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मिलिट्री वाले गुरु जी; पहले देश की सेवा की, फिर पूरी जिंदगी गाँव के बच्चों को नि:शुल्क ट्यूशन पढ़ाते रहे

टीचर्स डायरी में कीर्ति भूषण त्रिवेदी अपने पिता का किस्सा साझा कर रहे हैं, जिनके पिता विवेक भूषण त्रिवेदी का जन्म 1947 में सीतापुर जिले के ब्रम्हावली नामक गाँव में हुआ और साल 2017 में इनकी मृत्यु हो गई। विवेक भूषण रिटायर होने के बाद घर में ही गरीब बच्चों को बुलाकर हर रोज निःशुल्क ट्यूशन पढ़ाने का काम जीवन के अंतिम समय तक करते रहे।
Teacher's Diary

मैं उस दिन बहुत परेशान था। मेरी दादी मेरे पास आयीं और बोली बेटा मैं तुम्हें एक किस्सा सुनाती हूं। वह अतीत की यादों से खोजकर वह दिलचस्प किस्सा सुनाने लगीं। मैं उनकी बातें बड़ी ध्यान से सुन रहा था। घर में कोहराम मचा हुआ था। ना मालूम कहां गया क्या हुआ कोई मेरे बेटे को वापस ला दे एक माँ हमेशा रोती रहती। दादी ने कहा। किस्सा सुनाते हुए दादी की आखों में आंसू भर आए थे। कमरे के अंदर गर्मी की दोपहर के शांत वातावरण में दादी की आवाज फिर गूंजी, घर में जमींदारी थी और एकलौता वारिस गायब था। धीरे धीरे कई महीने बीत गए।

घर वाले तलाश करके परेशान हो गए। लेकिन कुछ पता नहीं लगा। बेटे के गम में मां बीमार पड़ गई। लगभग छह महीने बाद एक चिट्ठी आई। यह जबलपुर मिलेट्री सेंटर की थी। गायब हुआ जमींदार का बेटा फौज में ट्रेनिंग कर रहा था। जब वह घर ट्रेनिंग करके आए तो घर के नौकर चाकर पूछने लगे आपके कौन कमी है जो फौज में चले गए तो वह उत्तर देते मैं फौज में पैसे के लिए नहीं देश सेवा के लिए भर्ती हुआ हूँ। उन्होने 1971 में पाकिस्तान से युद्ध किया। उन्हे सेना से कई मेडल भी मिले। मेरी दादी मेरे पिताजी के किस्से सुनाते हुए कहने लगीं कि तुम इनकी बात का बुरा मत माना करो।

मेरे पिताजी जिनसे मैं बहुत डरता था आज मुझे वह बहुत याद आते हैं। मेरे पिता जी का नाम विवेक भूषण त्रिवेदी है वह अब इस दुनिया में नहीं हैं। सख्त मिजाज वाले समय के पाबंद पिता जी शुरू से ही मेरे फौजी बनने का सपना देखने लगे थे।

घर के नौकर जब तक उठते तब तक पिताजी सुबह उठाकर मुझसे सारा काम कराते। पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था करवाते। इस दौरान उन्होंने किसी नौकर को सेवा से नहीं हटाया। वह चाहते थे कि मेरा शरीर मजबूत हो और मैं जरूरत पड़ने पर देश के लिए लड़ सकूं। मैं सुबह देर तक नहीं सो सकता था। क्योकि मुझे आर्मी की भर्ती के लिए तैयार किया जा रहा था। वह रिटायर होने के बाद घर पर बच्चों को मुफ्त ट्यूशन पढ़ाने लगे।

1997 में मैंने अपने पिता जी से किसानी करके देश सेवा करने की बात कही। वह इस कदर नाराज हुए कि मुझे घर ही छोड़ देना पड़ा। मैं एक साल के लिए हरदोई जिले में रहने पर मजबूर हो गया। वजह थी कि मैं किसान बनना चाहता था और पिता जी की बात नहीं मानी। मैंने वहाँ गन्ना विभाग में नौकरी कर ली और किसानों को मदद करने के लिए हमेशा काम किया। एक दो साल बीते मुझे लगा कि पिताजी का गुस्सा शांत हो गया होगा। घर आया तो पिता जी बच्चों को निःशुल्क ट्यूशन पढ़ाने का वहीं पुराना काम करते मिले। वह अभी तक नाराज लग रहे थे।

दोपहर का समय था। कड़क आवाज सुनाई दी रेडियो कहां है। मैं चुपचाप उठा और पिताजी को रेडियो पकड़ा दिया। यह पिताजी के समाचार सुनने का टाइम था। रेडियो ऑन हुआ तो पता चला कारगिल युद्ध शुरू हो चुका है। इसके बाद पिता जी ने पूरे घर को सर पर उठा लिया। वह चीखने चिल्लाने लगे। पड़ोस में रहने वाले लोग समझाने की कोशिश करने लगे कि अकेला बेटा है और आप बेटे को इस तरह डांट रहे हैं। इस पर पिताजी और भड़क गए।

