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कश्मीर में वकील से बनी किसान, दूसरों को खेती के लिए कर रहीं हैं प्रेरित

कश्मीर के शोपियां जिले की सईदा शाज़िया लतीफ ने वकालत की प्रैक्टिस छोड़ सब्जियों की खेती, मुर्गी पालन और मछली पालन शुरू कर दिया। पिछले साल उनका उत्पादन संयुक्त अरब अमीरात तक पहुँचा था।
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श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर। सैयद शाज़िया लतीफ़ को नहीं पता था कि कोविड-19 महामारी से उनकी ज़िंदगी बदल जाएगी। दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के अपने गाँव मोलू चित्रगाम में उन्होंने अपने आस-पास जो देखा उसी में अपना करियर बनाने को सोचा। बस फिर क्या था 31 साल की वकील अब किसान बन गईं।

“जब महामारी के दौरान पूरी दुनिया बंद थी, तब मुझे एहसास हुआ कि इसका मेरे परिवार पर कोई असर नहीं पड़ा। हमारे पास भरपूर खाना था क्योंकि मेरे पति का परिवार खेती करता है। पोल्ट्री, डेयरी, सब्जियाँ, मछली, फल सभी घरेलू उत्पाद थे और हमें कोई कमी नहीं हुई, ”लतीफ़ ने गाँव कनेक्शन को बताया।

तथ्य यह है कि आत्मनिर्भर होने का मतलब दुनिया में आने वाली महामारी जैसे किसी भी मुश्किल से सुरक्षित रहना है, युवा वकील को सोचने पर मजबूर कर दिया।

आज समझ बढ़ाकर और ट्रेनिंग लेकर वकील लतीफ अपने 4.37 एकड़ खेत (1 एकड़ = 0.4 हेक्टेयर) में पारंपरिक और विदेशी दोनों तरह की सब्जियों की खेती करती हैं और 10 लोगों को भी रोजगार दिया है।

उनका खेत उनके गाँव से छह किलोमीटर दूर निकटवर्ती पुलवामा जिले के गडबुघ नेपोरा गाँव में स्थित है। और इससे सालाना मुनाफ़ा लगभग 25 लाख रुपये (2.5 मिलियन रुपये) है, उन्होंने कहा।

उनका खेत आज दूसरे किसानों के लिए सीखने की जगह है जो नई और इंटीग्रेटेड फार्मिंग के तरीकों के बारे में सीखने के लिए वहाँ आते हैं। फार्म में सालाना करीब 200 क्विंटल सब्जियाँ उगाई जाती हैं।

पिछले साल, 2022 में, लतीफ़ के खेत से उपज कृषि विभाग के माध्यम से संयुक्त अरब अमीरात को निर्यात की गई थी।

“हमने लतीफ़ को ट्रेनिंग दी थी और उन्होंने अपने खेत में आधुनिकीकरण किया और नए तरीके अपनाएँ। कृषि विभाग ने संयुक्त अरब अमीरात को सब्जियाँ निर्यात की हैं,” कृषि विस्तार अधिकारी नज़ीर अहमद भट ने गाँव कनेक्शन को बताया।

उन्होंने कहा, “उनके खेत की उच्च गुणवत्ता वाली उपज ने न केवल स्थानीय कृषि बाजार को बढ़ावा दिया है, बल्कि क्षेत्र की टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी दिलाई है।”

अब तक कैसा रहा खेती का सफर

2020 में जब पूरे देश में लॉकडाउन लग गया था, सब कुछ ठहर सा गया था तब लतीफ इंटीग्रेटेड फार्मिंग की ट्रेनिंग लेकर उस पर प्रयोग शुरू कर दिया था।

इंटीग्रेटेड फार्मिंग में फसलें उगाना, पशु पालन, मछली पालन जैसी चीजें एक साथ की जाती हैं। ये यह सुनिश्चित करता है कि यदि किसी कारण से फसल खराब हो जाती है, तो कमाई के अन्य तरीके हैं।

परिवार के बुजुर्गों से कुछ मार्गदर्शन के साथ, लतीफ़ ने नदरू (कमल नाल), ब्रोकली, कीवी, अंगूर और प्लम जैसी विदेशी सब्जियाँ उगाना शुरू कर दिया।

