जरिए बच्चों को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है। वह न सिर्फ छात्रों को पढ़ाने के लिए बल्कि गाँव में उन्हें एक सामाजिक प्रेरक बनाने के लिए भी नुक्कड़ नाटकों का मंचन कराती रहती हैं।
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सिकटौर (गोरखपुर), उत्तर प्रदेश। एक खुशनुमा सुबह और धीरे-धीरे चलती हवा। सिकटौर प्राइमरी स्कूल के तीसरी कक्षा के छात्रों का एक झुंड पीपल के पेड़ के नीचे यहां से वहां घूम रहा था।

तभी कुछ तेज आवाजों ने उनकी तरफ अपना ध्यान खींचा। “सुनो सुनो भाई सुनो सुनो, आज यहां पर क्या होगा…..नाटक होगा, नाटक होगा, “नाटक में भाग ले रहे कलाकार आते-जाते लोगों को रोकने और अपना नाटक देखने के लिए बुलाने लगते हैं।

गुलाबी और भूरे यूनिफार्म में साफ-सुथरे नजर आ रहे छात्र संगम, सृष्टि और अंशिका एक लघु नाटिका प्रस्तुत करने वाले हैं। उनकी उम्र आठ से दस साल के बीच होगी। उनके आज के नुक्कड़ नाटक का विषय मोबाइल फोन की वजह से जीवन पर पड़ने वाले असर से जुड़ा है।

आज के नुक्कड़ नाटक का विषय मोबाइल फोन की वजह से जीवन पर पड़ने वाले असर से जुड़ा है।

आज के नुक्कड़ नाटक का विषय मोबाइल फोन की वजह से जीवन पर पड़ने वाले असर से जुड़ा है।

नाटक की शुरुआत तालियों की गड़गड़ाहट के साथ एक गाने से होती है। गाँव की चौपाल में सामाजिक जागरुकता अभियान के तहत नाटक का प्रदर्शन किया जाना है और इस थिएटर ग्रुप की कप्तान उनकी टीचर श्वेता सिंह हैं। उन्होंने तीन दिनों में अपने छात्रों को इस प्रदर्शन के लिए तैयार किया था।

अंशिका निषाद ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमने ड्रेस और दुपट्टे का इंतजाम किया और कार्डबोर्ड से एक मोबाइल फोन बनाया। यह सब बेहद मजेदार रहा। मैम ने हमें यह सब सिखाया है।”

37 साल की श्वेता 2010 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के खोराबार ब्लॉक के सिकटौर प्राथमिक विद्यालय में तीसरी क्लास के बच्चों को पढ़ाने के लिए आईं थी। बच्चों की ज्यादातर किताबें कहानियां और कविताओं से भरी पड़ी हैं। उन्होंने सोचा कि क्यों न बच्चों को कुछ अलग तरीके से पढ़ाया जाए, जिससे वो पाठ को बेहतर ढंग से याद रख पाएं और उन्हें उसे पढ़ने में मजा भी आए। इसके लिए उन्होंने नुक्कड़ नाटक की तरफ जाने का फैसला कर लिया।

श्वेता के 48 छात्र बेहद रोमांचित हैं। उन्हें आज गवैया गधा की कहानी सुनाई जाएगी। बच्चों के बीच उत्साह बढ़ने लगता है। टीचर कहानी के दो पात्रों – गधा और सियार के आवाज निकालते हुए आगे बढ़ती हैं। कुछ छात्र हंसी के ठहाके लगाने लगते हैं तो कुछ हैरानी से अपनी टीचर की तरफ देखने लगते हैं। सभी आगे की कहानी जानने के लिए बेचैन होने लगते हैं।

जैसे ही कहानी खत्म होती है, बच्चे खुश होते हुए जोर से ताली बजाते हैं। इसके बाद उन्हें कहानी में आने वाले कठिन शब्दों जैसे धोबी, गधा, सियार, कपडा आदि को लिखने के लिए ब्लैक बोर्ड पर एक-एक करके बुलाया जाता है।

हर कोई इन शब्दों को लिखने के लिए ब्लैक बोर्ड पर आने के लिए उत्सुक नजर आने लगता है।

“मैम! मैम! मैम! हम हम ” वे अपनी टीचर का ध्यान आकर्षित करने के लिए चिल्लाने लगते हैं।

और आखिर में शिखा पहले से वहां लिखे शब्दों के साथ एक वाक्य बनाने के लिए बोर्ड के पास आती है।

“हम कपड़ा प-ह-न-ते….पहनते हैं “10 साल की शिखा ने वर्तनी की गलती किए बिना ब्लैकबोर्ड पर शब्द लिखा और आत्मविश्वास से लबरेज चेहरे के साथ वापस अपनी सीट पर चली गई।

एक टीचर और ऑटिस्टिक बच्चे की मां

श्वेता सिंह जानती हैं कि रोल प्ले कितना महत्वपूर्ण है। शायद इसकी वजह उनकी अपनी 15 साल की बेटी आदिता है, जो ऑटिज्म से जूझ रही है। उसके साथ बात करने के लिए श्वेता को इसी तकनीक का सहारा लेना पड़ता है।

