इस दो मंजिला में एक स्टार्टअप चलता है, एक ऐसा स्टार्टअप जिसमें काम करने वाली महिलाएं कभी दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा किया करती थीं, लेकिन आज खुद की मालिक हैं; ये है धूपबत्ती बनाने का स्टार्टअप।
स्टार्टअप की शुरूआत की है अनीता वर्मा ने, लेकिन अब तो कई सारी महिलाएं भी इनके साथ जुड़ गईं हैं, कई साल पहले बेहतर ज़िंदगी की तलाश में अनीता उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से राजधानी लखनऊ आईं थीं, लेकिन इतनी पढ़ी-लिखी नहीं थीं की किसी ऑफिस में काम मिलता, लेकिन घर तो चलाना ही था, इसलिए कई घरों में काम करने लगीं।
अनीता वर्मा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “हमारे जीवन में बदलाव यह आया कि एक तो हमारा जो खालीपन था, वो हट गया क्योंकि हमें रोज़गार मिल गया। अब इससे चार पैसे मिलेंगे, 10 घर चलेंगे।”

वो आगे कहती हैं, “महिला तो घर में रहती है, आदमी अकेले कितना कमाए? हमारे खुद के चार बच्चे हैं। अब अकेले वो कितना कमाएँगे? कहाँ बच्चों को पढ़ा पाते? महंगाई इतनी है कि कुछ कर नहीं पाते थे। अब हमने यह काम शुरू किया है, जिससे चार पैसे आएँगे और हमारे बच्चों की मदद हो जाएगी।“
अनीता जैसी करीब 10 से 15 महिलाएँ उनके घर पर इकट्ठा होती हैं, जहाँ वे सब मिलकर मंदिरों से फूल इकट्ठा करती हैं और फिर इन फूलों को सुखाकर धूपबत्ती बनाती हैं और फिर उसकी पैकेजिंग करके उन्हें बाज़ार तक ले जाती हैं। इस काम से वे सभी मिलकर आज आत्मनिर्भर बन चुकी हैं और उनके जैसी तमाम महिलाओं के लिए एक उदाहरण भी बन चुकी हैं।
अनीता के साथ काम करने वाली पूनम सिंह भी कभी दूसरों पर निर्भर थीं, कभी काम मिलता कभी नहीं मिलता, लेकिन उनके सामने नई राह खुल गई है, वो अपने पैरों पर खड़ी हैं, गर्व से पूनम सिंह गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “यह जो धूपबत्ती बनती है, इसके लिए हम फूलों को सुखाते हैं और फिर मशीन की मदद से उन्हें महीन कर देते हैं। उसके बाद एक पेस्ट तैयार करके उसे धूपबत्ती का आकार देते हैं। एक पैकेट में 30 ग्राम माल जाता है और हम इसे दर्जन के हिसाब से बाज़ार में देते हैं। अगर कोई सिर्फ़ एक डिब्बा लेना चाहे तो वह भी दे देते हैं।”
इन महिलाओं को नई दिशा देने वाली और इस समूह को जोड़ने वाली एक्शन एड संस्था की कहकशां परवीन गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “रोज़गार से आत्मनिर्भर बनने के साथ ही अगर हम विचारों से भी आत्मनिर्भर होते हैं तो महिलाएँ सशक्त बनती हैं। हमने इन महिलाओं के साथ लाइवलीहुड पर काम किया, यहाँ मशीन लगवाई और दस महिलाओं के इस समूह को एक-एक चीज़ सिखाई कि कैसे वे बिज़नेस को आगे बढ़ा सकती हैं।”

वो आगे कहती हैं, “अब इन्हें दूसरों के घरों में काम नहीं करना पड़ता है। हम उम्मीद करते हैं कि ये महिलाएँ ऐसे ही आगे बढ़ती रहेंगी।”
ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार, देश के 742 जिलों में कुल 84,92,827 स्वयं सहायता समूह गठित हैं, जिनमें ज़्यादातर समूहों की सदस्य महिलाएँ ही हैं।
ये महिलाएँ भले ही आज उतना मुनाफ़ा न कमा रही हों, लेकिन उनका मानना है कि दूसरों के घरों में काम करना और उनकी डाँट सुनने से बेहतर है कि वे अपने लिए कुछ करें और इस काम में अधिक मेहनत करें। उनके इस फ़ैसले से उनकी आने वाली पीढ़ियों को एक हौसला मिलेगा, जो आगे चलकर उनके उज्ज्वल भविष्य की नींव रखेगा।
अनीता आगे बताती हैं, “मैं चाहती हूँ कि गाँव की और भी महिलाएँ हमारे साथ जुड़ें और अपने पैरों पर खड़ी होकर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाएँ। हम चाहते हैं कि सब आगे बढ़ें, न कि सिर्फ़ हम अकेले।”
आज ये महिलाएँ इंटरप्रेन्योर बन चुकी हैं। इनकी अपनी छोटी-सी फ़ैक्ट्री है, ‘घर वाली फ़ैक्ट्री’, जहाँ ये धूपबत्ती बनाती हैं। इनकी फ़ैक्ट्री में मशीन भले ही एक ही हो, लेकिन उत्पादन, जज़्बा, मेहनत और कुछ अलग करने की चाह से होता है। इन्होंने एमबीए तो नहीं किया, लेकिन मार्केटिंग भी ये ख़ुद ही करती हैं और आज अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतों को बख़ूबी पूरा कर रही हैं।