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कूड़ा बीनने वाले बच्चों के बीच खुशियों और शिक्षा की अलख जगाता ‘शिक्षा रिक्शा अभियान’

उत्तर प्रदेश के नोएडा में दो युवा इंजीनियर अपने गैर-लाभकारी संगठन ‘भविष्य’ के जरिए शुरू किए गए शिक्षा रिक्शा अभियान से मज़दूरों के बच्चों के भविष्य की नींव रख रहे हैं। वे उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश में नोएडा के कई सेक्टरों में रोज़ सुबह 10 बजे हलचल मच जाती है। बच्चों का झुंड कई अलग-अलग जगहों पर इकट्ठा होता है और एक ऑटो रिक्शा उन्हें अपने साथ ले जाता है। वालंटियर और शिक्षक भी उनके साथ सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच घूमते रहते हैं। कहीं पार्क या किसी पेड़ के नीचे एक खुली जगह ढूँढते हैं और फिर वे 6 से 12 वर्ष की उम्र के लगभग 46 या उससे ज़्यादा बच्चों के लिए एक अस्थायी कक्षा तैयार की जाती है। यह और कुछ नहीं बल्कि शिक्षा रिक्शा अभियान है।

शिक्षा रिक्शा अभियान राहुल पांडे और विकास झा के दिमाग की उपज है जो भले ही योग्य शिक्षक न हो लेकिन निर्माण मजदूरों के बच्चों को पढ़ाने और उनके जीवन को बदलने का उनके अंदर एक अलग ही जज्बा है। शिक्षा रिक्शा उनके गैर-लाभकारी संगठन ‘भविष्य’ की एक पहल है जिसे उन्होंने 2013 में शुरू किया था।

विकास झा एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। वह बिहार के मधुबनी से हैं और नोएडा में एक निजी कंपनी में काम करते हैं। वहीं राहुल पांडेय उत्तराखंड से हैं। वह एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं और फिलहाल उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में युवा मामले और खेल मंत्रालय में एक सरकारी अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। दोनों कॉलेज में सहपाठी थे और आज तक एक-दूसरे के साथ बने हुए हैं।

33 साल के झा और 31 साल के पांडेय ने 2013 में कुछ बच्चों को नोएडा, सेक्टर 61 में साईं मंदिर के पास कूड़ा बीनते हुए देखा। इंजीनियरिंग स्नातकों ने इन बच्चों को पढ़ाने और उनके जीवन में बदलाव लाने के बारे में सोचा। इस तरह से 2013 में उनके गैर-लाभकारी संगठन ‘भविष्य’ का जन्म हुआ था।

‘भविष्य’ आज दो हज़ार से ज़्यादा बच्चों की जीवन रेखा बन गया है। 10 सालों के बाद इस गैर-लाभकारी संगठन के नोएडा, पश्चिम बंगाल और बिहार के कई क्षेत्रों में पाँच शिक्षण केंद्र हैं। उनके इन शिक्षण केंद्रों की शुरुआत बच्चों को किताबें और स्टेशनरी बांटते हुए इस उम्मीद से हुई थी कि वे पढ़ाई के लिए प्रेरित होंगे।

झा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “झुग्गी बस्ती के बच्चों को पढ़ाई शुरू करने के लिए प्रेरित करना कोई आसान काम नहीं था। हम सप्ताहांत में उनसे मिलने जाते थे और उन्हें पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करने के लिए रंगीन पैन और किताबें देते थे। ” उन्होंने याद करते हुए कहा, “शुरुआत में बच्चों का रिस्पांस अच्छा नहीं था लेकिन धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ती चली गई।”

रिक्शा पर शिक्षा

अभी हाल ही में, मार्च 2023 में, झा और पांडेय नोएडा सेक्टर 118 में थे, जब उनकी नज़र एक निर्माण स्थल पर खेल रहे बच्चों पर पड़ी। ये वहाँ काम करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों के बच्चे थे। झा और पांडेय को पता चला कि ये बच्चे कभी स्कूल नहीं गए। वे स्कूल की अवधारणा से भी परिचित नहीं थे।