“कृषि विभाग के मार्गदर्शन से, मैंने ट्राउट और कार्प मछली पालन के साथ ही, बैकयार्ड मुर्गी पालन, खरगोश पालन और मछली पालन में भी कदम रखा। इससे मुझे अच्छा मुनाफा भी हुआ है, ”उन्होंने कहा।

लतीफ 15 कनाल (1.87 एकड़) में सेब उगाती हैं, 5 कनाल (0.625 एकड़) में अंगूर, बेर और कीवी के बगीचे हैं, और दालें और स्वीट कॉर्न और विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती भी करती हैं।

उनके पास ब्रॉयलर पोल्ट्री, वन राजा, कड़कनाथ, रोड आइलैंड रेड जैसी चिकन नस्लें शामिल हैं, इनके साथ ही गिनी फाउल, टर्की और खरगोश का भी पालन करती हैं।

लतीफ के पास मछली फार्म भी हैं जिनमें ट्राउट के लिए 10,000 फिंगरलिंग और कार्प के लिए 5,000 फिंगरलिंग हैं। एक डेयरी इकाई वर्मीकम्पोस्ट और कम्पोस्ट का उत्पादन करती है, जिसका उपयोग उसके खेत में किया जाता है।

लेकिन, यह एक आसान यात्रा नहीं थी। “मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती शुरू में लागत लगाने की थी। मुझे वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन और पोल्ट्री फार्मिंग शुरू करने के लिए पैसे नहीं थे, ”लतीफ ने बताया।

“मैंने अपने गहने बेच दिए और इसके लिए मुझे काफी ताने भी सुनने को मिले। कई लोगों ने मुझसे कहा कि मैं अपनी वकालत छोड़कर खेती करके बेवकूफी कर रहीं हूँ, ”वो याद करती हैं। लेकिन, लतीफ़ 10 लाख रुपये इकट्ठा करने में कामयाब रहीं और इसे अपना प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए निवेश किया।

दूसरों को भी दिया है रोजगार

इंटीग्रेटेड फार्म से लगभग चार करोड़ रुपये का सालाना बिज़नेस होता है। उन्होंने बताया, “मजदूरी और दूसरी लागत निकालने के बाद लगभग 25 लाख रुपए की कमाई हो जाती है।

“हमारी इंटीग्रेटेड फार्मिंग यूनिट पर 10 लोग हमेशा काम करते रहते हैं, जिन्हें हर महीने दस हज़ार रुपए की सैलरी दी जाती है। उन्होंने हमारे खेत की उत्पादकता में सुधार करने में मदद की है और यहाँ आजीविका का एक साधन भी पाया है, ”लतीफ ने कहा।

शाज़िया के पति गुलबुद्दीन अहमद मीर, जो एक सरकारी कानून अधिकारी हैं, ने कहा कि उन्हें अपनी पत्नी पर बेहद गर्व है। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “उनके समर्पण और दृढ़ संकल्प ने हमारे खेत और कई लोगों के जीवन को बदल दिया है।”

मीर ने याद किया कि कैसे फ़ीड की कीमत में वृद्धि और दूसरे खर्चों के बढ़ने के कारण परिवार को मुर्गी पालन में काफी नुकसान भी उठाना पड़ा था। “पिछले साल हमें लगभग 20 लाख रुपये का नुकसान हुआ। अगर हम पूरी तरह से मुर्गी पालन पर निर्भर होते तो हमें कारोबार बंद करना पड़ता। लेकिन क्योंकि लतीफ इंटीग्रेटेड फार्मिंग करती हैं तो हम नुकसान से बच गए, ”उन्होंने कहा।

अपने पति के साथ, लतीफ़ लगातार शोध कर रही हैं और अपने खेत को बढ़ाने के लिए और भी बेहतर और नए तरीके ढूंढ रही हैं।

वर्तमान में, यह दंपत्ति एजोला, एक फर्न के साथ प्रयोग कर रहा है जिसका टिकाऊ कृषि में विभिन्न अनुप्रयोग हो सकता है। लतीफ ने कहा, यह मुर्गी और मछली के लिए एक पौष्टिक चारा है और इसे उगाकर किसान चारे की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं।

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