हमारे आसपास कई ऐसी चीजें होती हैं, जिन्हें हम चमत्कार समझते हैं, असल में जिनके पीछे चमत्कार नहीं विज्ञान होता है। इसी अंधविश्वास और विज्ञान के बीच का अंतर समझाते हैं शिक्षक संतोष कुमार, तभी तो उनकी क्लास में बच्चों के साथ उनकी माँएँ भी आती हैं।
ओडिशा के कालाहांडी जिले में नारला ब्लॉक के जाया दुर्गा हाई स्कूल हाई स्कूल की विज्ञान शिक्षक हैं संतोष कुमार। उनके स्कूल के बच्चों को विज्ञान और चमत्कार का अंतर पता है।
यही नहीं, संतोष कुमार कर की छवि आज हर एक बच्चे के लिए एक उद्धरण साबित हो गई है साथ ही वैज्ञानिक की इच्छा को भी जगा दिया है।
संतोष कुमार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “यहाँ के अभिभावक अंधविश्वास पर ज्यादा भरोसा करते हैं, किसी भी बच्चे को विज्ञान में रुचि नहीं थी, विज्ञान के लिए स्कूल में ऐसा कुछ नहीं था जिससे मैं बच्चों को आकर्षित कर सकूँ या कोई भी उपकरण की व्यवस्था थी। यह सब चीजें मेरे लिए एक चैलेंज थी कि कैसे मैं इन सबको बदल सकूँ।”
संतोष कुमार खुद भी इसी स्कूल में पढ़े हुए हैं, इसलिए वो चीजों को ज़्यादा बेहतर ढंग से समझते हैं। वो कहते हैं, “जब मैं यहाँ पढ़ता था, तभी सोच लिया था कि इस अंधविश्वास को बदलना है।”
संतोष कुमार गाँव कनेक्शन से आगे बताते हैं, “जब मैं टीचिंग लाइन में आया, हमेशा मुश्किलों का सामना करना पड़ा और यहाँ पढ़ना मेरे लिए एक चैलेंज था, क्योंकि जो चीजें बच्चों के दिलों और दिमाग में बैठ गई हैं, उन्हें बदलना आसान नहीं था। पर हमने ठान लिया था कि हम कुछ करेंगे।”
ऐसे बढ़ायी विज्ञान में रुचि
संतोष कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “जैसे कि यह एक आदिवासी क्षेत्र है और यहाँ के अंधविश्वास और साइंस क्लास हमेशा लंच ब्रेक के बाद होता था, तो बच्चे खाना खाने जाते थे और आते नहीं थे। पर जबसे मैंने खिलौनों के सहारे और स्मार्ट क्लासरूम में पढ़ाया, तब बच्चे खाना खाने के बाद भी आने लगे और नामांकन भी बढ़ी स्कूल में।”
यहाँ के लोग महुआ बीनते हैं, इसमें बच्चे भी शामिल हैं, जिससे कुछ अतिरिक्त कमाई हो जाती है, लेकिन अब बच्चे पहले पढ़ने आते हैं, बाद में महुआ बीनने जाते हैं। वो कहते हैं, “हमारे इस पढ़ाने की नई विधि के कारण बच्चे अब आते हैं। यही नहीं, मैं हमेशा देखता हूँ कि विज्ञान की क्लास के दौरान महिलाएं भी आगे आती हैं और उत्साह भी रहती हैं। इन सबके चलते हमारे स्कूल का पासिंग प्रतिशत 99% रहा है।”
यहाँ के स्कूल को ‘पठानी सामंत’ कम्पटीशन में हमारे स्कूल के सबसे अच्छा रैंकिंग भी मिली और विज्ञान प्रसार की ओर से स्कूल को पचास हजार रुपये भी मिले थे। पुराने छात्रों की मदद से यहाँ पर कई सारी नई चीजें लायी गईं हैं।
