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टीचर्स डायरी: बाढ़ ग्रस्त इलाके में नयी तरकीब से स्कूल आने लगे घर बैठे 162 बच्चे

पूरण लाल चौधरी उत्तर प्रदेश के बहराइच के प्राथमिक विद्यालय, बरुआ बेहड़ में अध्यापक हैं। टीचर्स डायरी में आज उनका अनुभव उन सभी शिक्षकों के लिए मिसाल है, जिनका मकसद बच्चों को हर हालात में स्कूल से जोड़ना है।
Teacher'sDiary

टीचर बनने का शौक मुझे शुरू से ही रहा। बरेली के जैन एकेडमी स्कूल में साल 2001 से 2003 तक तक अंग्रेजी पढ़ाया। इसके बाद गौरी शंकर इंटर कॉलेज, गुलरिया में 2004 से 2012 तक बतौर सहायक अध्यापक रहा। फिर मैंने अपने गाँव में ही 2013 में प्राथमिक स्कूल खोला जिसका नाम रखा ज्ञानदेव कान्वेंट स्कूल । यहां खासतौर पर उन बच्चों को हमने स्कूल से जोड़ा जिनके अभिभावक पैसे की आभाव में अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते थे ।

इस बीच साल 2015 में मेरा चयन बहराइच के प्राथमिक विद्यालय बरुआ, बेहड़ में हो गया। ये स्कूल घाघरा नदी के कछार में पड़ता है। गाँव के चारों तरफ नदी है। जब नदी सूखी रहती है तो लोग पैदल आते-जाते हैं, लेकिन बाढ़ में नाव से आना-जाना होता है।

जब में यहां पहुंचा तो लगभग 170 बच्चों का दाखिला था, मगर हर दिन सिर्फ 12 बच्चे ही स्कूल आते थे। मेरे साथ एक और टीचर की नियुक्ति हुई थी। मेरे लिए सबसे बड़ा प्रश्न था के कैसे बच्चों की संख्या को बढ़ाया जाए।

ये गाँव शिक्षा के मामले में बहुत पीछे था। हमने उन 12 बच्चों के साथ पढ़ानाशुरू किया । कुछ दिन बाद फैसला किया कि अब हमें गाँव में घूम कर जन-समुदाय से बात करना चाहिए । तब मुझसे उन्होंने ये सवाल किया कि आप यहां रुक कर पढ़ा पाओगे, क्योंकि यहां जो भी टीचर आते हैं, जल्द से जल्द अपना ट्रांसफर कराके चले जाते हैं।

मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि मैं यहां रुकूंगा भी और पढ़ाऊंगा भी। सबसे पहले तो मैंने यहां से 7-8 किमी की दूरी पर एक कमरा किराए पर लिया और रोज़ जल्दी गाँव आकर इन बच्चों को स्कूल ले जाने के लिए आता।

फिर कई गतिविधियां कराई, खेल खिलाए तो इन बच्चों का मन लगने लगा। जो बच्चे रोज आते उनकी दो दो की टीम बनाई और नाम रखा सजग प्रहरी दल। फिर इन टीमों को बता दिया कि जहां भी आपको बच्चे दिखे तो बताना है कि सर आपको कौन-कौन सी गतिविधयाँ कराते हैं और ये भी कहना कि टॉफियाँ भी देते हैं।

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ऐसे ही गार्जियन की टीम बनाई तो रिजल्ट ये निकला कि सिर्फ एक महीने के बाद से 170 में से 120 बच्चे रोज़ आने लगे। अब गार्जियन भी हम पर भरोसा करने लगे।

अगले सेशन में 220 बच्चों तक का दाखिला हुआ और लगभग 200 बच्चे रोजाना आते। इनको जैसे मैं कोई पाठ पढ़ाता तो मैं और बच्चे दोनों उस पर अभिनय करते। जैसे कई कविता फिल्मी गाने से ज़रूर मेल खाती है तो उस गाने की धुन को डाउनलोड करता और उस धुन पर कविता को गाने को कहता।

एक कविता है

पर्वत कहता शीश उठाकर तुम भी ऊँचे बन जाओ,

सागर कहता है लहराकर तुम भी मन में गहराई लाओ।

बॉलीवुड का एक गाना है, सागर जैसी आँखों वाली, ये गाने की धुन पर गाने को कहता।

केंद्र सरकार की एक योजना है। राष्ट्रीय आय एवं छात्रवृत्ति परीक्षा जिसमें एक वर्ष में 3.5 लाख से कम कमाने वाले परिवार के बच्चों को 48 हज़ार का स्कॉलरशिप दिया जाता है । बहराइच जिले में सिर्फ 15-20 बच्चों को ये स्कॉलरशिप मिलती थी , तो मैंने इसके प्रति जागरूकता फैलाई। इसके चलते मुझे बेसिक शिक्षा अधिकारी, बहराइच ने मुझे नोडल बना दिया।

मैंने फिर गूगल मीट या व्हाट्सएप के जरिए बच्चों को छात्रवृति के परीक्षा के लिए तैयार कराया, जिसका रिजल्ट ये निकला कि वर्ष 2022 में 1500 फॉर्म जमा किए गए और 165 बच्चों को इस योजना का लाभ हुआ।

इस सफलता की बाद मुझे बेसिक शिक्षा अधिकारी, बहराइच ने सम्मानित भी किया। साल 2021 में मुझे यूपी सरकार ने राज्य अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित किया। मेरा पढ़ाया एक छात्र आसिम खान जो अफ्रीका में 3 साल तक लेक्चरर रहा, तो वहीं तफसीर खान जो अभी जामिया मिलिया इस्लामिया में लेक्चरर है। ऐसे ही कई लड़कियों का वर्ष 2019 वाली टीचर भर्ती में चयन हुआ है जो मेरी छात्रा रही हैं।

मैं एक बात कहना चाहुँगा कि अभिभावक को सजग होना चाहिए। बिना किसी बहाने-बाजी के उन्हें अपने बच्चों को रोज़ स्कूल भेजना चाहिए। टीचर को चाहिए कि जब कक्षा में जाए तो वे भूल जाए कि किस जाति , धर्म, समुदाय से है या किस राजनीतिक पार्टी के प्रति उनका झुकाव है। तब बच्चों के साथ आप न्याय कर पाएंगे। इन बच्चों को ये समझे कि ये बच्चे हमारे परिवार के हैं और इन बच्चों से घुल-मिलकर रहें ताकि बच्चे सहज महसूस कर सके । उनको महसूस होना चाहिए कि वे अपने परिवार के बीच हैं।

जैसा कि पूरन लाल चौधरी ने गाँव कनेक्शन के इंटर्न दानिश इकबाल से बताया

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