कुशमा खुर्द (गोरखपुर), उत्तर प्रदेश। साक्षी निषाद से जब उसकी उम्र पूछी गई तो वह थोड़ा रुक गईं। अपनी उम्र याद करते हुए लगभग एक मिनट बाद उन्होंने कहा, “मैं सत्रह साल की हूं।” लाल व सफेद चैक की शर्ट और भूरे रंग की स्कर्ट की स्कूल वर्दी में सजी हुई साक्षी अपनी उम्र और लंबे कद के बावजूद अभी सिर्फ पांचवीं क्लास में पढ़ रही है।
दरअसल साक्षी ने काफी देर से स्कूल आना शुरू किया था। उसका दाखिला बहुत पहले कराया गया था, लेकिन उस दौरान वह शायद ही कभी स्कूल गई हो। इसलिए उसका नाम स्कूल से हटा दिया गया। अभी महज चार साल पहले उसने फिर से दाखिला लिया और नियमित रूप से स्कूल आने लगी है। तब से उसने कभी भी छुट्टी नहीं मारी है।
इस बदलाव के पीछे की वजह शिक्षक प्रदीप कश्यप की कड़ी मेहनत और अथक प्रयास है। जब से वह स्कूल में आए हैं, तब से साक्षी की कोशिश यही रहती है कि घड़ी के नौ बजने से पहले ही वह स्कूल पहुंच जाए। उसका ये स्कूल चारों ओर पेड़ों से घिरा हुआ है और यहां एक बड़ा खुला सा मैदान भी है।
उसने गाँव कनेक्शन को बताया, “चार साल पहले प्रदीप सर हमारे क्लास टीचर बने थे। उसके बाद से मैं कभी लेट नहीं हुई और हर दिन स्कूल आती हूं।” उसने कहा कि उसका पसंदीदा विषय गणित है। वह आगे कहती है, “प्रदीप सर इसे इतने दिलचस्प तरीके से पढ़ाते हैं कि हम कभी बोर नहीं हो पाते हैं।”
कभी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर रहे प्रदीप कश्यप को हमेशा से बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने का विचार अपनी ओर खींचता रहा था। और जब उन्हें ये अवसर मिला, तो उन्होंने उसे हाथ से जाने नहीं दिया। उन्होंने 2018 में, राज्य की राजधानी लखनऊ से 250 किलोमीटर दूर, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के पाली ब्लॉक के कुशमा खुर्द गाँव के सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था।
कश्यप ने गाँव कनेक्शन को बताया, ” मैंने फुल टाइम जॉइन करने से पहले DIET (डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग) ट्रेनिंग ली थी। यह मेरी पहली पोस्टिंग थी और सब कुछ ठीक लग रहा था। लेकिन जब मैंने ज्वाइन किया तो मेरे सामने चुनौतियों का भंडार था।
इनमें से सबसे बड़ी समस्या कुशमा खुर्द में लोगों के बीच फैली शराब की लत थी। इसका बच्चों के जीवन और शिक्षा पर गहरा असर पड़ रहा था। गाँव की आबादी 1,142 है।
उन्होंने कहा, “101 नामांकित बच्चों में से सिर्फ 40 बच्चे ही स्कूल आते थे। सभी छात्र एक ही कक्षा में बैठते और उनके सीखने का स्तर न्यूनतम था।” उन्होंने बताया कि गाँव के लगभग 90 फीसदी पुरुषों को शराब की लत है। बच्चों का बेतरतीब कपड़ों और बिना कापी किताब के स्कूल आना आम बात थी। साफ-सफाई का हाल भी खराब था।
गाँव में आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले मल्लाह (पारंपरिक नाविक) समुदाय के लोगों की तादाद काफी ज्यादा है. गाँव के ज्यादातर पुरुष दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं। उनकी आय का कोई निश्चित जरिया नहीं है। वे जो कुछ भी कमाते हैं वह उसका बड़ा हिस्सा शराब खरीदने में खर्च कर देते हैं।
साक्षी के पिता भी शराब पीते हैं। साक्षी ने कहा, “वह मुझे पढ़ने नहीं देते और हमेशा कुछ न कुछ काम करने के लिए कहने लगते है। वह मुझे और मेरी मां दोनों को मारते-पीटते है।” उनके साथ पढ़ने वाली ममता निषाद और रितेश निषाद की भी हाल कुछ ऐसा ही है।
15 साल की ममता ने धीमी आवाज में कहा, “मेरे पिता मुझे और मेरी मां को मारते हैं। मैं फिर से मार खाने के डर से उनके सामने कुछ नहीं बोलती हूं।”
बच्चों को स्कूल में लाने का प्रयास
कश्यप को जल्द ही एहसास हो गया कि उन्हें एक बड़ी समस्या से निपटना है।
