स्कूल में अक्सर हर तरह के बच्चे पढ़ने आते हैं, ऐसे ही मेरे स्कूल में कुछ स्पेशल चाइल्ड हैं जिनका नाम ज्योति, अपूर्वा, हिमांशी है। इन बच्चियों में से नौ साल की ज्योति देख भी नहीं सकती, आठ साल की हिमांशी मानसिक रूप से कमज़ोर और चल भी नहीं पाती है और 9 साल की अपूर्वा दूसरी कक्षा में पढ़ती हैं शारीरिक रूप से अक्षम हैं।
ऐसे बच्चों को देखकर लोगों को यही लगता है कि ये बच्चे क्या करते होंगे, लेकिन ये सभी बच्चे पढ़ने में बहुत अच्छे होते हैं, जल्दी समझते हैं बस हम पर निर्भर करता है कि हम इन्हें कैसे पढ़ाते हैं। इन बच्चों से थोड़ा घर जैसा माहौल बनाकर रखना होता है।
इन बच्चों के साथ मन से एक बार जुड़ जाना ही काफी है, उसके बाद ये बच्चे ही सारी चीजें सम्भाल लेते हैं जो बच्ची देख नहीं सकती है, उसे पढ़ाने के लिए चीजों के बारे में समझाने के लिए उसके साथ आसानी से बात करना होता हैं, और बच्चे आसानी से समझ जाते हैं। इन बच्चों से जितना प्यार से बात करते हैं बच्चे जुड़कर रहते हैं।
इसी तरह स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के साथ उनके लिए छोटी-छोटी प्रैक्टिस की जाती है, जैसे कि एक बार साल 2018 में मुझे अपनी टीचर मीटिंग के लिए जाना था और स्कूल में टीचर की संख्या बहुत कम थी। तब मेरे पढ़ाए हुए 11 साल के मोहित और 12 साल के शीतला बख्श स्कूल आए और उन्होंने मेरे साथ मिलकर क्लास और स्कूल दोनों को संभाला। वो पल मेरे लिए यादगार बन गया है।
स्कूल में जितनी भी एक्टिविटी हो सकती हैं मैं वो सारी चीजें करवाता हूँ, क्लास में बच्चों को टॉपिक समझा कर बच्चों को उस पर अभिनय करने को बोलता हूँ और बच्चे करते भी हैं, जिससे बच्चों को पाठ समझ में आ जाए।
बच्चों ने स्कूल में तरह- तरह का गार्डन बना रखा है, जिससे स्कूल हरा भरा दिखे। यही नहीं बच्चों की पढ़ाई पूरी हो जाती है तब मैं सबके लिए गमले लेकर आता हूँ और बच्चे उनमें पौधे लगाते हैं। उन गमलों पर मैं बच्चों का नाम लिख देता हूँ, जिससे हमेशा स्कूल से उनका जुड़ाव बना रहे। मैं बच्चों को यूनिक बनाना चाहता हूँ जिससे उनकी प्रतिभाएँ दिखें।
जैसा कि विवेक मिश्रा ने गाँव कनेक्शन की इंटर्न अंबिका त्रिपाठी से बताया
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