श्वेता ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ऑटिज़्म एक ऐसी अवस्था है जहां किसी के पास बहुत सारा खजाना एक ट्रंक में बंद होता है, लेकिन चाबी फेंक दी जाती है। मेरी बेटी के साथ भी कुछ ऐसा ही है। उसे किसी के साथ बातचीत कर पाना चुनौतीपूर्ण लगता है।”

प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका को लगता है कि अगर पाठ को आकर्षक तरीके से नहीं पढ़ाया गया तो वो शायद बच्चों को हमेशा के लिए परेशान करता रहता है।

प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका को लगता है कि अगर पाठ को आकर्षक तरीके से नहीं पढ़ाया गया तो वो शायद बच्चों को हमेशा के लिए परेशान करता रहता है।

शुरुआत में जब श्वेता अपनी बेटी की स्थिति से निपटने के लिए चीजें सीख रही थी, तो उन्हें ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम में लोगों के साथ बातचीत करने के लिए नाटक को एक आदर्श तरीका बताते हुए उसकी अवधारणा से परिचित कराया गया था।

उन्होंने कहा, “अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए मैंने दो साल तक लखनऊ में ट्रेनिंग ली। वहां, उन्होंने हमें चित्र भाषा सिखाई और बताया कि कैसे एक ऑटिस्टिक बच्चे के साथ अभिनय और चेहरे के भावों के जरिए बातचीत की जा सकती है। यह जानकारी मुझे अपनी क्लास में भी काम आई है क्योंकि हर बच्चा एक अलग पृष्ठभूमि से आता है।”

वह आगे कहती हैं,“नाटक सामाजिक संदेशों को समझाने या फैलाने का एक बहुत मजबूत माध्यम भी है। मैं छात्रों से नुक्कड़ नाटक करवाती रहती हूं, जो ग्रामीण परिवेश में वास्तव में अच्छी तरह से काम करता है, क्योंकि यहां बहुत से लोग अनपढ़ हैं। हमने स्वच्छता की आदतों और साफ-सफाई पर कुछ काम किया था, जिसका ग्रामीण समुदाय पर खासा प्रभाव पड़ा।”

श्वेता ने माना कि उन्हें छोटी उम्र से ही फिल्मों का बड़ा शौक रहा है और उन्हें अभिनय से भी प्यार है। एक बार जब वह अपनी मौसी के यहां छुट्टियां बिताने गई थी, तो उनका मन नहीं लग रहा था। बोरियत से बचने के लिए उन्होंने ‘किट्टू गिलेहरी’ नामक एक नाटक तैयार किया। उन्होंने इसके निर्देशन से लेकर अभिनय तक सारी भूमिकाएं खुद ही निभाईं।

श्वेता ने हंसते हुए कहा, “जो बच्चे देखने आए थे वे चकित थे। वे उस लड़की के साथ दोस्ती करने के लिए बेचैन हो गए जिसने एक नाटक में सभी पात्रों को निभाया था।”

शिखा पहले से वहां लिखे शब्दों के साथ एक वाक्य बनाने के लिए बोर्ड के पास आती है।

शिखा पहले से वहां लिखे शब्दों के साथ एक वाक्य बनाने के लिए बोर्ड के पास आती है।

प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका को लगता है कि अगर पाठ को आकर्षक तरीके से नहीं पढ़ाया गया तो वो शायद बच्चों को हमेशा के लिए परेशान करता रहता है।

उन्होंने कहा, “मैं आज भी गणित से बहुत डरती हूं। क्योंकि इसे कभी भी दिलचस्प या मनोरंजक तरीके से नहीं पढ़ाया गया था।” यही एक कारण है कि उन्होंने अपने अध्यापन में नाटक को शामिल किया।

श्वेता के छात्रों में से एक संगम पासवान को अपनी टीचर का पढ़ाने का यह तरीका काफी पसंद है। वह खुद जानवरों की आवाज़ की नकल करने के लिए काफी मशहूर है।

श्वेता की कक्षा के छात्रों में से एक पासवान ने गाँव कनेक्शन को बताया,”मैं कुत्ते, बिल्ली और गधे की आवाज की नकल कर सकता हूं। यह सब हमें मैम ने सिखाया है। जब वह ऐसा करती हैं तो हमें बहुत हंसी आती है।”

12 साल के संगम ने आगे कहा, “ मुझे भी फिल्में बेहद पसंद हैं और घर में हीरो की नकल करता रहता हूं।”

सृष्टि ने अभी तीन महीने पहले ही स्कूल में दाखिला लिया था। उसने गाँव कनेक्शन से कहा, “जब मैं स्कूल में आई तो मुझे कुछ भी नहीं आता था। लेकिन अब मुझे पहाड़े, महीनों के नाम सब पता है। मैं हिंदी की किताब भी अच्छे से पढ़ सकती हूं। मैम अपनी एक्टिंग से बहुत अच्छा सिखाती हैं।”

श्वेता की क्लास में माहौल बेहद खुशनुमा है। बच्चे गधे के रेंगने की आवाज निकाल रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे धोबी के गधे की कहानी में उनकी शिक्षिका ने उन्हें अभी-अभी सिखाई थी।

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