संतोष कुमार ने आगे सलाह देते हुए कहा, “पढ़ाई पढ़ने से नहीं होगी; इसके साथ शामिल होना पड़ेगा। हर एक चीज में से उसके वैज्ञानिक तत्वों को निकालकर समझ के उसे ज्ञान को बांटना एक शिक्षक का धर्म होता है।”
“जैसे कि जब नाव पानी में चलती है, वह हमेशा पानी के आगे की ओर जाती है, पर इसके पीछे की साइंस का कारण है न्यूटन का थर्ड लॉ। बच्चों को हमेशा यह समझाने में और समझने में मुश्किलें आती हैं, पर मैंने उसे समझाने के लिए एक खिलौना बनाया, जिससे जब नाव पर बल पड़ेगा तो वह आगे की ओर बढ़ेगा, “उन्होंने आगे बताया।
जाया दुर्गा स्कूल के बच्चे खेल के समय भी वैज्ञानिक उपकरणों के साथ खेलते थे।
यहाँ से पढ़ाई कर चुके सौरव सुमन मिश्रा बताते हैं, “सर ने विश्लेषणात्मक सोच और समस्या समाधान कौशल में जो मजबूत आधार तैयार किया, वह मेरी पढ़ाई के दौरान काफी मदद मिली। आगे पढ़ाई के दौरान यही सारी चीजें मेरे बहुत काम आयीं।”
“मेरे लिए, सर की क्लास किसी बदलाव से कम नहीं थीं। विज्ञान और गणित के मुश्किल से मुश्किल सवालों के जवाब समझने में उन्होंने काफी मदद की। सर अक्सर असली दुनिया के उदाहरणों और हाथों से किए जाने वाले प्रयोगों का उपयोग करके पढ़ाते थे, जिससे हमें पढ़ने में काफी अच्छा अच्छा लगता था, “यहाँ के पूर्व छात्र अतुल ने बताया।
विद्या रनुई साहू और सुसम्भति ने बताया, “हम बहुत खुश हैं कि सर के अनोखे तरीके पढ़ाने की विधि हमें हर चीज को आसान कर देती है और हमेशा हमें प्रेरित करती है आगे पढ़ने को और हर प्रतियोगिता में भाग लेने को।”
‘नो कॉस्ट, लो कॉस्ट’
संतोष कुमार ने ऐसे टीचिंग मेथड्स और टेक्निक्स का इस्तेमाल किया, जिससे बच्चों को समझने में आसानी हुई और बच्चों को समझने में भी। इसके बाद ही बच्चों को विज्ञान को प्यार करने लगे।”
खिलौनों के पीछे का विज्ञान
सभी बच्चों को खिलौना बहुत पसंद होता है। उसके पीछे के विज्ञान को बच्चों को समझाने के लिए पहले संतोष कुमार बच्चों को खिलौनों के साथ कोई खेल करवाते हें और फिर जाकर उसे समझते हैं, जिस कारण से बच्चों में उत्सुकता बढ़ती है।
पठानी समानता विज्ञान क्लब भी बच्चों के विज्ञान की पढ़ाई में मदद कर रहा है।
साइंस बिहाइंड मिरेकल
संतोष कुमार बताते हैं, “मैं सिर्फ बच्चों को ही नहीं, गाँव में जब कोई मेला लगे वहाँ या किसी अन्य कार्यक्रम में भी जाकर लोगों को अलग-अलग तरीकों से समझाता हूँ। इससे मैं एक कदम अपने मकसद और अंधविश्वास मुक्त बनाने में आगे बढ़ा रहा हूँ।”
आईडिया बॉक्स
संतोष कुमार लोग आईडिया बॉक्स बनाने के लिए तैयारी कर रहे हैं, जहाँ बच्चे अपने आइडियाज डाल सकते हैं।
संतोष कहते हैं, “ज्ञान बांटने से ज्ञान बढ़ता है, मैंने दूसरे भी कई शिक्षकों को भी इन्हीं खिलौनों से सिखाया और समझाया कि कैसे वे दूसरे बच्चों को सिखा सकते हैं।”