बात साल 1018 की है, अमीना खातून विशुनपुर के न्यू जय हिंद इंटर कॉलेज में दसवीं की छात्रा थीं। इनके पिता गाँव में ही किराने की दुकान चलाते हैं। अमीना पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी। अमीना पढ़ने में अच्छी थी जिससे घर वाले भी उसकी पढ़ाई पर पैसा खर्च कर रहे थे।
2018 में जब बोर्ड परीक्षा होनी थी उसके एक महीना पहले अमीना की तबियत काफी खराब हो गई, जिससे वह बोर्ड परीक्षा का पहला पेपर (हिंदी) नहीं दे सकी।
जब यह खबर मुझे हुई तो मैंने जानने की कोशिश कि आखिर अमीना ने परीक्षा का पहला पेपर क्यों नहीं दिया। पता करने पर जानकारी हुई कि अमीना काफी बीमार है जिससे वह पेपर नहीं दे रही हैं।
मैं तुरंत उनके गाँव बसारा पहुंचा तो देखा कि अमीना बैठ नहीं पा रहीं हैं, जिसकी वजह वो परीक्षा नहीं दे पायीं। जब उससे पूछा गया कि बाकी के पेपर दोगी या नहीं तो उसने बताया कि हम बैठ नहीं पा रहे हैं तो पेपर कैसे देंगे। इसके अलावा लिख भी नहीं पा रही हूं। अमीना पूरी तरह से हिम्मत हार चुकी थी।
अमीना के पिता से जब बात हुई तो वह काफी चिंचित दिखे कहा कि हमारी लड़की का साल खराब हो जाएगा। फिर अमीना को समझाया कि अभी कुछ बिगड़ा नही है हिंदी विषय का पेपर छूटा है तो इसकी कम्पार्टमेंट की परीक्षा दोबारा दी जा सकती है। लेकिन वो बाकी के पेपर देने को तैयार नहीं थी। लगभग पांच घण्टे समझाने के बाद बाकी बचे पेपर देने को अमीना तैयार हो गई।
फिर बाकी बचे सभी पेपर अमीना ने दिए। हिंदी विषय की कम्पार्टमेंट की परीक्षा दी। जब रिजल्ट आया तो उसमें अमीना ने 87 प्रतिशत अंक प्राप्त किये। रिजल्ट आने के बाद अमीना व उनके पिता मुझसे मिलने मेरे घर आए।
उन्होंने बहुत आभार व्यक्त किया। अमीना के पिता ने कहा कि हमने को आशा ही छोड़ दी थी। हमें लगा था कि अमीना का साल खराब हो जाएगा लेकिन आपके समझाने के बाद अमीना ने पेपर दिया और अच्छे अंकों से पास किया।
आज अमीना बीएससी के अंतिम वर्ष में हैं। इस दौरान उसने कम्प्यूटर से डिप्लोमा भी कर लिया है। अमीना आगे डॉक्टर बनना चाहती हैं।
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