“आज जब मेरी बहन बिना किसी झिझक के सुबह दौड़ने जाती है, तो मुझे बहुत खुशी होती है। ऐसा लगता है जैसे मेरी सारी मेहनत सफल हो गई।”
25 साल की खुशबू गर्व से कहती हैं। खुशबू ने अपने घर बदलाव लाने के लिए लंबा संघर्ष किया है। यह संघर्ष सिर्फ उनके लिए ही नहीं, बल्कि अपनी छोटी बहनों के भविष्य के लिए भी था।
खुशबू उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के नौतनवा ब्लॉक स्थित आराजीसरकार गाँव की रहने वाली हैं। उनके पिता बढ़ई हैं और मां आशा कार्यकर्ता। वह बीए की पढ़ाई कर रही हैं और साथ ही कंप्यूटर कोर्स भी कर रही हैं। उनके घर में चार बहनें हैं। मधुमिता सेना में भर्ती होना चाहती है, रेणु पुलिस में जाना चाहती है और सबसे छोटी बहन डॉक्टर बनने का सपना देखती है। खुशबू खुद टीचर बनना चाहती हैं, ताकि वो समाज की उन लड़कियों की मदद कर सकें जिन्हें आज भी शिक्षा और स्वतंत्रता से वंचित रखा जाता है।
पर यह रास्ता इतना आसान नहीं था। खुशबू बताती हैं, “मैं घर की बड़ी बेटी थी, तो दादा जी मेरे पहनावे, बाहर निकलने और पढ़ाई को लेकर हमेशा पाबंदियां लगाते थे। जब मेरी बहन ने सेना में भर्ती की तैयारी शुरू की और उसे सुबह दौड़ने के लिए जाना पड़ा, तब दादा जी ने उसे भी रोकना शुरू कर दिया।”
यहीं से खुशबू ने ठान लिया कि अब वह चुप नहीं बैठेंगी।
“मैंने दादा जी से साफ कहा, मेरी बहन को अपने सपनों को पूरा करने का अधिकार है। आप उसे नहीं रोक सकते,” खुशबू कहती हैं।

शुरुआत में दादा जी उनकी एक भी बात नहीं सुनते थे। जब भी बहन बाहर दौड़ने जाती, वे ताने मारते, कपड़ों को लेकर रोकते। लेकिन खुशबू हार मानने वालों में से नहीं थीं। उन्होंने बार-बार कोशिश की, बात की, समझाया और आखिर में एक दिन दादा जी मान गए।
इस बदलाव के पीछे खुशबू की आंतरिक शक्ति के साथ-साथ ब्रेकथ्रू संस्था की सामुदायिक कार्यकर्ता अंजली की भी अहम भूमिका रही।
“मुझे सारी हिम्मत अंजली दीदी से मिली। उन्होंने मुझे बताया कि यह मेरा अधिकार है, और मुझे इसके लिए आवाज़ उठानी चाहिए,” खुशबू कहती हैं।
ब्रेकथ्रू एक सामाजिक संस्था है जो महिलाओं और किशोरियों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा को खत्म करने की दिशा में काम कर रही है। संस्था मीडिया, कला और समुदाय के ज़रिए जेंडर समानता की दिशा में सोच बदलने का प्रयास करती है। इसका चर्चित अभियान ‘Bell Bajao’ घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज़ बन चुका है।
अंजली बताती हैं, “खुशबू कई सालों से हमारी बैठकों में आती थी। जब उसने दादा जी के व्यवहार के बारे में बताया, तो हमने परिवार से मिलना शुरू किया और खुशबू को उसके हक समझाए। धीरे-धीरे परिवार का नज़रिया बदला।”
आज खुशबू की बहनें न सिर्फ अपने-अपने सपनों की तरफ बढ़ रही हैं, बल्कि गांव की कई और लड़कियों के लिए प्रेरणा बन रही हैं।
खुशबू कहती हैं, “मुझे टीचर इसलिए बनना है ताकि मैं अपने जैसी और लड़कियों की मदद कर सकूं। हमारे गांव में आज भी बहुत सी बच्चियां स्कूल नहीं जा पातीं। मैं चाहती हूं कि अब किसी और को वो सब न झेलना पड़े जो मैंने झेला।”
खुशबू की कहानी बताती है कि एक लड़की की आवाज़, अगर दृढ़ निश्चय और सही मार्गदर्शन से उठे, तो वह पूरे परिवार की सोच को बदल सकती है। उनकी यह जिद, सिर्फ बहनों के लिए नहीं थी — यह आने वाली पीढ़ी के लिए रास्ता बनाने की शुरुआत थी।