34 साल के कश्यप ने बताया, ” बच्चों पर बेहतर तरीके से नजर रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वो स्कूल से अनुपस्थित न रहे, मैंने एक साल के अंदर स्कूल से 200 मीटर दूर अपना घर बना लिया।”
कश्यप ये देखने के लिए अपनी बाइक से गाँव की गलियों से गुजरते हैं कि बच्चे आवारा सड़कों पर तो नहीं घूम रहे।
पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाली यशोदा निषाद ने याद करते हुए बताया कि उसने स्कूल छोड़ने का फैसला कर लिया था क्योंकि उसकी यूनिफार्म धुली और साफ नहीं होती थी।
उसने कहा, “सर मुझे ढूंढते हुए घर आ गए। मैंने छिपने की कोशिश की, लेकिन वह मेरे निकलने तक वहीं खड़े रहे और फिर मुझे अपने साथ स्कूल ले गए।”
उसने हंसते हुए बताया, “गाँव में एक तलैया (तालाब) है, जहां लड़के कंचे खेलने के लिए इकट्ठा होते हैं। सर उन सभी को पकड़ते हैं और उन्हें स्कूल ले जाते हैं।”
कश्यप का मानना है कि शिक्षा इन बच्चों के लिए जिल्लत भरी जिंदगी और शराब की लत से बचने का रास्ता है। उन्होंने कहा, “समस्या का समाधान तभी होगा जब बच्चे शिक्षित होंगे, उन्हें नौकरी मिलेगी और वे अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालेंगे।”
युवराज और अक्षय की मां चंदा देवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पहले बच्चे गोली या गुल्ली-डंडा खेलते हुए गांव में यहां से वहां घूमते-फिरते थे। लेकिन अब प्रदीप सर घर आ जाते हैं और उन्हें अपने साथ स्कूल ले जाते हैं। अगर वह गंदे है तो उन्हें पास के हैंडपंप पर नहलाते हैं। उसके बाद ही उन्हें क्लास रूम में बैठने की इजाजत मिलती हैं।” उनका बेटा युवराज तीसरी और अक्षय पहली क्लास में पढ़ता है।
प्रदीप के काम करने के ढंग से गाँव वाले खासे प्रभावित हैं। आज हालात कुछ अलग हैं। निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता भी अब उन्हें कुशमा खुर्द सरकारी स्कूल में भेजना चाहते हैं।
कश्यप ने कहा, ” फिलहाल गाँव के सिर्फ पांच बच्चे एक निजी स्कूल में पढ़ते हैं। बाकी सभी बच्चे सरकारी प्राइमरी स्कूल में आते हैं। स्कूल में नामांकन बढ़कर 245 हो गया है।”
गाँव की महिलाओं ने साथ दिया
गाँव में शराब की समस्या को दूर करने के लिए कश्यप लगातार गाँव की महिलाओं की काउंसलिंग करते रहे हैं।
उन्होंने कहा, “महीने में एक बार होने वाली पेरेंट्स-टीचर मीटिंग में मैं हर बच्चे की मां के साथ बातचीत करता हूं और उन्हें समझाता हूं कि उनके दुख से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका अपने बच्चों को शिक्षित करना है।”
उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि यह एक मुश्किल लड़ाई है। महिलाएं हर दिन जिंदा बने रहने के लिए लड़ रही हैं। लेकिन शराब की लत एक ऐसी चीज है जिसे रातों रात बदला नहीं जा सकता है।
शिवानी पांचवी क्लास तक कश्यप की एक छात्रा रही हैं। उसके बाद वह दूसरे स्कूल में चली गई। उसके पिता भी एक शराबी हैं, लेकिन किसी तरह वह पढ़ाई के साथ बनी रही। अपने नए स्कूल में उसका प्रदर्शन काफी अच्छा है।
उसकी मां सोना देवी बड़े गर्व के साथ बताती हैं, “वह क्लास की मॉनिटर बन गई है।”
उन्होंने कहा, “वह अक्सर इस बात का जिक्र करती है कि ‘प्रदीप सर’ ने उसे इतने अच्छे से पढ़ाया है कि वह आज क्लास में ज्यादातर बच्चों से काफी आगे है।”
कश्यप की मेंटरशिप में बच्चे बड़े सपने देखने की हिम्मत कर पा रहे हैं। 12 साल की इंद्रावती इसी स्कूल में पढ़ती है। वह भारतीय नौसेना में एक अधिकारी बनना चाहती है। इंद्रावती की मां संगीता देवी स्कूल में रसोइया हैं। उन्हें यह नौकरी कश्यप सर की बदौलत ही मिली है।
संगीता देवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे पति बहुत शराब पीता था और लीवर फेल होने से उसकी मौत हो गई। कश्यप सर ने मुझे मिड डे मील के लिए रसोइया के रूप में नौकरी पर रखा, ताकि मैं अपना गुज़ारा चला सकूं।” उनकी अपने बेहतर भविष्य की उम्मीदें अब बेटी पर टिकी हैं।