उनकी मदद के लिए एक रिक्शा लिया गया और शिक्षा रिक्शा अभियान शुरू किया गया।

नया रिक्शा खरीदा गया और उसे एक अस्थायी चलते-फिरते स्कूल के रूप में तैयार किया गया। और वालंटियर को इस अभियान के साथ जुड़ने का आग्रह किया गया। फिलहाल 120 वालंटियर हैं। उनमें से कुछ कॉलेज के छात्र हैं, कुछ शिक्षक हैं, और कुछ वरिष्ठ नागरिक हैं। ‘भविष्य’ उनमें से ज्यादातर को 3000 प्रति माह का स्टाइपेंड देता है। लेकिन कुछ वरिष्ठ नागरिक बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई पैसा नहीं लेते हैं।

पांडेय ने कहा, “हमने रिक्शा के लिए एक ड्राइवर भी रखा हुआ है। हम उसे हर महीने 8000 का वेतन देते हैं। हमने अपने-अपने इलाकों के बच्चों से मिलने, उन्हें प्रेरित करने और आगे बढ़कर सिखाने के लिए हर 1 से 2 किमी पर वालंटियर को तैनात किया है।

झा और पांडेय ने कुछ बच्चों को पास के सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने का बीड़ा भी उठाया हुआ है।

झा ने कहा, “2016 से हमने सरकारी स्कूलों में 50 से अधिक छात्रों का नामांकन कराया है और हमें लगता है कि हमारे सामूहिक और लगातार प्रयासों से हम संख्या बढ़ा सकते हैं।”

65 वर्षीय केशरीमल जैन एक सेवानिवृत्त इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर हैं। वह नोएडा में रहते हैं और 2018 से भविष्य से जुड़े हुए हैं। जैन बच्चों को गणित पढ़ाते हैं। जैन ने कहा, “विचार मुफ्त शिक्षा देना और वंचितों को सशक्त बनाना और उन्हें आगे बढ़ने और खुद को कुछ बनाने का अवसर प्रदान करना है।”

गैर-लाभकारी संस्था का विस्तार हुआ और 2019 में मधुबनी में भी इसके एक केंद्र की शुरुआत हो गई। 2022 में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी और बिहार के बक्सर और रोहतास में भी एक शाखा खोली गई। प्रत्येक केंद्र में तीन शिक्षक और 100 छात्र हैं। पढ़ाने आने वाले स्वयंसेवकों की संख्या लगभग 50 है।

झा ने बताया, “हमने मुरादाबाद के धनुरपुरा तुरखेड़ा गाँव में एक छोटी सी जगह भी बनाई है, क्योंकि राहुल पांडे को उनकी सरकारी नौकरी के लिए वहां तैनात किया गया है।”

हर बैग में एक किताब

‘हर बस्ती में किताब’ भविष्य की एक पहल है जो लोगों से बच्चों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए किताबों के अलावा स्कूल बैग और स्टेशनरी दान करने का आग्रह करती है। विभिन्न संगठनों ने इस पहल के लिए किताबें दान की हैं।

पांडेय ने कहा, “हम बच्चों को निर्माण के औजारों के साथ नहीं, बल्कि किताबों के साथ देखना चाहते हैं।”

शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण

गैर-लाभकारी संस्था की एक अन्य पहल को ‘स्पॉन्सर ए किड’ का नाम दिया गया है।

झा ने बताया, “एक बच्चे की शिक्षा दान के जरिए प्रायोजित की जाती है। हम छात्रों को प्रशिक्षित करते हैं, उन्हें ग्रेड तक लाते हैं और दान की मदद से उन्हें सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं।”

यह देखने के बाद कि इस पहल से कितनी मदद मिल रही है, कुछ बच्चों के माता-पिता भी अपनी क्षमतानुसार दान कर रहे हैं।

विकास झा और राहुल पांडेय दोनों का लक्ष्य और सपना है कि देश भर के हर ज़िले में कम से कम एक केंद्र खोला जाए ताकि वे वंचित बच्चों की मदद कर सकें और उनके माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित कर सकें और उनका भविष्य बर्बाद न करें।

झा ने कहा, “इससे उन बच्चों को रोज़गार के नए अवसर मिलेंगे जिन्होंने हम पर भरोसा किया है और आगे बढ़ने के सपने देखे हैं। इससे वंचित पृष्ठभूमि के अन्य बच्चों को भविष्य का हिस्सा बनने और हमारे साथ नई चीजें सीखने की अपनी यात्रा शुरू करने में भी मदद मिलेगी।” 

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