मैं आज आपके साथ एक अनुभव साझा करना चाहता हूं, जिसे मैं शायद जिंदगी भर नहीं भुला सकूंगा। मुझे किसी वर्कशॉप के लिए लखनऊ जाना था, मैं अलीगढ़ रेलवे स्टेशन पर बैठा था। रात का वक्त था तभी एक युवा अच्छे शूट-बूट में मेरे पास आता है।
वो युवा मेरे पैर छूता और बोलता है, “आप संजीव सर हैं न?, आप शायद मुझे पहचान नहीं रहे होंगे, आज से 15 साल पहले आप ने मुझे पढ़ाया था।”
मुझे बहुत अच्छा लगा कि बच्चों को मैं आज भी याद हूं, मैंने भी उससे पूछा कि क्या करते हो तो उसने बताया कि पीसीएस जे क्वालीफाई कर चुका हूं और अब झारखंड मजिस्ट्रेट हूं।
यकीन मानिए उस समय मेरी आंखों में आंसू थे, मैंने खुद को धन्य माना कि मैंने जो सपना देखा था वो सच हो गया।
किसी भी शिक्षक के लिए ये जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण होता है, याद रखिए माता-पिता के बाद शिक्षक ही होता है जो चाहता है कि उसका बच्चा आगे बढ़े, जीवन की ऊंचाइयों को छुए। आपने अपने बच्चे को जिसके हाथ सौंपा है, आपने अपने बच्चे का जीवन बनाने के लिए सौंपा है। एक शिक्षक ही सबसे बनाता है।
लेकिन एक शिक्षक का शानदार सफर तब शुरू होता है, जब वो खुद को शिक्षक माने।
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