बालोतरा (बाड़मेर), राजस्थान। रोशनी से भरपूर हवादार इस हॉल में बच्चे तरह-तरह की गतिविधियाँ कर रहे हैं। कुछ बच्चे अपने नोटबुक में छोटे वर्गों में संख्याओं को लिखने का काम कर रहे हैं तो कुछ खुद से बनाई तस्वीरों में रंग भरने में मशग़ूल हैं। पहेलियाँ, रंगीन पेंसिल, और दीवार पर लगे रंगीन चार्ट ने यहाँ के वातावरण को खुशहाल बना दिया है।
हॉल में जहाँ संगीत वाद्ययंत्र दीवार के एक तरफ कतार से हैं वहीं बच्चों को योग सिखाने के लिए दरियों को फैला दिया गया है। एक बच्चे का फिजियोथेरेपी सेशन भी होता है।
वहाँ बैठा युवा छात्र कृष्णा अचानक घोषणा करता है कि वह बड़ा होकर भारतीय सेना में एक फौजी बनेगा और अपने सभी दुश्मनों को खत्म कर देगा। तभी पास में मौजूद बच्ची मेला की तुतलाती आवाज़ सुनाई पड़ती है, “फिर भी दिल है हिंदुस्तानी, फिर भी दिल है हिंदुस्तान”
मेला भावनात्मक रूप से अस्थिर है जबकि कृष्णा नेत्रहीन हैं। दोनों स्नेह मनोविकास विद्यालय में पढ़ते हैं। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए एक स्कूल जो बाड़मेर के बालोतरा गाँव में स्थित है। ये बड़ा हॉल ही उनकी कक्षा है। इस स्कूल की स्थापना 2019 में गैर-लाभकारी, सवेरा संस्थान की शाखा के रूप में की गई थी, जिसकी स्थापना 2002 में सत्यनारायण चौधरी ने की थी।
चौधरी कई साल से अपने गैर-लाभकारी संस्था के जरिए से ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कल्याण और स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए ग्रामीण राजस्थान में काफी काम किया है।
“ऐसे सैकड़ों और हजारों बच्चे हैं जो शारीरिक या मानसिक रूप से सामान्य से कम हैं, और कोई संगठित व्यवस्था नहीं है जो उनकी मदद कर सके। अपने स्कूल के माध्यम से हम उस अंतर को पाटने की कोशिश कर रहे हैं, “सत्यनारायण चौधरी, जो स्कूल के प्रबंधक भी हैं, ने गांव कनेक्शन को बताया।
वे कहते हैं, “राजस्थान के गाँवों में ऐसे कई लोग हैं जो बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। ऐसी गरीबी और संघर्ष में, अगर उनके विकलांग बच्चे हैं, तो वे उनके पुनर्वास के बारे में कुछ कर सकते हैं।
फ़ासले को कम करना है
सामाजिक कार्यकर्ता चौधरी ने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों से जुड़ी जरूरतों का जब आभाव देखा तो उन्होंने इसे दूर करने की सोची। स्नेह मनोविकास विद्यालय की स्थापना कर वो उस खाई को भरना चाहते थे जो विशेष तरह के बच्चों को अलग कर रहा था।
“मैंने एक सर्वेक्षण किया और महसूस किया कि इन बच्चों के लिए कुछ भी नहीं था। इसीलिए मैंने स्कूल की स्थापना की, ”उन्होंने कहा।
चौधरी ने कहा, “शुरुआती दिनों में, मुझे गाँव-गाँव जाना पड़ता था, लोगों को इस स्कूल के बारे में बताना होता था और विशेष जरूरतों वाले अपने बच्चों को वहाँ रखने के लिए प्रोत्साहित करना होता था। आज विद्यालय में 50 बच्चे हैं। इनकी उम्र पांच साल से लेकर 20 साल के बीच है।”
ये सिर्फ स्कूल ही नहीं है। बच्चों के लिए स्वर्ग और उनके माता-पिता के लिए आशा की किरण है। यह बच्चों के लिए शिक्षा और उपचार दोनों को जोड़ती है।
चौधरी कहते हैं, “हमारी योजना विशेष जरूरतों वाले बच्चों को उनकी ख़राब आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद बेहतर शिक्षा और उपचार देना था। स्कूल कोई फीस नहीं लेता है। बच्चों को मुफ्त ड्रेस दी जाती है और उन्हें घर से लाने और वापस छोड़ने के लिए मुफ्त बस की सुविधा है। यह दान पर चलता है और बालोतरा के उद्योगपतियों की बड़ी संख्या है जो मदद करते हैं।
बदल रही है जिंदगी
इस स्कूल में, इन बच्चों को बुनियादी कौशल और क्षमताओं में प्रशिक्षित किया जाता है जो उन्हें यथासंभव सामान्य जीवन जीने में मदद करेगा। चौधरी के अलावा दो शिक्षक और दो केयरटेकर बच्चों के साथ काम करते हैं।
रोशनी ठाकुर अपनी बेटी सिद्धि के साथ यहां रोज आती हैं और उसके साथ काम करती हैं। “यदि आप चारों ओर देखते हैं, तो आप देखेंगे कि प्रत्येक बच्चा कुछ ऐसा कर रहा है जो उसकी क्षमता के भीतर है। यह नियमित स्कूलों की तरह नहीं है जहां प्रत्येक बच्चे को एक ही काम करना पड़ता है चाहे वह सक्षम हो या नहीं, “उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।
वे कहतीं हैं, “मैं चार महीने से यहां आ रही हूँ, और मेरी बेटी में काफी सुधार हुआ है।” सिद्धि ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम में हैं।
आठ साल की कल्पना के पिता जितेंद्र के लिए स्कूल एक तारणहार रहा है। “मेरी बेटी बधिर है और ठीक से बोल, पढ़ या लिख नहीं सकती है। लेकिन यहाँ आने के बाद उसमें काफी सुधार हुआ है। आज कल्पना बहुत अधिक लिखती है। पहले से बेहतर बात करती है काफी सुधार है, “उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।
स्कूल के प्रिंसिपल सुनील प्रजापति ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमारे बच्चों को यहां स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, फिजियोथेरेपी के साथ-साथ सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी भी मिलती है। दृष्टिबाधित बच्चों को ब्रेल में प्रशिक्षित किया जाता है। शारीरिक रूप से कमजोर के कौशल में सुधार के लिए खास थेरेपी।, “उन्होंने आगे कहा।
सुनील प्रजापति कहते हैं, “ये संस्था बच्चों को व्यावसायिक प्रशिक्षण भी देती है ताकि भविष्य में वे आत्मनिर्भर बन सकें। हम जिले के सभी गाँवों में बच्चों के लिए इन सुविधाओं का विस्तार करना चाहते हैं। जिससे विकलांग लोगों के बारे में समाज में जो पूर्वाग्रह है वह टूट सके।”