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“जो भी मैंने किया यह कुछ भी असाधारण नहीं है, हर एक शिक्षक को ऐसा करना चाहिए”- राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित सुभाष यादव

सुभाष यादव, मध्य प्रदेश के एक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक, जहां उन्होंने धार जिले के दूर-दराज के गाँवों में एक नहीं बल्कि दो ऐसे स्कूलों में बदलाव की बयार चलाई जहां कभी न के बराबर बच्चे थे आज वही स्कूल अभिभावकों और उनके बच्चों के पसंदीदा स्कूल बन गए हैं।
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सुभाष यादव शिक्षक हैं और पिछले 25 साल से पढ़ा रहे हैं। वर्तमान में वह मध्य प्रदेश के धार जिले के कागदीपुरा गाँव के स्कूल में पढ़ाते हैं।

सुभाष यादव को शिक्षण क्षेत्र में आने की प्रेरणा अपने शिक्षक पिता से मिली थी। उन्होंने ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ज़ब मैं बचपन में पिताजी के साथ घर से निकलता था तो देखता था ग्रामीण लोग पिता जी से मिलते और उनसे बाते करते, उनका बहुत मान करते।।” “ज़ब मैं इन सब गतिविधियों को देखता तो मैंने बचपन में ही सोच लिया था कि मैं बड़ा होकर शिक्षक बनूंगा, “उन्होंने आगे कहा।

वह छाप यादव के साथ बनी रही, और अपने पिता के असामयिक निधन के बावजूद, जब वे लगभग नौ वर्ष के थे, और अपनी लकवाग्रस्त माँ की देखभाल की ज़िम्मेदारियों के बावजूद, उन्होंने उस सपने को कभी नहीं छोड़ा। उनके एक बड़ा भाई भी थे।

यादव ने पढ़ाई जारी रखने के लिए एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम किया, जब तक कि उनके बड़े भाई को नौकरी नहीं मिली। जब वह बीए प्रथम वर्ष में थे, 1987 में उन्हें सीमा सुरक्षा बल में चुना गया। लेकिन पढ़ाने की ललक इतनी प्रबल थी कि उन्होंने वहां प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद पढ़ाई छोड़ दी। उन्होंने अपना बीए पूरा किया।

एक शिक्षक के रूप में उनका जीवन जुलाई 1990 में शुरू हुआ जब यादव मध्य प्रदेश के धार जिले के आली गाँव में सरकारी प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में शामिल हुए। यही नहीं 1993 में उन्होंने हिंदी में मास्टर्स किया।

यादव ने याद करते हुए कहा, “उस समय विद्यालय के हालात बहुत खराब थे।उस समय तक उस विद्यालय से कोई बच्चा पाँचवी की परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर सका था।रजिस्टर में केवल 65 बच्चों के नाम दर्ज़ थे जिनमें से 15 ही नियमित उपस्थित रहते थे।”

यादव के अनुसार, विद्यालय के हालात भी सही नहीं थे, पढ़ाई का कोई वातावरण नहीं था, जर्जर इमारत, सीलन भरी दीवारी और छत, उखड़ा हुआ फर्श ये सब देखकर मेरा सर चकरा गया। “मैंने अपने प्रध्यापक से बात कि पर उनका कहना था यहां ऐसा ही चलता है। इन्हीं सब कारणों से अविभावक बच्चों को स्कूल नहीं भेजते थे।विद्यालय की व्यवस्था सुधारने मुझे छोटा सा आंदोलन भी करना पड़ा, “यादव ने कहा।

लेकिन, धीरे-धीरे जिले में शिक्षा विभाग की मदद से बदलाव होने लगा।

“मैंने कक्षाओं में सीखने के कोनों को बनाया, हर एक में एक अलग विषय के लिए। उदाहरण के लिए, भूगोल के कोने में नक्शे और ग्लोब और ग्रह थे, जबकि विज्ञान के कोने में विज्ञान से संबंधित चित्र और वस्तुएं थीं, “उन्होंने समझाया। कक्षाओं के अभेद्य अँधेरे में विद्या का प्रकाश होने लगा, यादव ने मुस्कुराते हुए कहा।

धीरे-धीरे स्कूल में बदलाव की बात गाँव में फैल गई और माता-पिता अपने बच्चों को नियमित रूप से स्कूल भेजने लगे।

यादव ने कहा, “”विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति बढ़ती गई। आस पास के गाँव के बच्चे भी अब हमारे स्कूल में एडमिशन लेने लगे। विद्यालय में बच्चों की संख्या 65 से बढ़कर 350 हो गई। इस विद्यालय के 54 बच्चों का चयन मैंने जवाहर नवोदय विद्यालय में करवाया।”

2012 में, स्कूल में लगभग 13 साल बिताने के बाद, यादव को आली से लगभग 10 किलोमीटर दूर, धार जिले के आदिवासी बहुल कागदीपुरा गाँव के एक स्कूल में नियुक्त किया गया। और यहां भी आली जैसे ही हालात थे।

“20 मार्च 2012 को मेरा तबादला कागदीपुरा गाँव में कर दिया गया जो धार जिले का दुरस्त पटेलिया आदिवासियों का गाँव था। यहां विद्यालय के हालात आली जैसे ही थे। विद्यालय प्रांगण और आने जाने के रास्ते पर लोगों अतिक्रमण कर रखा था। विद्यालय प्रांगण में लोग अपने पशु बांधते और गोबर के उपले वहीं बना कर रख देते थे, ”यादव ने कहा।

धीरे-धीरे स्कूल में बदलाव की बात गाँव में फैल गई और माता-पिता अपने बच्चों को नियमित रूप से स्कूल भेजने लगे।

