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बाजरा और गेहूँ की ख़ेती से फ़ुर्सत मिलते ही, लकड़ी पर कलाकृतियाँ बनाने लग जाते हैं त्रिलोकचंद

राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले के एक किसान ने अपनी लकड़ी की मूर्तियों से अपना और अपने गाँव का नाम रोशन किया है। इन कलाकृतियों को बनाने के लिए वह किसी तरह की मशीन का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
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हनुमानगढ़, राजस्थान। त्रिलोकचंद मंडन पेशे से एक किसान हैं। लेकिन जब वह ख़ेतों में काम नहीं कर रहे होते है तो उनके हाथ लकड़ी पर कलाकृति बनाने में व्यस्त होते हैं। वह राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िला मुख्यालय से लगभग 67 किलोमीटर दूर स्थित ढंडेला गाँव में रहते हैं।

त्रिलोकचंद ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं अपनी कलाकृतियाँ बनाने के लिए सागौन की लकड़ी, रेगिस्तानी परिवेश में उगने वाले रोहिरा पेड़, शीशम और चंदन का इस्तेमाल करता हूं।”

त्रिलोकचंद किसान होने के साथ-साथ एक मूर्तिकार भी हैं। वह कलाकृतियाँ बनाने के लिए किसी भी मशीन से चलने वाले उपकरण का इस्तेमाल नहीं करते हैं। उन्होंने कहा, “मेरे सभी औजार हाथ से चलने वाले हैं।” वह लकड़ी खरीदते हैं और उन पर कलाकृतियाँ उकेरते हैं। कई बार लोग उन्हें नक्काशी करने के लिए लकड़ी का टुकड़ा उपहार में भी दे देते हैं।

उन्होंने कहा कि उनके सबसे चुनौतीपूर्ण कामो में से एक, 90 दिनों के भीतर पतंजलि योग सूत्र से संस्कृत ग्रंथों को तैयार करना था। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं लकड़ी पर एक समय में सिर्फ एक अक्षर को सटीकता से उकेरता था। उसमे काफी समय लग जाया करता था। ”

उनका घर राज्य की राजधानी जयपुर से लगभग 140 किलोमीटर दूर है। अपने घर के एक हिस्से में त्रिलोकचंद ने अपनी मूर्तियों और अन्य लकड़ी की नक्काशी का एक संग्रहालय बनाया है। बहुत से लोग उनके इस संग्रहालय को देखने आते हैं।

लकड़ी के काम में प्रशिक्षण

लकड़ी के प्रति उनका रुझान 1986 में शुरू हुआ, जब नौवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद, फर्नीचर बनाने का प्रशिक्षण लेने के लिए हरियाणा के शेखूपुर दडोली गाँव गए थे।

उन्होंने कहा, “साहबराम भद्रेचा ने मुझे लकड़ी से काम करना सिखाया। मैंने फर्नीचर, दरवाजे के साथ-साथ कृषि के लिए ज़रूरी लकड़ी के औज़ार जैसे हल बनाना भी सीखा। लेकिन, मैं ख़ेती करने के लिए जल्द ही घर लौट आया। लकड़ी से चीजें बनाने के अपने शौक को नहीं छोड़ा।”

ढंडेला गाँव में लगभग एक हज़ार परिवार रहते हैं, जिनमें से अधिकांश लोग ख़ेती से जुड़े हुए हैं। लेकिन लगभग 20 परिवार ऐसे भी हैं जो लकड़ी का काम करते हैं। इनमें से एक त्रिलोकचंद भी हैं।

एक बार पड़ोसी गाँव टोपरिया के फोटोग्राफर और कलाकार एस कुमार की नज़र उन पर पड़ी,तो उन्हें उनकी जन्मजात प्रतिभा को आगे ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया।

त्रिलोकचंद ने कहा, “मैंने 1997 में गंभीरता से नक़्क़ाशी शुरू की। मेरी पहली लकड़ी की मूर्ति भगवान गणेश की थी और तब से मैंने 1000 से ज़्यादा मुर्तियाँ बना ली हैं।”

किसान बना मूर्तिकार

उन्होंने ख़ुद को देवी-देवताओं की छवियों तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि लोक नायकों, प्रसिद्ध हस्तियों, राजस्थानी लोककथाओं के दृश्यों की आकृतियों को भी लकड़ी पर उकेरा है।

उन्होंने कहा, “स्वामी विवेकानन्द की छह फुट की लकड़ी की प्रतिमा बनाने में मुझे सिर्फ एक महीना लगा था।”

स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का निर्माण ढाई साल पहले नोहर पंचायत के तत्कालीन प्रधान अमर सिंह पूनिया ने कराया था। प्रतिमा को पँचायत कार्यालय के बाहर रखा गया है। लेकिन त्रिलोकचंद आज भी अपनी पहचान एक किसान के रूप में ही करते हैं।

उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “मैं अभी भी एक किसान हूँ। मेरे पास 10 बीघा ज़मीन है और 12 बीघे ज़मीन पट्टे पर ली है। मैं कपास, ग्वारपाठा, बाजरा, सरसों और गेहूँ की ख़ेती करता हूँ। मेरी आय का मुख्य ज़रिया वही है। ” उनके बेटे उनके साथ ख़तों में काम करते हैं।

उन्होंने बताया, “ जब मेरा मूड होता है तो मैं नक्काशी करना शुरू कर देता हूं। मेरे पास कोई निश्चित समय नहीं है, लेकिन एक बार शुरू करने के बाद, मैं तब तक आराम नहीं करता जब तक कि मैं अपना काम पूरा न कर लूं।”

नोहर पँचायत के पूर्व प्रधान पुनिया ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने हनुमानगढ़ ज़िले में या उसके आसपास त्रिलोकचंद जैसे बहुत अधिक कलाकार नहीं देखे हैं। उनका काम ख़ुद बोलता है। ऐसे कलाकारों को संरक्षण देने के लिए बहुत कुछ किया जाना चाहिए।”

मिनिएचर क्राफ्ट (लघु शिल्प)

त्रिलोकचंद सिर्फ विशाल नक़्क़ाशी और मूर्तियाँ बनाने का काम नहीं करते हैं। उन्होंने लकड़ी पर गेहूँ के पत्थर की चक्की बनाई है जो महज़ छह मिलीमीटर बड़ी है।

उन्होंने एक छोटा सा हल जो सिर्फ तीन मिमी का है और एक चार मिमी की अँगूठी बनाई है, जिसे विश्व के महानतम रिकॉर्ड में जगह मिली है। ओएमजी बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और आइडियल इंडियन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने इन्हें विश्व रिकॉर्ड घोषित किया है।

त्रिलोकचंद अपने गाँव में आने वाले किसी भी महत्वपूर्ण मेहमान को अपनी लकड़ी की कलाकृतियाँ उपहार में देते हैं।

त्रिलोकचंद ने याद करते हुए कहा, “हाल ही में, मैंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उनके पिता जादूगर लक्ष्मण सिंह की एक लकड़ी की मूर्ति उपहार में दी थी। उस समय मुख्यमंत्री भावुक हो गए थे।”

त्रिलोकचंद ने कहा, तमाम प्रशंसा और शाबासियों के बावज़ूद, उनकी कला को कोई वास्तविक समर्थन नहीं मिला है। वह शायद ही कभी अपना कोई बनाया हुआ काम बेच पाते हों।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उनके पिता जादूगर लक्ष्मण सिंह की एक लकड़ी की मूर्ति उपहार में देते हुए।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उनके पिता जादूगर लक्ष्मण सिंह की एक लकड़ी की मूर्ति उपहार में देते हुए।

हस्तशिल्प विकास विभाग, जोधपुर की उप निदेशक किरण वीएन ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम त्रिलोकचंद मंडन जैसे कलाकारों का समर्थन करने के लिए हमेशा तैयार हैं। हमने ऐसे कलाकारों को कारीगर पहचान पत्र जारी किए हैं। कार्डधारक देश भर में किसी भी प्रदर्शनी या शो में स्वतंत्र रूप से भाग ले सकते हैं।”

उनके मुताबिक़, ऐसे कलाकार जहाँ भी जाते हैं, हस्तशिल्प विकास विभाग उनकी यात्रा, खाने और रहने का भुगतान करता है। उन्होंने कहा, “हम उन्हें प्रदर्शनी में स्टॉल दिलाने में भी मदद करते हैं, कभी-कभी यह बिल्कुल फ्री होता है।” उपनिदेशक ने यह भी कहा कि पहचान पत्र धारक अपनी इच्छानुसार किसी भी पुरस्कार के लिए आवेदन कर सकते हैं।

किरण वीएन ने कहा, “ त्रिलोकचंद एक असाधारण कलाकार हैं। पिछले साल उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए आवेदन किया था। उनके दो दौर के आवेदनों को मंज़ूरी मिल गई थी, लेकिन वह तीसरे के लिए सफल नहीं हो सके। फिर भी उन्हें जो सहयोग चाहिए, वह उन्हें हमेशा मिलता रहेगा।”

इस बीच, त्रिलोकचंद अपनी कला को छात्रों तक पहुँचा रहे हैं। उनमें से दो उनके अपने बेटे हैं। गाँव के बाहर से भी लोग उनके पास सीखने के लिए आते हैं।

त्रिलोकचंद ने कहा, “लकड़ी की मूर्तिकला को अधिक समर्थन की ज़रुरत है और राजस्थान में एक राज्य वुडक्राफ्ट बोर्ड होना चाहिए। यह न सिर्फ अधिक कलाकारों को अपना काम ज़ारी रखने के लिए प्रेरित करेगा, बल्कि यह भी ध्यान रखेगा कि अभावों में ये कला मर न जाए।”

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