वह कहने लगे मेरे बाप के चार बेटियां और मैं अकेला बेटा हूँ। मैं भी फौज में गया। मुझे इससे बड़ा दुख नहीं हो सकता कि मेरा बेटा घर में पड़ा है। बताओ युद्ध चल रहा है और मैं अपने बेटे को भेजना चाह रहा था और यह गया नहीं। लड़ते लड़ते शहीद हो जाता तो मेरे लिए और गर्व की बात होती। माँ भी चाहती थी कि मैं फौज में जाऊँ उस दिन पिताजी की बात सुनकर उनकी आँखों में भी गर्व के आँसू आ गए। माँ ने मेरा कोई सपोर्ट नहीं की। मुझे लगा कि मैं गलत था मुझे फौज में जाना चाहिए था। मैं अगले दिन पिताजी के पास गया उन्होने मुझे देखा और मुंह फेर लिया।

मैंने उनसे कहा मुझे यह नहीं पता था कि देश को कारगिल जैसे युद्ध का सामना करना पड़ेगा। नहीं तो मैं फौज में जरुर भर्ती होता। पिता जी भावुक हो उठे। वह कहने लगे मुझे लड़ने का एक मौका और मिल जाता मैं दुश्मनों को ऐसा सबक सिखाता कि उनका देश आँख उठाने ही कभी हिम्मत नहीं करता। वह शेर की तरह दहाड़ उठे। इसके बाद पिताजी रोज गरीब बच्चों का पता लगाते और उन्हे बुलाकर ट्यूशन पढ़ाते।

जहां वह ट्यूशन पढ़ाते थे वहां सुंदर फुलवारी और एक अमरूद का पेड़ हुआ करता था। अमरूद के पेड़ में बड़े सुंदर फल आ चुके थे। वह किसी को फल तोड़ने को मना नहीं करते थे लेकिन उनकी अनुशासन प्रियता की वजह से पढ़ने आने वाले बच्चे उनके कहने के बाद भी कभी फल तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।

एक दिन की बात पिता जी ट्यूशन पढ़ाते हुए बोले मैं थोड़ी देर के बाद आऊँगा तब तक तुम लोग जो काम दिया है वह करो। वह वहाँ से हट गए। इतने में एक बच्चे को फूल तोड़ने की सूझी। उसने फूल तोड़ लिए। दूसरा बच्चा उठा उसने भी कुछ फूल तोड़ लिए फिर तीसरे बच्चे ने अमरूद तोड़ने शुरू किए। देखते ही देखते सभी बच्चे पेड़ पौधों पर टूट पड़े। पूरी वाटिका हनुमानजी की तरह तहस नहस कर दी। अमरूद का पेड़ ऐसा लग रहा था कि जैसे पतझड़ हुआ हो।

पूरे पेड़ पर फल तो छोड़ ही दीजिए पत्ते तक गायब थे। पिताजी आए तो उन्हे पहले हँसी आई लेकिन उन्होने हँसी रोक ली। उन्होंने सोचा कि अगर हँस दिया तो यह बच्चे जीवन में अनुशासन नहीं सीखेंगे। उन्हे कोई दंड देना चाहिए। वह तेज स्वर में बोले सब लोग उठो और भाग जाओ। फिर कभी पढ़ने मत आना। बच्चे परेशान हो उठे लेकिन उन्होने बच्चों की ओर बिना देखे उस दिन नहीं पढ़ाया। कुछ देर बाद बच्चे उठकर घर चले गए।

आधे बच्चे डरे थे कि उन्हे यहां भी मार पड़ेगी और घर भी शिकायत जाएगी। लेकिन पिताजी ने ना ही बच्चों को पीटा और ना ही उनकी उनके घर शिकायत की। बच्चों के घर जाने के बाद वह खूब हँसे लेकिन बच्चों के सामने वह बहुत गंभीर थे। अगले दिन आधे बच्चे डरे सहमे आए। वह बोले हमें पढ़ा दो। पिताजी ने कहा ठीक है बैठो। और बाकी लोग क्यों नहीं आए। बच्चों ने जवाब दिया पता नहीं गुरु जी।

उन्होंने दूसरे बच्चे से पूछा जो तुम्हारे पड़ोस का है वो कहां है बच्चे ने पिताजी की ओर देखा और जवाब दिया वह कह रहा था कि घर के लोग नाराज हुए और कहा कि तुम पढ़ने लायक हो ही नहीं। उन्होंने उसकी बात सुनी और कहा कि तुम लोग बैठो मैं तुम्हारे बाकी साथियों को बुलाकर लाता हूं। और हां अबकी जब तक मैं ना आ जाऊं तब तक किसी के अमरूद के पेड़ मत खोजने लगना। सभी बच्चे जोर से हंसने लगे।

वह रोज की भाँति फिर से बच्चों को मुफ्त ट्यूशन पढ़ाने लगे। सन 2017 में मिलेट्री वाले टीचर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह लगभग 72 या 73 साल के थे। मुझे उनका कड़क स्वभाव, बच्चों को घर से बुलाकर निशुल्क ट्यूशन पढ़ाना और देश के प्रति मर मिटने की भावना आज भी प्रेरित करती है।

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