धीरे-धीरे स्कूल में बदलाव की बात गाँव में फैल गई और माता-पिता अपने बच्चों को नियमित रूप से स्कूल भेजने लगे।

उन्होंने कहा कि कागदीपुरा विद्यालय में एक ही कक्ष था जिसमें सभी कक्षाओं के 79 बच्चे एक साथ बैठते थे। यहां बच्चों के पालकों में पढ़ाई के प्रति कोई रुझान नहीं था। सबसे पहले मैंने विद्यालय भवन के विस्तार के लिए अपने वरिष्ठ अधिकारियों से प्रार्थना की जो सफल हुई।

उन्होंने आगे कहा इसके बाद अपने पूर्व आली गाँव के अनुभव के आधार पर कागदीपुरा में भी पालकों और विद्यार्थियों के बीच पढ़ाई की मानसिकता और वातावरण का माहौल बनाया और बच्चों के गुणवत्ता विकास के लिए उनके सर्वांगीण विकास के लिए जुट गया।

स्कूल के माहौल में बदलाव लाने में यादव को पांच साल लग गए।

“शुरुआत में कुछ ही बच्चे थे। और, मैं और छात्रों को लाने के लिए दृढ़ था। गाँव में वे बच्चे थे जो स्कूल जाने की उम्र के थे फिर भी स्कूल में शामिल नहीं हुए, फिर ऐसे बच्चे थे जो घर की बाधाओं के कारण पढ़ाई नहीं कर पाए थे, और फिर ऐसे बच्चे थे जो गाँव से बाहर कहीं और चले गए थे शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए, भले ही उनके अपने गाँव में यह स्कूल था, ”यादव ने कहा।

माता-पिता के साथ साझेदारी

इसे बदलने के लिए, यादव ने सबसे पहले बच्चों के माता-पिता से मिलने का अभियान शुरू किया। “हमने उनके घरों का दौरा किया, उनके माता-पिता से बात की और उनका विश्वास जीता। हमने उन्हें अपने स्कूल में आने और यह देखने के लिए आमंत्रित किया कि हम वहां बच्चों को कैसे पढ़ाते हैं और हम अपने छात्रों को क्या सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं। हमने उनसे कहा कि उसके बाद वे तय कर सकते हैं कि उन्हें अपने बच्चों को हमारे स्कूल में दाखिला देना चाहिए या नहीं।’

स्कूल में बगीचा भी है जहां बच्चे खेल सकते हैं और स्क्रीन के साथ स्मार्ट कक्षाएं जहां शिक्षण और सीखना अधिक आकर्षक हो गया है। “आखिरी घंटी बजने के बाद भी, बच्चे स्कूल के चारों ओर लटके रहते हैं, उन्हें अब यहाँ बहुत अच्छा लगता है, प्रधानाध्यापक मुस्कुराए।

उन्होंने कहा कि अब 350 से अधिक बच्चे और आठ कक्षाएं हैं, जो 2012 में एक कक्षा के अंदर 79 छात्रों से बहुत दूर हैं।

कागदीपुरा में महावीर ट्रस्ट के मैनेजर आशुतोष जैन की दोनों बेटियां वन्या और तान्या भी सुभाष जी के कागदीपुरा माध्यमिक शाला में पढ़ती हैं। आशुतोष हमसे कहते हैं,”मैं अपने बच्चों को इंदौर के किसी भी महंगे स्कूल में पढ़ा सकता था पर मै यहाँ अपने बच्चों को एक सरकारी स्कूल में पढ़ा रहा हूँ वो इसलिए कि सुभाष यादव जी के पढ़ाने का तरीका बहुत अच्छा है।मेरे ही नहीं दूसरे गाँवो से भी लोग भी अपने बच्चों को यहाँ पढ़ने भेजते हैं। बच्चे ही नहीं दूसरे स्कूलों के टीचर्स भी सुभाष जी से पढ़ने आते हैं।”

होती है इनके काम सराहना

स्कूल का कायापलट गाँव में चर्चा का विषय बन गया। “मैं अपनी दोनों बेटियों को इंदौर के एक महंगे स्कूल में भेज सकते थे, लेकिन सुभाष यादव द्वारा प्रदान की गई उत्कृष्ट शिक्षा के कारण मैंने उन्हें इस स्कूल में प्रवेश देने का विकल्प चुना।”

कागदीपुरा में एक ट्रस्ट के प्रबंधक आशुतोष जैन गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “मेरे ही नहीं दूसरे गाँवो से भी लोग भी अपने बच्चों को यहाँ पढ़ने भेजते हैं। बच्चे ही नहीं दूसरे स्कूलों के टीचर्स भी सुभाष जी पढ़ने आते हैं।”

स्कूल का कायापलट गाँव में चर्चा का विषय बन गया।

स्कूल का कायापलट गाँव में चर्चा का विषय बन गया।

आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली सिंगल मदर राधाबाई डाबर ने कहा कि उनके तीन बच्चे सुभाष जी के स्कूल में पढ़ते हैं।

“मबड़ी लड़की भूमिका अब आठवीं में कन्या शिक्षा परिसर तिरला में पढ़ती है, पहले तो उसे किताब पढ़ने भी नहीं आता था जब दूसरे शिक्षक उसे पढ़ाते थे पर जब से सुभाष जी ने उसे पढ़ाया तो किताब के साथ साथ बड़े बड़े हिसाब किताब भी झट से करने लगी ,”दिहाड़ी मजदूर ने गांव कनेक्शन को बताया।

5 सितंबर, 2017 को सुभाष यादव को शिक्षा में उत्कृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

आखिर में सुभाष यादव ने बस इतना ही कहा, “मैंने यहां कुछ भी असाधारण नहीं किया है। प्रत्येक शिक्षक को ऐसा करने में सक्षम होना चाहिए।”

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