आज से 9 साल पहले जब मैं पहली बार स्कूल आया था तब स्कूल में 14 बच्चों का एडमिशन था, लेकिन आते सिर्फ दो बच्चे ही थे। दो शिक्षा मित्रों के सहारे स्कूल चल रहा था।
मुझे लगा कि सबसे पहले स्कूल का कायाकल्प करना होगा, इसलिए मैंने कंप्यूटर से कुछ कुछ क्रीएट करके स्कूल की दीवारों पर लगाने के लिए डिजाइन बनाया और पूरे स्कूल के दीवारों पर लगवाया। इससे स्कूल के रंग रूप में थोड़ा बदलाव आया। ये छोटा गाँव है, इसलिए यहाँ बच्चे भी कम हैं, लेकिन मुश्किल ये थी कि जितने बच्चे थे, वो भी हर दिन स्कूल नहीं आते थे।
मैं अभिभावकों को बुलाकर मीटिंग करने लगा, धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी और अब हमारे स्कूल में 46 बच्चों का नामांकन है। यही नहीं गाँव में 6 से 11 साल के जितने बच्चे हैं, सभी इसी स्कूल में पढ़ने आते हैं।
हमारे स्कूल में प्रीति नाम की एक बच्ची थी, पता नहीं क्यों वो स्कूल नहीं आना चाहती थी। उसके माता-पिता सुबह ही काम के लिए निकल जाते थे वो दिन भर इधर-उधर खेलती रहती, लेकिन स्कूल आने को तैयार न थी। मुझे लगा कि इस बच्ची को जो पसंद है, वही कराते हैं, इसलिए स्कूल के सभी बच्चों से कहा जितना खेलना है, खेल सकते हैं। बच्चों को खेलते देख धीरे-धीरे प्रीति भी स्कूल आने लगी।
अब तो प्रीति पढ़ाई में भी अच्छा करने लगी थी, लेकिन अचानक एक दिन उसका ट्रैक्टर से एक्सीडेंट हो गया। उसका पैर फ्रैक्चर हो गया, अब ये मुश्किल थी कि अब वो स्कूल कैसे आए, इसलिए मैं स्कूल के बाद उसके घर जाकर पढ़ाता था, साथ ही दूसरे बच्चों को भी उसके पास लेकर जाता, जिससे उसे स्कूल की कमी न महसूस न हो।
प्रीति को ठीक होने में दो महीने लगे, अभी वो दूसरी क्लास में है, लेकिन पैर में अभी भी थोड़ी सी समस्या है, इसलिए उसका नाम स्पेशल चाइल्ड में ऐड करा दिया। अभी हमारा स्कूल निपुण बन चुका है, अब तो हर एक बच्चा निपुण बन रहा है।
हमारा स्कूल पूरी तरह से हरा-भरा है, बहुत सारे पेड़ पौधे लगे हैं, यहाँ बहुत सारी चिड़िया आती हैं। मेरे पास एक प्लाई बोर्ड बहुत दिनों से रखा था तो मैंने सोचा क्यों न कुछ नया किया जाए। उसके बाद मैं उसे स्कूल लेकर आया और बच्चों के साथ मिलकर चिड़िया का घोंसला बनाया है।
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