2 जुलाई 2009 को जब मैंने ज्वाइन किया तब जैसे आज स्कूल है, वैसे बिल्कुल नहीं था। बच्चे स्कूल पढ़ाई के लिए कम मिड डे मील के लिए स्कूल आ रहे थे। वो भी हर दिन नहीं आते थे। इसके बाद मैंने फैसला किया कि प्राइवेट और सरकारी स्कूल का जो गैप है उसे भरुँगी। सबसे पहले बच्चों के माता पिता को जागरूक करना होगा। इसके लिए बच्चों की माताओं को पहले एजुकेट करना शुरू किया और इसका असर भी दिखना शुरू हो गया। गाँव की महिलाओं को शिक्षित कर एक नयी दिशा देने की कोशिश की, जिससे महिलाएँ अपना नाम तो खुद लिख सकती हैं।
इसके साथ ही मैंने हेल्थ क्लब की शुरुआत की, जिसमें महिलाओं की हेल्थ चेकअप जैसे मेन्सुरेशन अवेयरनेस और फुल बॉडी चेकअप शामिल था। साथ ही लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जिस भी लड़की का सबसे ज़्यादा नंबर आता है उसे साइकिल गिफ्ट किया जाता है। लड़कियों के लिए कराटे ट्रेनिंग भी शुरू की है, जिससे वो अपनी रक्षा खुद से कर सकें।
किसी भी सरकारी स्कूल का इन्फ्रास्ट्रक्चर ठीक होना बहुत ज़रूरी है, जिससे बच्चे और उनके माता पिता दोनों ही आकर्षित हो सके। जब मैंने अपने काम की शुरुआत की तब बच्चे नीचे चटाई पर बैठते थे। मैंने बच्चों को कम्युनिटी से जोड़ना शुरू किया और उनकी मदद से हमने क्लास रुम, बाथरुम, फर्नीचर, काफी कुछ ठीक कर लिया।
मेरे क्लास के बच्चें अभी कक्षा एक मे पढ़ते हैं। उन्हें चीजे जल्दी समझ नहीं आती हैं, इसलिए उन्हें क्राफ्ट कला के ज़रिए पढ़ाती हूँ, जिससे वे जल्दी समझ जाते है और क्रिएटिव ढंग से बच्चे पढ़ना भी चाहते हैं। बच्चों को पढ़ाने मे बच्चे खुद मेरी मदद कर देते हैं। क्लास के कमजोर बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ पढ़ाती हूँ, जिससे बच्चा खुद बिना किसी दबाव मे पढ़े और समझे और दूसरे बच्चे की लीडरशिप क्वालिटी अच्छी हो। ऐसी क्लास मे बच्चे पढ़ाई करते हैं।
जैसा कि छवि अग्रवाल ने गाँव कनेक्शन की इंटर्न अंबिका त्रिपाठी से बताया
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